कांग्रेस के साथ गठबंधन की सुगबुगाहट पहले से ही थी, लेकिन माकपा के प्लेनम (महाधिवेशन) से यह खबर सुर्खियों में छा गई। ऐसे में तृणमूल की चिंता स्वाभाविक है। तृणमूल कांग्रेस महासचिव व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी ने इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त कर अपनी चिंता जाहिर कर दी है। चटर्जी का कहना है कि कांग्रेस के साथ माकपा जोट (गठबंधन) नहीं, घोंट पका रही है। माकपा का पहले से ही एक जोट है, जिसका नाम वाममोर्चा है। अब ऐसी क्या जरूरत पड़ी कि वह कांग्रेस के साथ एक और जोट करना चाहती है। सिलीगुड़ी नगर निगम में वाममोर्चा के बोर्ड को आधार बना कर विधानसभा चुनाव में जोट बना कर लड़ने के बारे में सोचना हास्यास्पद है। इस तरह का जोट होने पर कांग्रेस के अधिकांश पार्टी कार्यकर्ता तृणमूल में शामिल होंगे। निचले स्तर के कांग्रेस नेता भी तृणमूल में शामिल होंगे। ऐसे कांग्रेस कार्यकर्ताओं और नेताओं के लिए तृणमूल कांग्रेस भी अपना दरवाजा खुला रखेगी। चटर्जी द्वारा इस तरह की प्रतिक्रिया देने से उनकी चिंता ही झलकती हैं, हालांकि माकपा और कांग्रेस के बीच जोट होगा कि नहीं, यह अभी भविष्य के गर्भ में है।

तृणमूल कांग्रेस अक्सर कांग्रेस को तोड़ती रही है। 2011 में तृणमूल कांग्रेस ने कांग्रेस के साथ जोट किया था। तृणमूल ने अपनी शतोर्ं पर जोट किया था, जिसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ा। उस समय कांग्रेस 294 सीटों में से आधी पर चुनाव लड़ना चाहती थी। राजनीतिक हवा बदलने के संकेत तो पहले ही मिल चुके थे। इसलिए ममता ने कांग्रेस को 60 सीटों से अधिक पर लड़ने का मौका नहीं दिया, हालांकि अंतिम क्षण तक कांग्रेस ने कुछ और अधिक सीटें देने के लिए ममता बनर्जी से अनुनय-विनय किया, लेकिन वे 60 से अधिक सीटें देने को तैयार नहीं हुईं। प्रदेश कांग्रेस तभी से खार खाई हुई है। कांग्रेस में ममता विरोधी नेता किसी भी शर्त पर तृणमूल के साथ जोट नहीं करना चाहते हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर चौधरी घोर ममता विरोधी हैं। वे किसी भी शर्त में तृणमूल के साथ जोट नहीं करना चाहते हैं। उन्हें मालूम है कि तृणमूल कांग्रेस के साथ जोट करने पर कांग्रेस की क्षति होगी। अब तक आधा दर्जन से अधिक कांग्रेस विधायक टूट कर तृणमूल में चले गए हैं। विधानसभा चुनाव आने तक कांग्रेस के निचले स्तर के और नेता तृणमूल में शामिल होंगे। पार्थ के बयान से तो ऐसा ही लगता है। तृणमूल कांग्रेस के साथ जोट होता है तो कांग्रेस का क्षय होना तय है। यही कारण है कि प्रदेश कांग्रेस के अधिकांश नेता तृणमूल के साथ जोट नहीं चाहते हैं और यही तृणमूल की चिंता का विषय है। ममता पहले ही सोनिया गांधी से मिल कर माकपा से कांग्रेस को दूर करने की कोशिश कर चुकी हैं। अब देखना है कि राज्य की राजनीति क्या करवट लेती है।

{स्थानीय संपादकीय: पश्चिम बंगाल}