बचपन दिलीप कुमार का
मुंबई। हिंदी फिल्म जगत के महानतम अभिनेताओं में से एक हैं ट्रेजडी किंग। जी हां, दिलीप कुमार..। उन्होंने अदाकारी की ट्रेनिंग नहीं ली, वे स्वाभाविक अभिनेता हैं। उनकी जिंदगी की कहानी भी कम फिल्मी नहीं है। उसमें इमोशन, ड्रामा, ट्विस्ट और टर्न है। उनकी पैदाइश पेशावर की है, पर उनके पित्

मुंबई। हिंदी फिल्म जगत के महानतम अभिनेताओं में से एक हैं ट्रेजडी किंग। जी हां, दिलीप कुमार..। उन्होंने अदाकारी की ट्रेनिंग नहीं ली, वे स्वाभाविक अभिनेता हैं। उनकी जिंदगी की कहानी भी कम फिल्मी नहीं है। उसमें इमोशन, ड्रामा, ट्विस्ट और टर्न है। उनकी पैदाइश पेशावर की है, पर उनके पिता सरवर खान जल्द मुंबई शिफ्ट हो गए। उनके पिता ने पहले मुहम्मद अली रोड पर घर किराए पर लिया था, लेकिन वहां कंजेशन के चलते दिलीप कुमार की मां को रहने में काफी दिक्कत होती थी। दिलीप कुमार को आज भी वे बातें याद हैं। वे कहते हैं, 'तब हम चौथी मंजिल पर रहते थे। मुझे याद है, उस वक्त भी मुंबई में भीड़भाड़ खूब थी। हम जिस इमारत में रहते थे, वहां ढेर सारे परिवार रहते थे। कंजेशन के चलते मेरी मां को काफी तकलीफ होती थी।'
बाद में सरवर खान को डॉक्टर परमार ने सलाह दी कि वे मुंबई के सूखे मौसम से दूर चले जाएं। फिर तय हुआ कि सब देवलाली शिफ्ट होंगे। वह जगह नासिक से 65 किलोमीटर दूर थी। वहां अच्छे स्कूल भी थे। सरवर खान सबको लेकर वहां चले आए। उस वक्त दिलीप कुमार की उम्र छह साल थी। वहां के सबसे मशहूर बर्नेस स्कूल में उनका दाखिला हुआ। हालांकि वहां उनका वक्त पढ़ाई के बजाय फुटबॉल खेलने में अधिक जाता था। पिता को उनका फुटबॉल खेलना नापसंद था। वे चाहते थे कि दिलीप भद्र लोगों के खेल शतरंज में दिल लगाएं, लेकिन फुटबॉल से उन्हें कोई दूर नहीं कर सका।
फिर द्वितीय विश्व युद्ध के चलते देवलाली सैनिक छावनी में तब्दील हो गया। वहां की अधिकतर इमारतें अंग्रेजी हुकूमत ने जब्त कर लीं। एक बार फिर खान परिवार के सामने कहीं और शिफ्ट होने की नौबत आ गई। तय हुआ कि पूरा परिवार वापस मुंबई आएगा। पिता ने बांद्रा के पाली माला रोड पर एक घर लिया। जब पिता वापस मुंबई शिफ्ट हुए, उस वक्त दिलीप कुमार की उम्र 14 साल थी। उस वक्त तक उन्होंने एक भी फिल्म नहीं देखी थी। वह वास्तव में बड़ी रोचक बात थी कि आगे चलकर एक फिल्म स्टार बनने वाले शख्स ने अपने टीनएज में एक भी फिल्म नहीं देखी थी।
बहरहाल, उनका परिवार बांद्रा आ गया। वे और उनके छोटे भाई नासिर का नाम अंजुमन-ए -इस्लाम हाई स्कूल में लिखवा दिया गया। वह स्कूल मुंबई छत्रपति शिवाजी टर्मिनस के ठीक सामने है। वह क्रॉफर्ड मार्केट के नजदीक थी। उसकी स्थापना बद्दरुद्दीन तैयबजी ने की थी। वह उर्दू माध्यम की पाठशाला थी। वहां से दसवीं पास करने के बाद उनका दाखिला विल्सन कॉलेज में हुआ। उनके पिता चाहते थे कि वे साइंस से स्नातक करें, पर दिलीप कुमार का दिल कहीं और लगता था। वे कुछ और करना चाहते थे। वे पेशावर, देवलाली और मुंबई के बीच के गैप को पाटना चाहते थे। लिहाजा उन्होंने लिटरेरी सोसायटी ज्वॉइन कर ली। वहां उनके हाथों में जो किताबें आतीं, वे उन्हें पढ़ डालते। उनकी पढ़ाकू प्रवृत्ति ने उनकी अंग्रेजी अच्छी कर दी। उन्हें भीड़ में रहना पसंद नहीं था। उन्हें एकाकीपन भाता था। बाद में अंग्रेजी साहित्य के प्रति प्रेम और एकाकीपन ने उन्हें हॉलीवुड की फिल्मों की ओर मोड़ दिया।
क्रमश:
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