पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे के बाद जो सवाल सबसे अधिक कौतूहल का विषय बना हुआ था वह यही था कि सबसे प्रभावशाली जीत वाले उत्तर प्रदेश की कमान किसके हाथ होगी? इस सवाल का जवाब योगी आदित्यनाथ के रूप में सामने आया। मुख्यमंत्री के साथ ही किसी नेता के उप मुख्यमंत्री बनने की भी चर्चा थी। जल्द ही एक के बजाय दो उप मुख्यमंत्रियों की चर्चा होने लगी और अंतत: ऐसा ही हुआ, लेकिन यह आश्चर्यजनक है कि मुख्यमंत्री के साथ-साथ उप मुख्यमंत्रियों के पद उनके खाते में गए जो विधानसभा चुनाव लड़े ही नहीं। यह स्पष्ट ही है कि योगी आदित्यनाथ का चयन मुख्यमंत्री के तौर पर और केशव प्रसाद मौर्य एवं दिनेश शर्मा का उप मुख्यमंत्रियों के रूप में होने पर तरह-तरह के सवाल उठेंगे। इन सवालों का एक स्वाभाविक जवाब यही हो सकता है कि जातीय समीकरणों का ध्यान रखना ही पड़ता है। चूंकि यह काम सभी दलों को करना पड़ता है इसलिए यह कोई मसला नहीं बनने वाला, लेकिन इस सवाल को एक मुद्दा बनाने की कोशिश हो सकती है कि आखिर जातीय संतुलन के साथ ही क्षेत्रीय संतुलन का ध्यान क्यों नहीं रखा गया और उप मुख्यमंत्री का एक पद पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हिस्से में क्यों नहीं आया? मंत्रियों के रूप में योगी आदित्यनाथ के सहयोगियों के चयन के समय इस सवाल का जवाब देने की कोशिश हो सकती है, लेकिन यह स्पष्ट ही है कि मुख्यमंत्री के साथ दो उपमुख्यमंत्री की नियुक्ति एक नया प्रयोग है। इस प्रयोग का लक्ष्य केवल जातिगत संतुलन कायम करना नहीं, बल्कि विकास के सभी मोर्चों को प्राथमिकता देना होना चाहिए। ऐसा करके ही दो उप मुख्यमंत्रियों के औचित्य को आसानी से सही ठहराया जा सकता है।
भाजपा ने उत्तर प्रदेश का चुनाव भी न केवल सबका साथ-सबका विकास नारे के साथ लड़ा, बल्कि उसे बार-बार दोहराया भी। बीते कुछ दिनों में भाजपा अध्यक्ष के साथ-साथ प्रधानमंत्री ने भी इस नारे को खास तौैर पर रेखांकित किया है। गत दिवस प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि विकास को आंदोलन बनाने की आवश्यकता है। इसकी आवश्यकता सबसे अधिक उत्तर प्रदेश में ही दिखती है। उत्तर प्रदेश की नई सरकार के समक्ष सबका साथ सबका विकास नारे को सार्थक साबित करने की जो चुनौती है वह पहले दिन से पूरी होती हुई दिखनी चाहिए। उत्तर प्रदेश के नए शासन को इस विचार के प्रति भी समर्पित दिखना चाहिए कि सरकार भले ही बहुमत से बनती हो, लेकिन वह चलती सर्वमत से है। योगी आदित्यनाथ का मुख्यमंत्री पद पर आसीन होना और केशव प्रसाद मौर्य एवं दिनेश शर्मा को उप मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल होना उनके लिए एक उपलब्धि के साथ एक चुनौती भी है। यह चुनौती इसलिए और बढ़ गई है, क्योंकि उत्तर प्रदेश में भाजपा को प्रबल जनादेश मिला है और भारी भरकम जनादेश आम जनता की उम्मीदों को और बढ़ा देता है। योगी आदित्यनाथ सरकार को उम्मीदों को पूरा करने के साथ-साथ आशंकाओं को दूर करने का भी काम करना होगा। वह एक तेज तर्रार छवि वाले नेता हैं। यह स्पष्ट ही है कि उन्हें अब अपनी तेजी उत्तर प्रदेश को तेजी के साथ सही दिशा की ओर ले जाने में दिखानी होगी।

[ मुख्य संपादकीय ]