अगर आम आदमी पार्टी ने अपनी प्राथमिकताएं नहीं बदली हैं तो फिर इस नतीजे पर पहुंचने के अलावा और कोई उपाय नहीं कि वह अपने पथ से बुरी तरह भटक चुकी है। चुनावी दौरे पर गुजरात गए आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल से राज्य पुलिस की पूछताछ और कथित रोक-टोक कोई इतना बड़ा मसला नहीं था कि इस दल के कार्यकर्ता दिल्ली में भाजपा मुख्यालय पर हमला बोल देते। उन्होंने शांतिपूर्ण प्रदर्शन के नाम पर ठीक ऐसा ही किया। उन्होंने यही काम लखनऊ और अन्य स्थानों पर भी करने की कोशिश की। इसके चलते वह कहीं-कहीं पीटे भी गए अथवा जवाबी पत्थरबाजी का शिकार बने। अब वे देश को यह समझाने में लगे हुए हैं कि हम तो गांधीवादी हैं और अराजक किस्म के धरना-प्रदर्शन करने में यकीन ही नहीं करते। इतना ही नहीं वे यह भी साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि दिल्ली पुलिस मनमानी पर उतर आई है और दरअसल वह नरेंद्र मोदी से मिली हुई है। ये सारे तर्क विचित्र तो हैं ही, इस दल की जगहंसाई कराने वाले भी हैं। आप के नेता यह जाहिर करने के लिए व्यर्थ में अतिरिक्त मेहनत कर रहे हैं कि वे तो कभी गलत हो ही नहीं सकते। उनकी मानें तो उनके अलावा खोट शेष सब में है। नि:संदेह भाजपा कार्यकर्ताओं की जवाबी पत्थरबाजी का बचाव नहीं किया जा सकता, खासकर लखनऊ में उनकी ओर से की गई बदले की कार्रवाई, लेकिन ऐसा लगता है कि शायद आप के नेता यह भी अपेक्षा कर रहे थे कि उनके हमले के जवाब में भाजपा कार्यकर्ता मूक दर्शक बने रहते।

यह घोर निराशाजनक है कि जो दल नई किस्म की राजनीति करने और लोकतांत्रिक मूल्यों-मर्यादाओं के प्रति हर हाल में प्रतिबद्ध रहने का दावा कर रहा है वही उन तौर-तरीकों का इस्तेमाल करने में हिचक नहीं रहा जिन्हें अराजक ही कहा जाएगा। भाजपा मुख्यालय के बाहर हुए उपद्रव पर दिल्ली पुलिस की प्रारंभिक जांच और अन्य प्रमाणों के आधार पर चुनाव आयोग की ओर से आम आदमी पार्टी को दी गई नोटिस इस दल के नेताओं की पोल खोलने के लिए पर्याप्त है। यह दल तेजी के साथ अपने हाथों अपनी साख गंवाने का काम कर रहा है। यदि आप के नेताओं ने अपना रवैया और तौर-तरीके नहीं बदले तो फिर आम जनता को सचेत हो जाना चाहिए, क्योंकि हर समस्या का समाधान सड़कों पर उतरने अथवा बार-बार धरना-प्रदर्शन करने से नहीं हो सकता। दुर्भाग्य से आप के रवैये से यही लगता है कि उसने अंतिम सत्य के तौर पर यह मान लिया है कि सभी समस्याओं का समाधान सड़कों पर निकलकर खोजा जा सकता है। आप की ओर से किसी को यह बताना ही चाहिए कि गुजरात पुलिस की कार्रवाई के जवाब में भाजपा कार्यालयों के बाहर अपने समर्थकों को क्यों जुटाया गया और इस बारे में पुलिस-प्रशासन को कोई सूचना देने की भी जरूरत क्यों नहीं समझी गई? यह ठीक नहीं कि आप अपने लिए अलग तरह के नियम-कानूनों की अपेक्षा करे। उसके नेताओं की ओर से केवल यह कहने से काम नहीं बनेगा कि हम कानून का पालन करते हैं। यह उनके आचरण में भी झलकना चाहिए। जब ऐसा होगा तभी उसके इस दावे पर भरोसा किया जा सकता है कि वह लोकतांत्रिक मूल्यों-मर्यादाओं के प्रति प्रतिबद्ध है।

[मुख्य संपादकीय]