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    नहीं रहे शालीन हास्य के अभिनेता 'देवेन वर्मा'

    149 फिल्मों में काम कर चुके देवेन वर्मा का आज पुणे में निधन हो गया। वे 78 साल के थे। 1961 से 2003 तक हिंदी फिल्मों में काम करने के बाद उन्हों ने अभिनय से संन्यास ले लिया था। वक्त के साथ हिंदी फिल्मों में आए बदलाव के साथ वे

    By deepali groverEdited By: Updated: Tue, 02 Dec 2014 01:01 PM (IST)

    पुणे। 149 फिल्मों में काम कर चुके देवेन वर्मा का आज पुणे में निधन हो गया। वे 78 साल के थे। 1961 से 2003 तक हिंदी फिल्मों में काम करने के बाद उन्हों ने अभिनय से संन्यास ले लिया था। वक्त के साथ हिंदी फिल्मों में आए बदलाव के साथ वे तालमेल नहीं बिठा सके थे। उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि जब कोई असिस्टैंट डायरेक्टर सिगरेट झाड़ते हुए शॉट के लिए बुलाने आती है तो अच्छा नहीं लगता। हमारे समय में कलाकारों की इज्जत थी। उम्र बढऩे के साथ नई किस्म की फिल्मों में रोल मिलने भी कम हो गए थे। ऐसी स्थिति में देवेन वर्मा ने विश्राम करना ही उचित समझा। फिल्मोंं से उनका नाता टूट नहीं सकता था। वे पूना में दोस्तों के निजी थिएटर में फिल्में देखा करते थे। उन्हें 'विकी डोनर' बहुत अच्छी लगी थी।

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    नए कलाकारों में उन्हें रणबीर कपूर सबसे ज्यादा पसंद थे। देवेन वर्मा कच्छ के रहने वाले थे। उनके पिता बलदेव सिंह वर्मा का चांदी का कारोबार था। बड़ी बहन की पढ़ाई के लिए उनके माता-पिता पूना शिफ्ट कर गए थे। देवेन वर्मा को मिमिक्री का शौक था। पढ़ाई के सिलसिले में मुंबई आने के बाद वे जॉनी ह्विस्की के साथ स्टेज पर मिमिक्री किया करते थे। ऐसे ही एक शो में बीआर चोपड़ा ने उन्हें देखा था। उन्होंने देवेन वर्मा को 1961 में 'धर्मपुत्र' फिल्म ऑफर की। 600 रूपए पारिश्रमिक में मिले। यह फिल्म नहीं चली थी। बीआर चोपड़ा की ही 1963 में आई 'गुमराह' से उन्हें पहचान मिली। इस फिल्म में वे अशोक कुमार के नौकर बने थे। बाद में रियल लाइफ में वे अशोक कुमार के दामाद बने। उन्होंने अशोक कुमार की बेटी रुपा गांगुली से शादी की।

    1975 में आई 'चोरी मेरा काम' में उनका काम बेहद सराहा गया। इसके लिए उन्हें फिल्म फेअर पुरस्कार भी मिला। उन्हें 'अंगूर' के लिए भी फिल्म फेअर पुरस्कार मिला था। इस फिल्म में बहादुर के डबल रोल में उन्होंने संजीव कुमार का पूरा साथ दिया था। देवेन वर्मा की कॉमिक टाइमिंग जबरदस्तद थी। चेहरे पर निर्विकार भाव लाकर चुटीली बातें करना उनकी खासियत थी। उन्होंने अपने समकालीन दूसरे कॉमेडियन की तरह फूहड़ता का सहारा नहीं लिया। उनके हास्यी-विनोद और हाव-भाव में शालीनता रहती थी।

    देवेन वर्मा ने फिल्मों का निर्माण किया और एक फिल्म 'नादान' निर्देशित की। निर्माता और निर्देशक के तौर पर उन्हें अधिक कामयाबी नहीं मिली। उन्हों ने एक भोजपुरी फिल्म भी की थी। 'नैहर छूटल जाए' नाम की इस फिल्म में उनकी हीरोइन कुमकुम थीं। देवेन वर्मा अपने समकालीनों के बीच अत्यंत लोकप्रिय रहे। शशि कपूर उनके खास दोस्त थे। उन्होंने अमिताभ बच्चन के साथ भी अनेक फिल्में कीं। उनके साथ वे स्टेज शो करते थे। 1993 में पूना शिफ्ट करने के बाद भी वे अभिनय करते रहे। उनकी आखिरी फिल्म 'सबसे बढ़ कर हम' थी, लेकिन आखिरी रिलीज 'कलकत्तो मेल' रही।

    (अजय ब्रह्मात्मज)