झारखंड में अच्छी बारिश की वजह से बेहतर पैदावार हुई लेकिन पुरानी लीक पर हो रही खेती के कारण किसानों को इसका फायदा नहीं मिल सका। खासकर टमाटर की खेती करनेवाले किसानों की तो कमर ही टूट गई है। वे औने-पौने दाम पर अपना उत्पाद बेचने को विवश हैं। इसका फायदा बिचौलियों और व्यापारियों को मिल रहा है। दरअसल, राजधानी समेत आसपास के इलाकों में सब्जी की अच्छी पैदावार होती है लेकिन शीत गृह और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग नहीं रहने के कारण उन्हें उत्पाद का बेहतर मूल्य नहीं मिल पाता है। इस ओर शासन और कृषि विभाग को ध्यान देना चाहिए। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग लगाने का दावा कई बार किया गया लेकिन इस दिशा में प्रयास फाइलों से आगे नहीं बढ़ पाया। कृषि मार्केटिंग बोर्ड ने भी इस बाबत आवश्यक पहल नहीं की। नतीजतन किसान मारे-मारे फिर रहे हैं। अगर खाद्य प्रसंस्करण उद्योग यहां लगाए गए होते तो टमाटर का उत्पादन करनेवाले किसानों को अपना फसल खेत में ही नहीं छोड़ना पड़ता।
कृषि विभाग को इस दिशा में भी ध्यान देना चाहिए कि किसान परंपरा से हटकर खेती करें। खासकर दलहन और तिलहन फसलों की खेती कर बेहतर लाभ कमाया जा सकता है लेकिन व्यापक जागरूकता के अभाव में किसान लीक से हटकर खेती नहीं कर पा रहे हैं। खेती के नए और अत्याधुनिक तौर-तरीके को किसान अपनाएं। यह समय की मांग है। आपूर्ति में ज्यादा गैप होने से गर्मी के दिनों में सब्जियों की कीमत आसमान छूती है जबकि उत्पादन बढ़ने के बाद कीमत घट जाती है। इसका बेहतर प्रबंधन करना होगा। विकसित राज्यों में किसान लीक से हटकर खेती करते हैं और भरपूर मुनाफा भी कमाते हैं। झारखंड के किसानों को भी इसका गुर समझना होगा। कृषि विभाग को चाहिए कि वह किसानों के लिए पर्याप्त प्रशिक्षण की व्यवस्था कराए। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की भी इसमें मदद ली जा सकती है। कृषि विश्वविद्यालय में होने वाले शोध किसानों के लिए कारगर साबित हो सकते हैं। इसे ध्यान में रखते हुए अगर खेती की जाए तो किसानों को सीधा फायदा होगा। मार्केटिंग बोर्ड को भी सक्रिय करना होगा। ऐसा नहीं हुआ तो कृषकों की हालत नहीं सुधरेगी। राज्य सरकार ने कृषि के लिए अलग से बजट समेत सिंचाई के बेहतर प्रबंधन सुनिश्चित किए हैं। इसका पूरा लाभ उठाने के लिए तंत्र को कारगर करना होगा।

(स्थानीय संपादकीय: झारखंड)