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बला की खूबसूरत यह एक्ट्रेस आज कितनी बदल गयीं, पर सबके लिए मिसाल है इनकी ज़िंदगी

गुज़रे ज़माने की एक्ट्रेस आज कैसी दिखती हैं और इनदिनों वो क्या कर रही हैं, यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब हर फैंस जानना चाहता है...

By Hirendra JEdited By: Published: Sat, 21 Jan 2017 05:48 PM (IST)Updated: Tue, 27 Jun 2017 06:02 PM (IST)
बला की खूबसूरत यह एक्ट्रेस आज कितनी बदल गयीं, पर सबके लिए मिसाल है इनकी ज़िंदगी
बला की खूबसूरत यह एक्ट्रेस आज कितनी बदल गयीं, पर सबके लिए मिसाल है इनकी ज़िंदगी

मुंबई। गुज़रे दौर की अभिनेत्रियों में से कुछ तो ऐसी हैं जिन्हें समय ने भुला दिया, कुछ ऐसी हैं जो अपने चाहने वालों की यादों में रची-बसी हैं तो कुछ ऐसी भी हैं जो एक से दूसरी तक पूरी पीढ़ी को लगातार इंस्पायर करती रही हैं, ऐसी ही एक अदाकारा का नाम है सायरा बानो। सायरा अपने दौर की सबसे खूबसूरत एक्ट्रेस में से थीं। वो इतनी खूबसूरत और मासूम दिखतीं कि लोग उनके अभिनय से ज्यादा उनकी खूबसूरती की बात करते।

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सायरा का ज़्यादातर बचपन लंदन में बीता जहां से पढ़ाई खत्म करके वह इंडिया लौट आईं। स्कूल से ही उन्हें अभिनय से लगाव था और स्कूल में भी उन्हें अभिनय के लिए कई मेडल मिले थे। अभिनय के प्रति उनकी यही दीवानगी थी कि महज 17 साल की उम्र में ही उन्होंने बॉलीवुड में अपने कैरियर की शुरुआत कर दी। अभिनय से उनके जुड़ाव की एक वजह यह भी रही कि उनकी मां नसीम बानो तीस के दशक की एक कामयाब अभिनेत्री थीं। परिवार की मर्जी को धता बताकर नसीम बानो बॉलीवुड में आयीं और अपनी पहचान बनायीं। नसीम तीस के दशक की तमाम एक्ट्रेस में सबसे अधिक हसीन थीं इसीलिए उन्हें ब्यूटी-क्वीन भी कहा जाता था। 'बेगम','चांदनी रात' उनकी कुछ बेस्ट फ़िल्मों में से हैं। बहरहाल, एक इंटरव्यू में सायरा ने कहा भी था कि जब वो बारह साल की थी तब दो ही सपने थे उनके..एक तो यह कि वो अपनी मां के जैसी बनना चाहती थीं और दूसरी वो मिसेज़ दिलीप कुमार बनना चाहती थीं। सायरा के बारे में विस्तार से जानेंगे पर आइये पहले देखते हैं कि तब की यह खूबसूरत एक्ट्रेस आज कैसी नज़र आती हैं।

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23 अगस्त 1944 को जन्मीं सायरा की पहली फ़िल्म 1961 में आयी। फ़िल्म का नाम था 'जंगली' और उनके साथ थे शम्मी कपूर। यह फ़िल्म ज़बरदस्त हिट रही। इस फ़िल्म के लिए सायरा को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्मफेयर अवार्ड के लिए भी नामांकित किया गया। उसके बाद तो जैसे सायरा के करियर की गाड़ी चल पड़ी। जंगली के बाद सायरा की कई सुपरहिट फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर धूम मचाने लगी थी। उन दिनों राजेन्द्र कुमार जुबिली कुमार के नाम से जाने जाते था। सायरा का दिल राजेन्द्र कुमार पर आ गया, जबकि वे तीन बच्चों वाले शादीशुदा व्यक्ति थे।

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मां नसीम को जब यह भनक लगी, तो उन्हें अपनी बेटी की नादानी पर बेहद गुस्सा आया। नसीम ने अपने पड़ोसी दिलीप कुमार की मदद ली और उनसे कहा कि सायरा को वे समझाएं कि वो राजेंद्र कुमार से अपना मोह भंग करे। दिलीप कुमार ने बड़े ही बेमन से यह काम किया क्योंकि वे सायरा के बारे में ज्यादा जानते भी नहीं थे। जब दिलीप कुमार ने सायरा को समझाया कि राजेन्द्र के साथ शादी का मतलब होगा पूरी ज़िन्दगी सौतन बनकर रहना और तकलीफें सहना। जिसके जवाब में सायरा ने दिलीप कुमार से पलटकर सवाल किया था कि क्या वे उससे शादी करेंगे? दिलीप कुमार के पास तब इस सवाल का जवाब नहीं था। लेकिन, समय जैसे सब कुछ तय कर चुका था।

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11 अक्टूबर 1966 को 25 साल की उम्र में सायरा ने 44 साल के दिलीप कुमार से शादी कर ली। कहते हैं कि दूल्हा बने दिलीप कुमार की घोड़ी की लगाम पृथ्वीराज कपूर ने थामी थी और उनकी दोनों तरफ राज कपूर और देवआनंद नाच रहे थे। इस शादी के बारे में तब कोई सोच भी नहीं सकता था। वाक़ई इन दोनों स्टार्स की शादी भी काफी फ़िल्मी ही थी। सायरा बानो शादी के बाद भी फ़िल्में करती रहीं। साल 1968 में आयी फ़िल्म ‘पड़ोसन’ ने उन्हें दर्शकों के बीच बेहद पॉपुलर बना दिया। इस एक फ़िल्म ने उनके कॅरियर के लिए टर्निग-प्वॉइंट का काम किया। जिसके बाद उन्होंने ‘गोपी’, ‘सगीना’, ‘बैराग’ जैसी हिट फिल्मों में दिलीप कुमार के साथ काम किया। ‘शागिर्द’, ‘दीवाना’, ‘चैताली’ जैसी फ़िल्मों में सायरा बानो ने दमदार अभिनय किया।

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सब कुछ सही जा रहा था। सायरा उनदिनों फ़िल्म 'विक्टोरिया 203' की शूटिंग कर रहीं थीं। उस समय वे गर्भवती थीं। लगातार शूटिंग करते रहने का असर यह हुआ कि उनका शिशु मृत पैदा दिया। इस दुर्घटना पर दिलीप कुमार फूट-फूटकर रोए थे। अपनी आत्मकथा में दिलीप कुमार साहब ने इस बारे में विस्तार से बताया है। दिलीप-सायरा के बीच एक तूफ़ान तब आया जब उनके बीच अस्मां नामक एक महिला आकर खड़ी हो गई। कहा जाता है कि यह सब एक साजिश के तहत रचा गया था। 30 मई 1980 को उसने बंगलौर में दिलीप कुमार से शादी की। समय रहते दिलीप कुमार ने उससे छुटकारा पा लिया। ऐसा माना जाता है कि दिलीप साहब के दिल में पिता कहलाने की एक ललक थी, जिसे वे शायद अस्मां के जरिये पूरी करना चाहते थे।

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अस्मां से अलग होने के बाद दिलीप कुमार और सायरा फिर से साथ थे, आज भी साथ हैं। इस बीच सायरा बानो की आखिरी फ़िल्म भी आयी “फैसला” जो साल 1988 में प्रदर्शित हुई। दिलीप कुमार और सायरा बानो की ज़िन्दगी एक मिसाल है। मायानगरी में जहां रोज़ संबंध बनते और बिगड़ते हैं वहां अपनी शादी के 50 साल पुरी कर चुका यह दम्पति वाकई में नायाब है। आज भी सायरा दिलो जान से बुजुर्ग और अल्जाइमर की बीमारी से पीड़ित दिलीप साहब की तीमारदारी में लगी हैं और वही उनकी आवाज़ भी बनी हुई हैं और धड़कन भी।


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