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    अगर आशा न करती ऐसा काम तो साधना होतीं इस फिल्म की हिरोइन

    By Manoj KhadilkarEdited By:
    Updated: Tue, 11 Apr 2017 12:51 PM (IST)

    आशा पारेख दिलीप कुमार की शुक्रगुजार हैं जिन्होंने आशा को परी नाम दिया ,लेकिन इस नाम के साथ वो सहज नहीं थी और फिर शशधर साहब से रिक्वेस्ट कर अपना ओरिजनल नाम ही रहने दिया।

    अगर आशा न करती ऐसा काम तो साधना होतीं इस फिल्म की हिरोइन

    अनुप्रिया वर्मा, मुंबई। खालिद मोहम्मद की आशा पारेख पर लिखी आॅटोबायोग्राफी 'द हिट गर्ल' रिलीज़ हो चुकी है। इसमें आशा पारेख ने अपनी जिंदगी के तमाम किस्सों का विवरण है, जिसमें से एक उनकी साधना पर जीत का भी है।

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    ' द हिट गर्ल' नाम की इस किताब में आशा पारेख लिखती हैं " मैं गूंज उठी शहनाई में रिजेक्ट हो चुकी थी। उसके बाद शशधर मुखर्जी मुझे लगातार कह रहे थे कि मुझे फिल्मालय स्कूल आॅफ एक्टिंग ज्वाइन करना चाहिए, जहां साधना भी एक्टिंग का कोर्स कर रही थीं। मैं वहां हिस्सा नहीं बनना चाहती थीं। मुझे तो यही लगता था कि एक्टिंग भी सीखी जा सकती है क्या? मैंने दो दिनों के बाद ही क्लास अटेंड करना छोड़ दिया था। क्लास बंक करना शुरू किया तो मुझे शशधर का फिर से मैसेज आया कि क्लासेज करो क्योंकि वही हिरोइन बनाने में तुम्हारी मदद देगा।"

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    आशा आगे लिखती हैं " उस वक्त नासिर हुसैन रोमांटिक म्यूजिकल फिल्मों पर काम कर रहे थे। फिल्मालय की पहली फिल्म शम्मी कपूर और नूतन के साथ बनने वाली थी लेकिन वह बन न सकी। फिर मुझे और साधना को फिल्म दिल देके देखो के ऑडिशन के लिए एक ही शॉट दिया गया। किसी एक को चुना जाना था। आरके नायर ने उस वक्त नासिर साहब से कहा कि वह साधना को लांच करना चाहते हैं। फिर विभूति मित्रा ने शशधर साहब से कह दिया कि मैं हीरोइन मटेरियल नहीं लगती लेकिन शुक्र है शशधर साहब ने उनकी बात नहीं सुनी। मैंने आॅडिशन दिया। उस दिन मैंने सलवार कमीज पहन रखी थी। मुझे कुछ क्लोज अप्स और मीड शॉट में डायलॉग बोलने थे। नासिर साहब को मेरे क्लोज अप शॉट्स पसंद आये। साधना आरके नायर की फिल्म 'लव इन शिमला' के लिए फाइनल हुईं और मुझे 'दिल दे के देखो' मिली।" आशा पारेख बताती हैं कि यही नहीं इसके साथ ही उन्हें फिल्मालय की तरफ से तीन फिल्मों का कांट्रैक्ट भी मिला। साथ ही 11 हजार रुपये की राशि भी , जो उनकी पहली कमाई थी।

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    आशा पारेख दिलीप कुमार की शुक्रगुजार हैं जिन्होंने आशा को परी नाम दिया ,लेकिन इस नाम के साथ वो सहज नहीं थी और फिर शशधर साहब से रिक्वेस्ट कर अपना ओरिजनल नाम ही रहने दिया। आशा पारेख की पहली फिल्म 'दिल दे के देखो ' 1959 में रिलीज हुई थी और साधना की फिल्म 'लव इन शिमला' 1960 में।