बदहाल कृषि व किसान
पंजाब एक कृषि प्रधान प्रदेश है, लेकिन वर्तमान में यहां सबसे अधिक दुर्गति कृषि और किसान की ही है। प्रदेश में खेती करना लगातार महंगा होता जा रहा है और किसानों के लिए लागत निकालना भी मुश्किल हो रहा है।
पंजाब एक कृषि प्रधान प्रदेश है, लेकिन वर्तमान में यहां सबसे अधिक दुर्गति कृषि और किसान की ही है। प्रदेश में खेती करना लगातार महंगा होता जा रहा है और किसानों के लिए लागत निकालना भी मुश्किल हो रहा है। प्रदेश का किसान लगातार कर्ज के दलदल में धंसता जा रहा है। यही कारण है कि पिछले कुछ समय से यहां किसानों की आत्महत्या की खबरें लगातार चर्चा में हैं। प्रदेश के किसी न किसी जिले से आए दिन किसान की आत्महत्या की खबर सामने आ रही है। गत दिवस भी मानसा के बुढलाडा में कर्ज से परेशान एक किसान ने अपनी जान दे दी। इसके अतिरिक्त किसानों को गेहूं की अदायगी भी समय पर नहीं हो पा रही है। यही कारण है कि नाराज आढ़तियों व किसानों ने मंगलवार को अमृतसर-पठानकोट हाइवे पर जाम लगा दिया। वहीं दूसरी ओर अनाज के रखरखाव के पर्याप्त प्रबंध न होने के कारण इनकी भी बड़े पैमाने पर बर्बादी हो रही है। गत दिवस बठिंडा में यही देखने को मिला, जहां मार्कफेड के खुले गोदाम में आग लगने से सत्तर हजार से अधिक गेहूं की बोरियां जल गईं। अन्न की बदहाली का आलम यह है कि प्रदेश में विभिन्न स्थानों पर खुले में रखा अनाज सड़ चुका है और वह पशुओं के खाने के योग्य भी नहीं है। एक कृषि प्रधान प्रदेश के लिए ऐसे हालात निस्संदेह दुर्भाग्यपूर्ण हैं। मुख्यमंत्री भी इसे लेकर चिंतित दिखाई दे रहे हैं और गत दिवस उन्होंने केंद्र सरकार से खेती संकट के हल के लिए दखल देने की मांग भी की है, लेकिन महज मुख्यमंत्री के चिंतित होने से संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता है। प्रदेश सरकार को अपनी तरफ से भी किसानों की समस्याओं के हल के लिए ठोस व कारगर कदम उठाने चाहिएं। इससे पूर्व कि हरित क्रांति के अगुवा रहे प्रदेश में कृषि व किसानों की हालत और बदतर हो इसमें सुधार के लिए केंद्र व प्रदेश सरकार को मिलकर शीघ्र समाधान ढूंढऩा होगा। यह सुनिश्चित करना होगा कि पंजाब एक बार फिर कृषि के क्षेत्र में देश को दिशा दिखाए और यहां का किसान फिर से खुशहाल हो सके।
[ स्थानीय संपादकीय : पंजाब ]














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