-----बेतहाशा अवैध पशुवध के खिलाफ हिंदू और मुसलमान दोनों ही तबकों से अक्सर आवाजें उठती रही हैं। -----नि:संदेह मुख्यमंत्री का गौ तस्करी, अवैध पशु वध पर तत्काल प्रभावी रोक और असरदार कानून व्यवस्था का निर्णय स्वागत योग्य है। जनमत के इस सम्मान की सराहना की ही जानी चाहिए। सर्वविदित है कि हाईकोर्ट इलाहाबाद और राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के अवैध बूचड़खानों पर रोक के आदेश की लंबे अरसे से धज्जियां उड़ाई जा रही थीं पर सत्ता के संरक्षण ने उसी प्रशासनिक मशीनरी को पंगु बना दिया जो योगी राज में दो दिन से अवैध पशुवध के खिलाफ प्रभावी अभियान छेड़े हुए है। मांसाहार व्यक्ति का नितांत निजी मामला है पर इसकी आड़ में प्रदेश भर में अरबों रुपये का अवैध कारोबार चिंताजनक स्थिति में पहुंच गया था। कायदे कानून को ताख पर रख चल रहे बूचड़खानों ने नगरीय और कई ग्रामीण इलाकों में नारकीय हालात पैदा कर दिये। पशु कटान से बहने वाले रक्त और अवशेषों ने पर्यावरण प्रदूषण को भयावह बना दिया। बेहद मुनाफे के मांस कारोबार से बड़ी संख्या में लोगों के जुड़ने का नतीजा रहा कि भैंस मांस के निर्यात में उत्तर प्रदेश देश में सबसे ऊपर पहुंच गया। कुल निर्यात में प्रदेश की भागीदारी 28 प्रतिशत से भी ज्यादा होने से अनुमान लगाया जा सकता है कि बूचड़खानों से निकलने वाली गंदगी भूजल, नदियों और हवा को किस कदर प्रदूषित कर रही होगी। प्रदेश में लंबे अरसे से तीन सबसे बड़ी चुनौतियां कानून व्यवस्था, आर्थिक विकास और सामाजिक सद्भाव की रही हैं। दुर्भाग्य से इन्हें पूरी तरह नजरअंदाज किया गया। नतीजतन उपद्रव नहीं रुके, गौवध को लेकर कई लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा। समाधान की दिशा और दशा पर सुविचार करने की इच्छा शक्ति का अभाव गहरी खाई को और चौड़ा करता चला गया। बेतहाशा अवैध पशु वध, गौवध के खिलाफ हिंदू और मुसलमान दोनों ही तबकों से अकसर आवाज उठती रही हैं। मेरठ के लिए कलंक बना 56 साल पुराना बूचड़खाना तत्कालीन नगर विकास मंत्री द्वारा ध्वस्त कराने जैसे उदाहरण भी हो सकते हैं जब दोनों ही तबकों की बड़ी आबादी को नारकीय यंत्रणा से मुक्ति मिली। अवैध कटान से दुग्ध उत्पादन में क्रांतिकारी परिवर्तन भी देखने को मिल सकते हैं। प्रदूषण के कलंक से भी राहत मिलेगी। विशेष स्वच्छता अभियान के प्रति जनचेतना जाग्रत करने की दिशा में ठोस पहल का सभी को खुले मन से स्वागत करना चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तर प्रदेश ]