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यूपी विधानसभा चुनावः मोदी की रैली के बाद कन्नौज ने बदला सियासी मिजाज

मुख्यमंत्री अखिलेश यादव फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जनसभा के बाद जनता में खेमेबंदी साफ नजर आ रही है लोगों के अपने- अपने तर्क भी हैं।

By Ashish MishraEdited By: Published: Fri, 17 Feb 2017 11:11 AM (IST)Updated: Fri, 17 Feb 2017 07:11 PM (IST)
यूपी विधानसभा चुनावः मोदी की रैली के बाद कन्नौज ने बदला सियासी मिजाज

परवेज अहमद, लखनऊ। कन्नौज के विशेष इत्र में शुमार 'शमामा की तासीर सा यहां का सियासी मिजाज भी गर्म है। लोग न सिर्फ मुखर हैैं बल्कि जिन्हें वे 'भैया-भाभी (अखिलेश-डिंपल) मानकर प्यार लुटाते रहे, इस बार उनसे भी गिला-शिकवा है। यह उन प्रबंधकों के चलते है जो खुद को उनके नुमाइंदों से ज्यादा 'बड़ा मान कर व्यवहार करते आ रहे हैं।
बस सिर्फ ढाई साल पहले की बात है, जब लखनऊ से इत्र नगरी कन्नौज पहुंचने में तीन घंटे से अधिक का समय लगता था, मगर लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस-वे ने सफर आसान कर दिया है। दो साल बाद पौने दो घंटे में कन्नौज पहुंचे तो यहां की रंगत बदली सी दिखी। एक नया शहर आकार लेता नजर आया। मॉल, मेडिकल कालेज, नए पुलों का निर्माण होता दिखा, मगर सियासी फिजां में शमामा की तासीर सी गर्मी थी। अमूमन यहां के बाशिंदों का राजनीतिक स्वभाव विशेष 'खस इत्र की प्रवृति की तरह ठंडा दिखता रहा है। सवाल के जवाब में लखना चौराहे के पास मोहम्मद अमीन भड़क गए। कहा कि पहले भैया-भाभी (मुख्यमंत्री अखिलेश यादव व कन्नौज की सांसद डिपंल यादव) खुद बात करते रहते थे।

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लोगों को जब-तब फोन भी करते थे, मगर अब कुछ कहना-बताना हो तो 'मैनेजरों (कुछ लोगों के नाम भी लिया) को ढूंढ़ो। उनकी बात को तस्दीक करते हुए इरशाद, अजय यादव ने भी हां में हां मिलाई। एक ने कहा कि यहां के प्रत्याशी ही कहते घूम रहे हैं कि 'अपने भैया को मुख्यमंत्री बनाना है तो वोट दो। वे कहते हैं कि सालों से जिस दल के साथ रहे हैं, उसके साथ ही रहेंगे, मगर इस बार शिकायत तो है। तिर्वा रोड पर दिनेश शुक्ल कहते हैं कि कन्नौज में संाप्रदायिक खेमेबंदी है, इससे कोई इन्कार नहीं कर सकता। जनता किसकी ओर झुकेगी, कहा नहीं जा सकता।
कन्नौज कोतवाली, हाजीगंज, यूसुपुर भगवान, कछोहा, कटरी पुरवा, करनजौली गांव के लोगों ने समाजवादी सरकार में ओहदा पाने वालों के नाम का उल्लेख करते हुए कहा कि इनका जनाधार कहां है? क्यों इन्हें इतने बड़े ओहदे मिले। यह शायद उनका गुस्सा ही था कि कह गए- 'जब दूसरे दल को महत्व मिलना है तो हम उसी के साथ क्यों न रहें? हालांकि इन क्षेत्रों के लोग यह भी जोड़ते हैं कि भैया आये थे, सब ठीक करने का भरोसा दिया है। कुछ विचार करेंगे।

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कन्नौज सुरक्षित क्षेत्र से छिबरामऊ विधानसभा की ओर बढऩे पर कठगरा, कबीरपुर, कमालपुर, ककराहा गांव के नागरिकों का नजरिया साफ नजर आया। इस बात का रंज था कि 'साइकिल से जीते विधायक कुछ चुनिंदा लोगों के घर ही आते-जाते रहे। इस क्षेत्र के सीमावर्ती में क्षेत्र में पहले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जनसभा के बाद जनता में खेमेबंदी साफ नजर आ रही थी। लोगों के अपने तर्क थे।
यहां वर्ष 2012 के चुनाव पर नजर डालें तो जब समाजवादी पार्टी की हवा बह रही थी, तब अरविंद यादव बसपा के ताहिर हुसैन सिद्दीकी से महज 2426 वोट से चुनाव जीत पाये थे। भाजपा की अर्चना पांडेय तीसरे स्थान पर रही थीं।

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कन्नौज जिले की तीसरी सीट तिर्वा कस्बे के अलावा कढ़ेरा कनौली, कन्सुआ, कपूरपुर उमेद, ककरधारा में लोग सियासी बातों पर खुलकर बोलते हैं। तिर्वा कस्बे के नारायन यादव कहते हैं कि इस क्षेत्र में अति पिछड़े मतदाताओं की तादाद बहुत अधिक है, सपा को इसके हिसाब से प्रत्याशी तय करना चाहिए था। वह आंकड़ों के साथ बताते हैं कि वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में विजय बहादुर पाल को 78 हजार से अधिक वोट मिले थे, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी बसपा के कैलाश सिंह राजपूत को 45899 वोटों से संतोष करना पड़ा था। भाजपा के आलोक वर्मा तीसरे नंबर पर थे, मगर इस बार हवा बदली हुई है। यहां लोग कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरसरायगंज में जिस अंदाज में समाजवादी परिवार पर हमला किया, उससे समीकरणों में बदलाव आया है। फिजां भी बदली है। जो नया गुल भी खिला सकती है। कौन हारेगा-कौन जीतेगा यह तो 11 मार्च को पता चलेगा, इसमें कोई शक नहीं है कि इस बार समाजवादी दुर्ग में चुनावी मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है।

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2012 का परिणाम एक नजर में
कन्नौज (सुरक्षित)
अनिल दोहरे (सपा)-95702
महेन्द्र दोहरे (बसपा)-50020
बनवारी दोहरे (भाजपा)-42220

तिर्वा
बिजय बहादुर पाल-(सपा)-78391
कैलाश राजपूत -(बसपा)-45899
आलोक वर्मा- (भाजपा)-32302

छिबरामऊ
अरविंद सिंह यादव- (सपा): 70372
ताहिर सिद्दीकी-(बसपा): 67946
अर्चना पांडेय-(भाजपा): 61823

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कन्नौज के तीन सांसद सीएम बने
एक तथ्य यह है कि कन्नौज के सांसद रहे तीन लोग मुख्यमंत्री के ओहदे तक पहुंचे। इनमें से दो के बीच पिता-पुत्र का रिश्ता है। 1984 में कन्नौज से सांसद निर्वाचित हुई शीला दीक्षित दिल्ली की मुख्यमंत्री बनी। इस पद लंबा समय गुजारा, इस दौरान केन्द्र में भी कांग्रेस की ही सरकार रही। 1999 में मुलायम सिंह यादव ने कन्नौज से चुनाव लड़ा। सांसद निर्वाचित हुए। एक साल के अंदर वह मुख्यमंत्री हो गये। अपनी सियासी विरासत उन्होंने अपने बेटे अखिलेश यादव को सौंपी। 2000 के उपचुनाव में अखिलेश यादव को प्रत्याशी बनाया। वह भी सांसद निर्वाचित हुए।

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इसके बाद वह 2004 व 2009 में कन्नौज से सांसद निर्वाचित हुए। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा को बहुमत मिलने पर मुलायम सिंह ने बेटे अखिलेश को मुख्यमंत्री का ताज पहनाया। सांसद पद से इस्तीफा देने के साथ अखिलेश ने पिता से मिली राजनीतिक विरासत आगे बढ़ाने का जिम्मा पत्नी डिम्पल यादव को सौंपा। वर्ष 2012 के उपचुनाव में निर्विरोध सांसद चुनी गई। वर्ष 2014 में वह दोबारा सांसद चुनी गईं। इस विधानसभा चुनाव में उनकी लोकप्रियता का भी इम्तिहान होगा।

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अस्तित्व में न आ सका संपेरा गांव
संपेरा समाज के समग्र विकास की मंशा से अखिलेश सरकार ने कन्नौज के सौरिख ब्लाक में संपेरा गांव बसाने का फैसला लिया था। इस गांव के लिए भूमि अधिग्रहण की अधिकारियों को हिदायत दी गई। मगर यह योजना अस्तित्व में नहीं आ सकी है। नया गांव बसाने के पीछे संपेरों की पारंपरिक कला निखारने में मदद और उनको सुरक्षा भी देना था। इस गांव को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाना था।


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