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यूपी चुनाव: सातवें चरण में इन बड़े नेताओं की किस्मत दांव पर

सातवें चरण में कुछ बड़े चेहरे हैं जिनकी साख दांव पर लगी है। जानते हैं उन बड़े चेहरों के बारे में...

By Abhishek Pratap SinghEdited By: Published: Wed, 08 Mar 2017 07:07 AM (IST)Updated: Wed, 08 Mar 2017 10:47 AM (IST)
यूपी चुनाव: सातवें चरण में इन बड़े नेताओं की किस्मत दांव पर
यूपी चुनाव: सातवें चरण में इन बड़े नेताओं की किस्मत दांव पर

नई दिल्ली, जेएनएन। सड़क, पेयजल, बिजली और उद्योगों की बदहाली जैसी तमाम ज्वलंत समस्याओं का सामना कर रही यूपी की जनता बुधवार को आखिरी यानि सातवें चरण के लिए मतदान कर रही है। उनके जेहन में जात-पात की बजाय विकास कराने का दमखम रखने वाले और मजबूत इच्छाशक्ति वाले जनप्रतिनिधि का चेहरा सामने होगा।

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2012 में जौनपुर जिले की 9 विधानसभा सीटों में से 7 पर समाजवादी पार्टी (सपा) ने विजय हासिल की थी जबकि भाजपा और कांग्रेस के खाते में 1-1 सीट गई थी। सपा सरकार में पारसनाथ यादव, जगदीश सोनकर और शैलेन्द्र यादव के तौर पर जिले को 3 मंत्री मिले, मगर इक्का-दुक्का विकास कार्यों को छोड़कर इस जिले की हालत पहले के मुकाबले और बदतर हुई है।


प्रत्याशी- पारसनाथ यादव, विधानसभा क्षेत्र- मल्हनी, पार्टी– सपा
मल्हनी विधानसभा क्षेत्र में सपा सरकार में प्रदेश के ग्रामीण अभियंत्रण मंत्री पारसनाथ यादव की राह इस दफा आसान नहीं है। इनका मुकाबला निषाद पार्टी के प्रत्याशी एवं पूर्व सांसद धनंजय सिंह, भाजपा के सतीश सिंह और बसपा के विवेक यादव से है। यहां से धनंजय सिंह निर्दलीय विधायक चुने जा चुके हैं।


प्रत्याशी- विजय मिश्र, विधानसभा क्षेत्र- ज्ञानपुर, पार्टी- निषाद राज पार्टी
भदोही जिले में स्तिथ ज्ञानपुर को महाराजा काशी नरेश की धरती भी कहा जाता है। ज्ञानपुर का अपना अलग सियासी महत्व भी है। 2007 तक इस विधानसभा से जो भी एक बार विधायक बना, उसे दोबारा जीत नसीब नहीं हुई मगर ये बात बाहुबली विजय मिश्रा के लिए एक अपवाद साबित हुई।


विजय मिश्रा की छवि हमेशा एक बाहुबली नेता की रही है। चाहे अवैध बालू खनन की बात हो या फिर लोगों पर जबरन मनमानी करने का, विजय मिश्रा पर 26 अलग-अलग मुकद्दमे दर्ज हुए हैं। इसे बाहुबल नहीं तो और क्या कहें कि वो 2012 में जेल से चुनावी मैदान में उतरे और रिकॉर्ड वोटों से जीते।


सब कुछ सही था और इस बार भी लग रहा था कि विजय समाजवादी साइकिल पर सबसे आगे निकल जाएंगे मगर पार्टी ने उन्हें टिकेट की रेस से ही बहार कर दिया। मिश्रा की जगह रामरती भारती को यांपुर से समाजवादी-कांग्रेस गठबंधन का उम्मीदवार बनाया गया।


प्रत्याशी- अजय राय, विधानसभा क्षेत्र- कोल असला, पार्टी – कांग्रेस
उत्तर प्रदेश में वाराणसी संसदीय सीट की पिंडरा विधानसभा सीट से वर्तमान विधायक अजय राय भी पूर्वाचल के बाहुबलियों में ही शुमार किए जाते हैं। जिले की यह एकलौती विधानसभा है, जिसका इतिहास काफी रोचक रहा है। कभी कोलअसला के नाम से बहुचर्चित यह सीट कम्युनिस्टों का गढ़ हुआ करती थी, लेकिन सीपीआई नेता उदल के इस किले में अजय राय ने ऐसी सेंध लगाई कि पिछले 20 वर्षो से उन्हें हराने में यहां कोई कामयाब नहीं हो पाया।


प्रत्याशी- अलका राय, विधानसभा क्षेत्र- मोहम्मदाबाद, पार्टी- भाजपा
मोहम्मदाबाद सीट पर मुख्तार अंसारी के भाई सिबगतुल्लाह के खिलाफ बीजेपी की अलका राय चुनाव लड़ रही हैं। आपको बता दें कि अलका राय के पति और विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के आरोप में मुख्तार जेल में है।

मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट भी गाजीपुर की चर्चित सीटों में गिनी जाती है। साल 2005 में तत्कालीन भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के बाद यह सीट सुर्खियों में आई थी। उनकी हत्या के बाद हालांकि उनकी पत्नी अलका राय को जनता की सहानुभूति मिली और उप चुनाव जीतने में कामयाब रही थीं। हालांकि उस समय बसपा ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा था।

नवंबर 2005 में हुई भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या का आरोप गाजीपुर के ही बाहुबली और मउ सदर से विधायक मुख्तार अंसारी पर लगा था। साल 2002 में मुख्तार के बड़े भाई शिवगतुल्लाह अंसारी इस सीट से जीतने में कामयाब रहे थे।


प्रत्याशी- सिबगतुल्ला अंसारी, विधानसभा क्षेत्र- मोहम्मदाबाद, पार्टी- बसपा
बाहुबली नेता मुख्तार अंसारी के भाई सिबगतुल्ला अंसारी की साख भी 2017 के विधानसभा चुनाव में दांव पर लगी हुई है। सिबगतुल्ला को इस बार बहुजन समाज पार्टी ने मोहम्ममदाबाद सीट से अपना प्रत्याशी बनाया है। आपको बता दें कि बहुजन समाज पार्टी से मुख्तार अंसारी के रिश्ते खराब हो जाने के बाद उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया था। बीएसपी से निकाले जाने के बाद तीनों अंसारी भाइयों मुख्तार, अफजाल अंसारी और सिबगतुल्लाह अंसारी ने 2010 में खुद की राजनीतिक पार्टी कौमी एकता दल का गठन किया।

सिबगतुल्लाा अंसारी ने 2012 में कौमी एकता दल के टिकट पर मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ा और वह विजयी भी रहे थे। पेशे से टीचर अंसारी भाइयों में सबसे बड़े सिबगतुल्लाह अंसारी दो बार विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं। सिबगतुल्लाह के छोटे भाई बाहुबली मुख्तार अंसारी साल 1996 में बसपा के टिकट पर विधायक चुने गए थे। चार बार विधायक रहे मुख्तार अंसारी पिछले 11 सालों से जेल में बंद हैं।

प्रत्याशी- कैलाश चौरसिया, विधानसभा क्षेत्र- मीर्जापुर, पार्टी- सपा
मिर्जापुर में भाजपा को यहां से पहला विधायक सरजीत सिंह डंग के रूप में मिला। डंग साहब लगातार चार चुनाव जीते, लेकिन 2002 में सपा के कैलाश चौरसिया ने उनका तिलिस्म भेद दिया। तब से यहां से कैलाश चौरसिया ही विधायक हैं। अखिलेश सरकार में वो राज्य मंत्री बनाए गए, इसलिए इलाके में लोग उन्हें मंत्रीजी कहते हैं।
पूरे प्रदेश में वैश्य समाज बीजेपी का पारंपरिक वोटर माना जाता है, पर मिर्जापुर में कैलाश चौरसिया के असर से वह सपा को मिलता है। पिछले चुनाव में भाजपा यहां तीसरे नंबर पर थी।


कैलाश चौरसिया चौथी बार चुनाव जीतने के लिए लड़ रहे हैं और उनका मुकाबला बसपा के मोहम्मद परवेज खान और बीजेपी के रत्नाकर मिश्रा से है। संघ से जुड़े रहे रत्नाकर मिश्रा मिर्जापुर के मशहूर विंध्यवासिनी मंदिर के वरिष्ठ पुजारियों में से हैं।


प्रत्याशी- धनंजय सिंह, विधानसभा क्षेत्र- मल्हनी, पार्टी- निषाद राज पार्टी
धनंजय का नाम उत्तर प्रदेश की राजनीति में बाहुबली नेताओं में शुमार है। उन्होंने दो बार विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की है। उनका जौनपुर की राजनीति में अच्छा खासा प्रभाव है और उन्होंने अपना पहला चुनाव निर्दलीय लड़कर जीता था। इसके बाद 2007 के चुनाव में भी धनंजय ने लगातार दूसरी बार जीत हासिल की, लेकिन इस बार उन्होंने जेडीयू के टिकट पर चुनाव लड़ा।
धनंजय सिंह 2017 के विधानसभा चुनाव में अब एक बार फिर मल्हनी से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।


प्रत्याशी- राम रति बिंद, विधानसभा क्षेत्र- ज्ञानपुर, पार्टी- सपा
राम रति बिंद ज्ञानपुर विधानसभा के नेवादा रोहीं गांव के रहने वाले हैं। रामरती बिंद 1974 ससोपा, बीकेडी व मुस्लिम मजलिस तीन पार्टियों के गठबंधन के प्रत्याशी के तौर पर ज्ञानपुर से पहली बार विधायक हुए। 1989 में जनता दल से दोबारा विधायक चुने गए। इस सरकार में वह मत्सय विभाग में मंत्री भी रहे।


2002 में मिर्जापुर भदोही लोकसभा सीट समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के रूप में जीत हासिल की और बसपा के नरेन्द्र कुशवाहा को हराकर सांसद बने। 2006-07 में बसपा की सरकार बनने पर यह बसपा में चले गए। बसपा ने 2007 में इन्हें योजना आयोग का उपाध्यक्ष बना दिया।


2014 लोकसभा चुनाव के ठीक पहले बिंद भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा ने इनके बदले विरेन्द्र सिंह मस्त को प्रत्याशी को लोकसभा का टिकट दिया तो भाजपा भी छोड़ दी। इसके बाद ये भाजपा छोड़कर जदयू में चले गए, पर वहां भी टिकट नहीं मिला तो प्रत्याशी तेजबहादुर का प्रचार किया। लोकसभा चुनाव के कुछ समय बाद ही उन्होंने सपा का दामन संभाला और अब ज्ञानपुर विधानसभा से सपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं।

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