मुंबई हमले के पांच बरस बाद भी इस शहर के साथ-साथ शेष देश की आंतरिक सुरक्षा के परिदृश्य में कोई खास तब्दीली न नजर आना और इस हमले की साजिश रचने वालों के खिलाफ पाकिस्तान की ओर से कोई कार्रवाई न किया जाना निराशाजनक है। इतना ही निराशाजनक यह भी है कि पश्चिमी देश और विशेष रूप से अमेरिका मुंबई हमले के गुनहगारों को सजा दिए जाने के बारे में महज औपचारिक टिप्पणियां करने तक सीमित है। इसका कोई औचित्य नहीं कि मुंबई हमले की रस्मी तौर पर याद की जाए और इस दौरान अफसोस के चंद शब्द कहकर कर्तव्य की इतिश्री की जाए। दुर्भाग्य से हर स्तर पर ऐसा ही रहा है। आखिर कब तक यह कहा जाता रहेगा कि भारतवासी मुंबई हमले को कभी भूल नहीं पाएंगे? नि:संदेह यह एक ऐसी घटना है जो सदैव टीस देती है। यह टीस तब और बढ़ जाती है जब इस ओर ध्यान जाता है कि इस भीषण आतंकी हमले की साजिश रचने वाले पाकिस्तान में सजा से कोसों दूर हैं। पाकिस्तान इस हमले के षड्यंत्रकारियों के खिलाफ कार्रवाई के नाम पर न केवल बहानेबाजी कर रहा है, बल्कि ऐसे जतन भी कि उन्हें कभी सजा न मिल सके। शर्मनाक यह है कि अमेरिकी नीति-नियंता पाकिस्तान के इस रवैये से अच्छी तरह परिचित होने के बावजूद अनजान से बने हुए हैं। ऐसा लगता है कि अमेरिका के साथ-साथ अन्य पश्चिमी देशों की रुचि इसमें है कि भारत और पाकिस्तान के रिश्ते तल्ख बने रहें। शायद ये देश केवल यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि भारत और पाकिस्तान उनके हथियारों की खरीदारी करते रहें। वे पाकिस्तान सरकार पर किसी भी तरह का दबाव बनाने के इच्छुक नजर नहीं आते।

इस मामले में सबसे अधिक निराशाजनक रवैया अमेरिका का है, जो आतंकवाद के खिलाफ अभियान का अगुआ तो बने रहना चाहता है, लेकिन उन आतंकी संगठनों और तत्वों के खिलाफ कोई कार्रवाई करने के लिए तैयार नहीं जो भारत के लिए खतरा बने हुए हैं। सच तो यह है कि उसने ऐसे तत्वों की इस हद तक अनदेखी की कि वे भारत को नुकसान पहुंचाने में सक्षम रहे और इसका सबसे बड़ा उदाहरण पाकिस्तानी मूल का लश्कर आतंकी डेविड हेडली है। अमेरिका ने उसका हरसंभव बचाव ही किया। स्थिति इसलिए और अधिक निराशाजनक है, क्योंकि खुद हमारे नीति-नियंता पाकिस्तान पर दबाव बनाने के मामले में अपने स्तर पर कुछ करने के लिए तैयार नहीं। वे कभी उसे मुंबई हमले के गुनहगारों के खिलाफ कोई कार्रवाई न होने और उसकी जमीन में भारत विरोधी आतंकियों के फलने-फूलने की याद दिलाते हैं और कभी उसके साथ मित्रता की बातें करते हैं। शायद इसी ढुलमुल रवैये के कारण पाकिस्तान ढिठाई का परिचय देने में लगा हुआ है। इस निराशाजनक परिदृश्य के बीच चिंता की एक बात यह भी है कि भारत अपनी आंतरिक सुरक्षा के ढीले तंत्र को चुस्त-दुरुस्त करने में नाकाम है और यही कारण है कि पांच साल बाद भी मुंबई की सुरक्षा के लिए वे सभी उपाय नहीं किए जा सके हैं जो आवश्यक माने जा रहे हैं। जैसी सुस्ती आंतरिक सुरक्षा के तंत्र को दुरुस्त करने में दिखाई जा रही है वैसी ही आतंकवाद से लड़ने के मामले में भी।

[मुख्य संपादकीय]

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