दिल्ली की सड़कों पर दौड़ रहे ई रिक्शाओं को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट का रूख स्वागतयोग्य है। अदालत का यह कहना एकदम दुरुस्त है कि नियमों के दायरे में लाए बगैर ई-रिक्शाओं को राजधानी की सड़कों पर चलाने देने की अनुमति नहीं दी जा सकती। यह सही है कि बड़ी संख्या में लोगों की रोजी-रोटी इससे जुड़ी है लेकिन इस नाम पर सियासत नहीं की जानी चाहिए। राजधानी की सड़कों पर दौड़ रहे लाखों वाहनों के बीच ई रिक्शाओं के उतर आने से यातायात व्यवस्था का बुरा हाल हो गया है। इनकी वजह से सड़क जाम हो रहा है, दुर्घटनाएं भी हो रही हैं। इन दुर्घटनाओं में कुछ लोगों की जान भी जा चुकी है। ई रिक्शा को लेकर कानूनी स्थिति बेहद लचर है। चूंकि यह मोटर वेहिकल एक्ट के तहत नहीं आता, लिहाजा इसके खिलाफ यातायात पुलिस कोई कार्रवाई नहीं कर रही। चिंताजनक बात यह है कि यदि इसकी चपेट में आने से किसी की मौत हो जाए, तो उसके परिजनों को कोई मुआवजा भी नहीं मिल सकता।

दिल्ली की सड़कों पर वाहनों के भारी दबाव के मद्देनजर यह बहस भी चलती रही है कि यहां रिक्शों के परिचालन की अनुमति होनी चाहिए अथवा नहीं। गरीबों के रोजगार का आसान साधन बताकर रिक्शों के परिचालन की वकालत की जाती है। अब ई रिक्शाओं को लेकर भी ऐसी ही दलीलें दी जा रही हैं। लेकिन ऐसी दलीलों को आधार बनाकर पूरे शहर की सड़कों पर यातायात को चरमराने नहीं दिया जा सकता। लेकिन सियासी लोग इस मुद्दे को राजनीतिक रंग देने पर तुले हैं। ऐसे वक्त में अदालत का कड़ा रूख केन्द्र व दिल्ली दोनों ही सरकारों के लिए एक स्पष्ट दिशा-निर्देश की तरह है। इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि इन्हें बेलगाम दिल्ली की सड़कों पर चलाए जाने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। यदि इन्हें ऐसे ही दौड़ने दिया गया तो आने वाले दिनों में शहर की समस्याएं और बढ़ेंगी। ई रिक्शा अभी ही हजारों की संख्या में दिखाई दे रहे हैं। आने वाले दिनों में इनकी संख्या में और इजाफा होगा और सड़कों पर स्थिति बेकाबू हो जाएगी। दुर्घटनाओं में इजाफा होगा और सहूलियत के बदले इनसे मुसीबत बढ़ेगी। लिहाजा, दिल्ली सरकार को चाहिए कि वह अदालत के आदेश के मद्देनजर त्वरित कार्रवाई करते हुए इन्हें नियमों के दायरे में लाए अथवा इनका परिचालन तत्काल बंद करे।

[स्थानीय संपादकीय: दिल्ली]