शक्ति और भक्ति के पॉपुलर पर्याय रहे दारा सिंह
1987 में आरंभी हुए टीवी सीरियल रामायण ने दारा सिंह को हनुमान की छवि दी। उनकी इस छवि को सराहा और पूजा गया। आज के अधिकांश युवक उन्हें इसी रूप में जानते और पहचानते हैं,लेकिन 40 की उम्र पार कर चुके किसी भी भारतीय नागरिक के मन में दारा सिंह की अन्य छवियां और ंिकंवदंतियां हैं। सभी ने अपने बचपन में कुछ किस्से सुने हैं।
1987 में आरंभी हुए टीवी सीरियल रामायण ने दारा सिंह को हनुमान की छवि दी। उनकी इस छवि को सराहा और पूजा गया। आज के अधिकांश युवक उन्हें इसी रूप में जानते और पहचानते हैं,लेकिन 40 की उम्र पार कर चुके किसी भी भारतीय नागरिक के मन में दारा सिंह की अन्य छवियां और ंिकंवदंतियां हैं। सभी ने अपने बचपन में कुछ किस्से सुने हैं।
खुद दारा सिंह बनने की कोशिश की है या किसी को चुनौती के रूप में देख कर ललकारा है-अपने आप को दारा सिंह समझते हो क्या? दारा सिंह का नाम लेते ही एक रोबीला और निर्भीक चेहरा सामने आता है,जो पराजित नहीं हो सकता। जीवन के चालीस वसंत पार कर चुके सभी भारतीयों न सुन रखा है कि दारा सिंह ने गामा पहलवान को पछाड़ दिया था और किंगकांग जैसे दैत्याकार पहलवान को भी अखाड़े में छठी के दूध की याद दिला दी थी। तब के भारत में क्रिकेट का नहीं कुश्ती का क्रेज था। रुस्तम-ए-हिंद दारा सिंह शक्ति के साक्षात प्रतीक थे। फिल्मों और सीरियल में हनुमान,शिव और बलराम की भूमिकाएं निभा कर वे भक्ति के भगवान भी बने। किसी अन्य व्यक्तित्व की ऐसी कद्दावर छवि भारतीय समाज में नहीं दिखती,जो एक साथ शक्ति और भक्ति का पर्याय रहा हो।
कुश्ती और पहलवानी के तमाम खिताबों केा जीतने के बाद दारा सिंह ने फिल्मों का रुख किया। 1952 में उनकी पहली फिल्म संगदिल आई थी। उनकी आखिरी फिल्म अता पता लापता है। इस अप्रदर्शित फिल्म का निर्देशन राजपाल यादव ने किया है। सौ से अधिक फिल्मों में अपने शरीर सौष्ठव के साथ अवतरित हो चुके दारा सिंह ने मुख्य रूप से एक्शन,धार्मिक और कुछ सामाजिक फिल्मों में नायक की भूमिकाएं निभाई। अपनी छवि और फिल्मों की वजह से वे फिल्म इंडस्ट्री की परिधि पर रहे,लेकिन दर्शकों ने उन्हें हर रूप में स्वीकार किया। मुमताज के साथ उनकी जोड़ी पॉपुलर रही। संयोग ऐसा था कि दारा सिंह के साथ काम करने के लिए दूसरी हीरोइनें तैयार नहीं होती थीं और एक्स्ट्रा से एक्ट्रेस बनी मुमताज के साथ दिखने में पॉपुलर हीरो अपनी तौहीन समझते थे। लिहाजा दोनों एक-दूसरे केपूरक बने और उन्होंने 16 फिल्मों में एक साथ काम किया। फिल्मों में बलशाली और विजयी किरदारों को निभाने के लिए दारा सिंह का चुनाव किया जाता था। नायक से चरित्र अभिनेता बनने के बाद भी उनकी यही छवि बनी रही। उन्होंने हर दौर में दर्शकों के आम तबके का मनोरंजन किया। पर्दे और अखाड़े दोनों ही जगहों पर अपनी जीत से दर्शकों और प्रशंसकों को गर्व का एहसास दिया। वे शौर्य और साहस के सिंबल बने रहे। उनकी फिल्मों और सीरियलों से अलग छवि विज्ञापनों में दिखाई देती है। वे परिवार के सम्मानित और संरक्षक सदस्य के रूप में नजर आते हैं,जिनकी सलाह में दम है। उनकी हिदायतों को टाला नहीं जा सकता।
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में वे अपनी दरियादिली और नेकदिली के लिए विख्यात रहे। धर्मेन्द्र से पहले पंजाब के इस पुत्तर का घर ही बेसहारों का आसरा हुआ करता था। अपने जीवनकाल में ही व्यक्ति से विशेषण बन चुके दारा सिंह की छवि किसी गार्जियन की हो गई थी। मृदु स्वभाव और बोली के धनी दारा सिंह की आत्मीयता संक्रामक थी। उनके व्यवहार में अघोषित वात्सल्य था। पॉपुलर स्टारों की भीड़ से उनकी छवि अलग रही,जबकि एक दौर में वे हिंदी फिल्मों के एक्शन किंग भी रहे। उन्होंने अपने साथी कलाकारों के हित में अनेक कार्य किए।
-अजय ब्रह्मात्मज
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