बंगाल में साढ़े तीन दशकों तक सत्ता में रहने वाली माकपा की परेशानी बढ़ती ही जा रही है। इसका प्रमाण माकपा राज्य नेतृत्व के बयानों से मिल रहा है। अब कामरेड मान रहे हैं कि लोकसभा चुनावों के नतीजे के बाद माकपा कार्यकर्ता पार्टी छोड़कर भाजपा का दामन थाम रहे हैं। माकपा राज्य सचिव व वाममोर्चाचेयरमैन विमान बोस ने बुधवार को आरोप लगाया कि भाजपा हमारे कार्यकर्ताओं व समर्थकों को प्रलोभन देकर पार्टी में शामिल होने के लिए प्रेरित कर रही है। हालांकि, जब उनसे यह पूछा गया कि भाजपा किस तरह का प्रलोभन दे रही है, तो उन्होंने कुछ भी कहने से इन्कार कर दिया। यहां सवाल यह उठता है कि अपने कार्यकर्ताओं व समर्थकों को भाजपा में शामिल होने से माकपा नेतृत्व रोकने में क्यों नाकाम हो रहे हैं? इसके लिए कौन जिम्मेदार है? माकपा का राज्य या फिर केंद्रीय नेतृत्व? माकपा क्यों नहीं आज की राजनीति के हिसाब से पार्टी नेताओं की सोच व मानसिकता बदल रही है? बोस ने बुधवार को कहा कि बंगाल के भाजपा नेता हमारी पार्टी के युवा व छात्र नेताओं को प्रलोभन दे रहे हैं। वे हमारे समर्थकों को समझा रहे हैं कि भारत में अब वामपंथ की राजनीति का कोई भविष्य नहीं, आप हमारी पार्टी में शामिल होते हैं तो तृणमूल कांग्रेस से भी कोई खतरा नहीं रहेगा। बोस ने कहा कि हमारे कार्यकर्ता अपनी मर्जी से भाजपा में शामिल नहीं हो रहे हैं, उन्हें ऐसा करने के लिए दबाव डाला जा रहा है। विमान से जब यह पूछा गया कि क्या तृणमूल समर्थकों की हिंसा से बचने के लिए माकपा के सदस्य भाजपा में शामिल हो रहे हैं, तो उन्होंने जवाब दिया कि ऐसी बात नहीं है, वामपंथ एक विचारधारा है। इसे भयभीत होकर नहीं छोड़ा जा सकता। बोस का कहना है कि जनाधार बढ़ाने के लिए अतीत में तृणमूल ने यह तरीका अपनाया था और अब भाजपा इस रास्ते पर चल रही है। लेफ्ट पार्टियां कार्यकर्ताओं के टूटने और उनके भगवा झंडे के तले आने से माकपा परेशान हैं। 2011 के विधानसभा चुनाव तक भाजपा बंगाल में दमदार मौजूदगी दर्ज नहीं करा पाई थी, लेकिन हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव में उसे 16.08 फीसद वोट मिले। इस तरह वह तृणमूल व माकपा के बाद राज्य में तीसरी सबसे बड़ी शक्ति बन गई। भाजपा भले ही दो सीटों पर जीत मिली है, लेकिन 13 सीटों पर 20 फीसद से ज्यादा वोट मिले हैं। भाजपा ने लेफ्ट व कांग्रेस के वोट बैंक में दमदार तरीके से सेंध लगा दी है। भाजपा के इस उभार से लेफ्ट पार्टियां ही नहीं बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी चिंतित हैं। ऐसे में माकपा क्या करे कामरेडों को कुछ नहीं सुझ रहा। इसीलिए जरूरी है कामरेड नई सोच के साथ लोगों के बीच जाए।

[स्थानीय संपादकीय: पश्चिम बंगाल]