जींद जिले के अलेवा गांव में धर्म परिवर्तन सामाजिक व प्रशासनिक स्तर पर गंभीर चिंता का विषय है। समझ से बाहर है कि हरियाणा में एकाएक ऐसी परिस्थितियां कैसे उभर आईं जो लोगों को धर्म बदलने के लिए मजबूर कर रही हैं? अलेवा में तीन दर्जन दलित परिवारों ने एक साथ ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया। अहम सवाल यह है आखिर किस मजबूरी में ये लोग ऐसा कदम उठा रहे हैं? क्या कोई आर्थिक प्रलोभन उन्हें आगे बढ़ा रहा है? गांव के हालात बता रहे हैं कि धर्म चर्चा के नाम पर धर्म परिवर्तन के लिए आधार अर्से से तैयार किया जा रहा है। धर्म प्रचारक तो यह कह कर पीछा छुड़वा सकता है कि किसी को जबरन ईसाई नहीं बनाया जा रहा लेकिन स्थानीय प्रशासन का अहम दायित्व है कि जमीनी हकीकत का पता लगाए। वास्तविकता यह है कि सामान्य परिस्थितियों में धर्म या आस्था में बदलाव नहीं होता। वर्तमान धर्म के देवी-देवताओं के प्रति आस्था किसी मजबूरी, बाध्यता या प्रलोभन के कारण ही बदलती है। यह काम तब होता है जब यह भी पता हो कि धर्म बदलने के लिए किसके पास जाना पड़ेगा। अलेवा जैसा आस्था परिवर्तन कुछ वर्ष पूर्व हिसार जिले में हो चुका। गंगवा, लुदास गांवों में प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन का भंडाफोड़ हुआ तो इसके तार हिसार शहर से होते हुए अंबाला तक जुड़े पाए गए। क्रुद्ध लोगों ने पादरी की पिटाई तक की, धर्म परिर्वतन में जुटे अन्य लोग गायब हो गए थे। उस समय बच्चों को निश्शुल्क शिक्षा, वर्दी तथा बड़ों को नौकरी का लालच दिया गया था। प्रशासन व सामाजिक संगठनों की सक्त्रियता से धमरंतरण पर तात्कालिक रोक लग गई थी लेकिन उन्हीं लोगों ने यह खेल अन्यत्र शुरू कर दिया। स्थानीय स्तर पर जांच करवाई जानी चाहिए कि धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार की गलत व्याख्या करके आमजन की मानसिकता बदलने की कोशिश तो नहीं की जा रही? किसी सुनियोजित षड्यंत्र के तहत तो यह सब नहीं हो रहा? एक जाति विशेष में ही धर्म का परिवर्तन क्यों हो रहा है? राज्य में मामूली जागरूक को भी विभिन्न सरकारी योजनाओं की जानकारी है। अन्य को भी जागरूक किया जाना चाहिए। इस काम में सरकारी संस्थाओं के साथ सामाजिक संगठनों को भी मिल कर प्रयास करने चाहिए। सुनिश्चित किया जाए कि बलपूर्वक या प्रलोभन में एक भी व्यक्ति धर्म परिवर्तन न करे। धर्म परिवर्तन हरियाणा की संस्कृति का हिस्सा नहीं, किसी भी स्तर पर इसे प्रोत्साहन नहीं मिलना चाहिए।

[स्थानीय संपादकीय: हरियाणा]

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