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    चुनाव बाद के गणित में महागठबंधन से बाहर हुए छोटे दल, जानिए क्या है बिहार का हालिया समीकरण

    By Dhyanendra SinghEdited By:
    Updated: Mon, 05 Oct 2020 07:34 AM (IST)

    बिहार चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा और मुकेश सहनी की वीआइपी को महागठबंधन में बनाए रखने की कांग्रेस की ओर से कोशिश की गई। लेकिन राजद नेता तेजस्वी यादव शुरू से कुशवाहा पर भरोसा करने को तैयार नहीं थे।

    राजद को छोटी पार्टियों के विधायकों के पाला बदलने का डर था।

    संजय मिश्र, नई दिल्ली। बिहार के दोनों प्रमुख गठबंधनों में बनाव-बिखराव की सियासत केवल सीटों के झगड़े का मामला नहीं है। दरअसल, इस दांवपेंच में गठबंधन की बड़ी पार्टियां चुनाव बाद की राजनीतिक परिस्थितियों में छोटे दलों पर भरोसा करने को तैयार नहीं हैं। महागठबंधन के मामले में यह बात तो सौ फीसद सही है कि राजद को छोटी पार्टियों के विधायकों के पाला बदलने का डर था। इसीलिए उसने जान-बूझकर रालोसपा और वीआइपी जैसे दलों के लिए गठबंधन से बाहर जाने की परिस्थितियां बनाईं। कुशवाहा से हमदर्दी रखते हुए भी कांग्रेस इस बारे में हालिया अनुभवों को देखते हुए राजद से असहमति जाहिर नहीं कर पाई।

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    बिहार चुनाव से जुड़े कांग्रेस के एक शीर्ष रणनीतिकार ने इस बारे में कहा कि बेशक उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा और मुकेश सहनी की वीआइपी को महागठबंधन में बनाए रखने की कांग्रेस की ओर से कोशिश की गई। लेकिन, राजद नेता तेजस्वी यादव शुरू से कुशवाहा पर भरोसा करने को तैयार नहीं थे। उनका कहना था कि मनचाही संख्या में सीट देने के बाद एक तो उनके विधायक अपेक्षित संख्या में शायद ही जीतकर आएं। दूसरे जीतकर आएंगे भी तो नई विधानसभा में आंकड़ों का गणित निकट का रहा तो भाजपा के लिए रालोसपा के विधायकों को तोड़ना कोई मुश्किल काम नहीं होगा। बिहार के पिछले दो चुनावों में रालोसपा के विधायकों के चुनाव बाद पार्टी छोड़ सत्ताधारी खेमे में शामिल होने का उदाहरण भी राजद ने दिया।

    कांग्रेस की ओर से तेजस्वी को समझाने का हुआ काफी प्रयास

    पार्टी सूत्रों ने कहा कि हालांकि कुशवाहा से सहानुभूति होने के कारण कांग्रेस की ओर से तेजस्वी को समझाने का काफी प्रयास हुआ। लेकिन, राजद नेता रालोसपा पर जोखिम लेने को तैयार नहीं हुए। गोवा, मणिपुर से लेकर मध्य प्रदेश तक में विधायकों के पाला बदलने के कारण सत्ता गंवा चुकी कांग्रेस भी राजद के इस तर्क की काट नहीं कर पाई। राजग छोड़कर आए कुशवाहा से सहानुभूति पर राजद ने हरियाणा में दुष्यंत चौटाला की पार्टी का उदाहरण दिया। दुष्यंत ने चुनाव तो भाजपा को सत्ता से बाहर करने के नाम पर लड़ा। मगर चुनाव बाद भाजपा की सरकार बनवाने में अहम भूमिका निभाई और खुद उप मुख्यमंत्री बन गए। तेजस्वी ने कांग्रेस नेतृत्व से कुशवाहा को लेकर इसी तरह की आशंका भी जताई थी। इसीलिए तय हुआ कि महागठबंधन की अधिकतर सीटों पर राजद और कांग्रेस लड़े, क्योंकि बड़ी पाíटयों को चुनाव बाद तोड़ना भाजपा के लिए मुश्किल होगा।

    कांग्रेस के रणनीतिकार ने कहा कि मौजूदा दौर में सियासत में जो प्रयोग किए जा रहे हैं, उनके मद्देनजर चुनाव ही नहीं बल्कि नतीजों के बाद विधायकों को तोड़फोड़ से बचाए रखने की रणनीति अहम हो गई है। रालोसपा और वीआइपी जैसी पार्टियां गठबंधन का हिस्सा होतीं, तो भी इनके विधायकों की संख्या दो अंकों में नहीं पहुंचती। ऐसे में इन पार्टियों के दो तिहाई विधायकों के पाला बदलने की आशंका कहीं ज्यादा रहती। कुशवाहा को जहां पहले ही राजद के रुख का आभास हो गया था, वहीं वीआइपी को आखिरी वक्त में तेजस्वी ने जब झुनझुना थमाया, तो मुकेश सहनी के लिए रूठकर महागठबंधन से बाहर जाने के सिवाय रास्ता नहीं बचा।