गैरसैंण में सत्र
गैरसैंण एक बार फिर चर्चा में है। हरीश रावत सरकार यहां नौ जून से विधानसभा का चार दिवसीय सत्र बुलाने जा रही है। सरकार के कदम की इस मायने में सराहना की जा सकती है कि पहाड़ में बैठकर सरकार मंथन करना चाहती है, लेकिन इस आशा के बीच आशंकाओं के सवाल भी हैं। दरअसल, गैरसैंण का मुद्दा भावनाओं से जुड़ा हुआ ह
गैरसैंण एक बार फिर चर्चा में है। हरीश रावत सरकार यहां नौ जून से विधानसभा का चार दिवसीय सत्र बुलाने जा रही है। सरकार के कदम की इस मायने में सराहना की जा सकती है कि पहाड़ में बैठकर सरकार मंथन करना चाहती है, लेकिन इस आशा के बीच आशंकाओं के सवाल भी हैं।
दरअसल, गैरसैंण का मुद्दा भावनाओं से जुड़ा हुआ है और सरकारें इस मामले को सांकेतिक प्रतिबिंब के रूप में इस्तेमाल करती रही हैं। उत्तराखंड बने तेरह साल से अधिक का वक्फा बीत चुका है और इस दौरान राजधानी का मुद्दा पूरी तरह से राजनीति में तब्दील हो चुका है। लगता नहीं कि इस अरसे में किसी भी सरकार ने गंभीरता से विचार किया हो।
राजधानी के मसले पर प्रदेश में आई सरकारों की मंशा पर हमेशा सवाल उठते रहे हैं। यह तथ्य प्रदेश के हर नागरिक को कचोटता प्रतीत हो रहा है कि क्या गैरसैंण में विधानसभा सत्र आयोजित करने मात्र से पहाड़ ने विकास के कुछ कदम तय किए। मसलन, गैरसैंण में विधान भवन की नींव तो पड़ गई, लेकिन निर्माण कहां तक पहुंचा, इस बारे में शायद ही कोई बात सामने आई हो। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या निर्माण निर्धारित अवधि में हो पाएगा।
अब जरा वास्तविकता पर भी नजर दौड़ाई जाए। पलायन से पहाड़ आहत हैं, गांव खाली हो रहे हैं और इसकी सबसे बड़ी वजह है मूलभूत सुविधाओं का अभाव। पर्वतीय अंचलों में जीवन पूरी तरह संघर्ष का पर्याय बन चुका है। सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य और बिजली-पानी के लिए हर जगह नजर आते हैं तो आंदोलन करते लोग। ज्यादातर जिलों में स्कूल भवनों की कमी नहीं, लेकिन शिक्षक मैदानी इलाकों में तैनाती चाहते हैं। इसी तरह अस्पतालों के भवन हैं, मगर चिकित्सक नहीं। ऐसा नहीं कि सरकार प्रयास नहीं कर रही, लेकिन यह भी सच्चाई है कि कहीं न कहीं इन प्रयासों में कमी रह गई, यही वजह है कि सरकारी अफसर या कर्मचारी पहाड़ में तैनाती मिलते ही सुगम स्थलों के लिए जुगाड़ भिड़ना शुरू कर देते हैं। ऐसे गांवों की कमी नहीं, जहां आज तक बिजली की रोशनी नहीं पहुंच पाई। इसमें दो राय नहीं कि जहां बिजली-पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सुविधाएं नहीं होंगी वहां रहना कोई क्यों पसंद करेगा। हकीकत यह है कि उत्तराखंड के लिए गैरसैंण भावनाओं से जुड़ा मुद्दा है तो सुशासन जरूरत का हिस्सा।
जरूरत इस बात की है कि सरकार ऐसे इंतजाम करे कि लोग अपने घर-गांव से दूर न हों। उम्मीद की जानी चाहिए कि गैरसैंण में आयोजित सत्र को लेकर पब्लिक के बीच में जो संदेश जाए, उससे यह लगना चाहिए कि सरकार का मकसद सैर सपाटा नहीं, बल्कि पहाड़ की पीड़ा पर मरहम लगाने के लिए कुछ ठोस करना था।
(स्थानीय संपादकीय: उत्तराखंड)














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