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दिलीप साहब: महानायक की महागाथा

भले ही सदी का महानायक अमिताभ बच्चन को कहा जाता है, लेकिन हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में एक अभिनेता ऐसा भी है, जिसका महानायक वाला रुतबा बिग बी से भी बड़ा है। हम बात कर रहे हैं दिलीप कुमार की, जो मुंबई के लीलावती अस्पताल में भर्ती हैं।

By Edited By: Published: Mon, 16 Sep 2013 09:02 AM (IST)Updated: Mon, 16 Sep 2013 09:04 AM (IST)
दिलीप साहब: महानायक की महागाथा

भले ही सदी का महानायक अमिताभ बच्चन को कहा जाता है, लेकिन हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में एक अभिनेता ऐसा भी है, जिसका महानायक वाला रुतबा बिग बी से भी बड़ा है। हम बात कर रहे हैं दिलीप कुमार की, जो मुंबई के लीलावती अस्पताल में भर्ती हैं।

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दिलीप साहब का वास्तविक नाम मोहम्मद युसूफ खान है। त्रासद भूमिकाओं के लिए मशहूर होने के कारण उन्हे ट्रेजडी किंग भी कहा जाता था। दिलीप कुमार को भारतीय फिल्मों में यादगार अभिनय करने के लिए फिल्मों का सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार के अलावा पद्म भूषण और पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-इम्तियाज से सम्मानित किया जा चुका है।

दिलीप कुमार का जन्म 11 दिसंबर, 1922 को वर्तमान पाकिस्तान के पेशावर शहर में हुआ था। उनके पिता लाला ग़ुलाम सरवर फल बेचकर अपने परिवार का खर्च चलाते थे। विभाजन के दौरान उनका परिवार मुंबई आकर बस गया। उनका शुरुआती जीवन तंगहाली में ही गुजरा। पिता के व्यापार में घाटा होने के कारण वह पुणे की एक कैंटीन में काम करने लगे थे। यहीं देविका रानी की पहली नजर उन पर पड़ी और उन्होंने दिलीप कुमार को अभिनेता बना दिया। देविका रानी ने ही युसूफ खान की जगह उनका नया नाम दिलीप कुमार रखा। पच्चीस वर्ष की उम्र में दिलीप कुमार देश के नंबर वन अभिनेता के रूप में स्थापित हो गए थे।

दिलीप कुमार ने फिल्म ज्वार भाटा से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की। हालांकि यह फिल्म सफल नहीं रही। उनकी पहली हिट फि़ल्म जुगनू थी। 1947 में रिलीज़ हुई इस फिल्म ने बॉलीवुड में दिलीप कुमार को हिट फिल्मों के स्टार की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया। 1949 में फिल्म अंदाज में दिलीप कुमार ने पहली बार राजकपूर के साथ काम किया। यह फिल्म एक हिट साबित हुई। दीदार (1951) और देवदास (1955) जैसी फिल्मों में गंभीर भूमिकाओं के लिए मशहूर होने के कारण उन्हें ट्रेजडी किंग कहा जाने लगा। मुगले-ए-आजम (1960) में उन्होंने मुग़ल राजकुमार जहांगीर की भूमिका निभाई। राम और श्याम में दिलीप कुमार द्वारा निभाया गया डबल रोल आज भी लोगों को गुदगुदाता है। 1970, 1980 और 1990 के दशक में उन्होंने कम फिल्मों में काम किया। इस समय की उनकी प्रमुख फिल्में थीं क्रांति (1981), विधाता (1982), दुनिया (1984), कर्मा (1986), इज्जतदार (1990) और सौदागर (1991)। 1998 में बनी फिल्म किला उनकी आखिरी फिल्म थी।

दिलीप कुमार अपने आप में सेल्फमेड मैन की जीती-जागती मिसाल हैं। उनकी निजी जिंदगी हमेशा कौतुहल का विषय रही, जिसमें रोजमर्रा के सुख-दु:ख, उतार-चढ़ाव, मिलना-बिछुडऩा, इकरार-तकरार सभी शामिल थे। दिलीप कुमार को साहित्य, संगीत और दर्शन की अभिरुचि ने गंभीर और प्रभावशाली हस्ती बना दिया।

मुगले आजम, शहीद, अंदाज, आन, देवदास, नया दौर, मधुमती, यहूदी, पैगाम, गंगा-जमना, लीडर तथा राम और श्याम जैसी फिल्मों के सलोने नायक दिलीप कुमार भारत के लाखों युवा दर्शकों के दिलों की धड़कन बन गए थे। इस अभिनेता ने रंगीन और श्वेत-श्याम सिनेमा के पर्दे पर अपने आपको कई रूपों में प्रस्तुत किया। असफल प्रेमी के रूप में उन्होंने विशेष ख्याति पाई, लेकिन यह भी सिद्ध किया कि हास्य भूमिकाओं में वे किसी से कम नहीं हैं। वे ट्रेजेडी किंग भी कहलाए और आलराउंडर भी। उनकी गिनती अतिसंवेदनशील कलाकारों में की जाती है, लेकिन दिल और दिमाग के सामंजस्य के साथ उन्होंने अपने व्यक्तित्व और जीवन को ढाला। पच्चीस वर्ष की उम्र में दिलीप कुमार देश के नंबर वन अभिनेता के रूप में स्थापित हो गए थे। वह आजादी का उदयकाल था। शीघ्र ही राजकपूर और देव आनंद के आगमन से दिलीप-राज-देव की प्रसिद्ध त्रिमूर्ति का निर्माण हुआ। ये नए चेहरे आम सिने दर्शकों को मोहक लगे। इनसे पूर्व के अधिकांश हीरो प्रौढ़ नजर आते थे।

अच्छे पटकथा लेखक इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि अभिनय में सबसे ज्यादा नकल दिलीप कुमार के अभिनय की ही हुई है। शायद यह कम लोगों को ही पता हो कि दिलीप कुमार अच्छे पटकथा लेखक भी हैं। अपनी इस प्रतिभा का प्रदर्शन उन्होंने फिल्म लीडर में किया था। हालांकि लीडर कामयाब फिल्म नहीं थी, लेकिन उसकी कहानी ऐसी थी, जिसमें भविष्य के संकेत छिपे थे। उसमें वोट और राजनीति के सही चेहरे को दिखाया गया था। दिलीप कुमार ने फिल्मालय स्टूडियो में एक पेड़ के नीचे बैठकर लीडर की पटकथा लिखी थी। पूरी कहानी वोट की राजनीति और उद्योगपति-राजनीतिज्ञों के संबंधों की थी। यह तब की बात है, जब देश को आजाद हुए डेढ़ दशक हुए थे। वह पंडित नेहरू का स्वप्न-काल था। राजनीति का आज जो स्वरूप है, वह उसी समय से गंदा होने लगा था।

दिलीप कुमार ने 1966 में प्रसिद्ध अभिनेत्री सायरा बानो से शादी की। जिस समय दिलीप कुमार और सायरा बानो की शादी हुई थी उस समय सायरा बानो 22 साल और दिलीप साहब 44 साल के थे। आज यह जोड़ी बॉलीवुड की सबसे प्रसिद्ध जोडिय़ों में से एक है। जब लोगों ने अखबारों में यह पढ़ा कि दिलीप कुमार अभिनेत्री सायरा बानो से शादी कर रहे हैं, तो वे चौंक गए। वैसे, उनका चौंकना स्वाभाविक ही था, क्योंकि शादी से पहले तक दिलीप कुमार ने सायरा बानो के साथ एक भी फिल्म नहीं की थी। दोनों में न दोस्ती थी और न ही मिलना-जुलना था। सबसे बड़ी बात यह है कि दोनों की उम्र में बहुत बड़ा अंतर था। एक और सच यह था कि उन दिनों फिल्मी पत्रिकाएं सायरा बानो का नाम भी उनके सह अभिनेता राजेंद्र कुमार से जोड़ रही थीं।

आज जबकि वह लीलावती अस्पताल में मौत से जंग लड़ रहे थे तो हम दुआ करेंगे कि दिलीप साहब मौत की छाती पर पांव रखकर वापस सही-सलामत घर लौटेंगे।

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