हादसे कब तक
हिमाचल प्रदेश में हादसे ऐसे नियमित क्रम की तरह हैं जिन्हें रोका जाना चाहिए। चंबा जिले के चंबा-जोत मार्ग पर शुक्रवार को मणिमहेश श्रद्धालुओं की गाड़ी लुढ़कने से छह की मौत हो गई, जबकि
हिमाचल प्रदेश में हादसे ऐसे नियमित क्रम की तरह हैं जिन्हें रोका जाना चाहिए। चंबा जिले के चंबा-जोत मार्ग पर शुक्रवार को मणिमहेश श्रद्धालुओं की गाड़ी लुढ़कने से छह की मौत हो गई, जबकि कुल्लू में पार्वती परियोजना की साइट की तरफ टनल में काम करने जा रहे मजदूरांे से भरे टेंपो पर चट्टानें गिरने से चार मजदूरों ने दम तोड़ दिया। हालांकि दोनों हादसों की परिस्थितियां अलग रही हैं, लेकिन यह हादसे बताते हैं कि अभी तक हमने कोई सबक नहीं लिया है। यह कटु सत्य है कि करीब नब्बे फीसद हादसे मानवीय चूक के कारण होते हैं। हालांकि यह जांच का विषय है लेकिन चंबा में हुआ हादसा मानवीय चूक का ही कारण माना जा रहा है। हादसे किसी भी वजह से हों लेकिन इनमें होने वाले नुकसान की भरपाई कोई नहीं कर सकता।
यह सही है कि हादसा जब होना होता है, हो ही जाता है. उसके पीछे मानवीय चूक, तकनीकी खराबी, खराब सड़कें जैसे कई तर्क दिए जा सकते हैं लेकिन मालवाहक में बैठने-बिठाने से अब तक गुरेज नहीं किया जा रहा है। क्या पुलिस हर वक्त हर स्थान पर रह कर हादसों को रोक सकती है? क्या यह संभव है कि प्रदेश के हर कोने में लगातार हो रहे हादसे बिना मानवीय विवेक के रोके जा सकें? क्या यह संभव है कि हर जगह निगरानी से ही हादसे रुकेंगे? जब तक सड़क पर चलने और वाहन चलाने का शिष्टाचार नदारद रहेगा, तब तक सुरक्षित यातायात की कल्पना करना बेमानी है। बड़े हादसे तो अपनी बारंबारता स्वयं ही याद करवाते हैं, छोटे-छोटे हादसे भी कम नहीं हो रहे हैं।
जब तक यातायात नियम मालवाहकों में सामान और सब्जियों की तरह ठूंसे जाते रहेंगे, जब तक दोपहिया चालक उन्हें हेलमेट मान कर हाथों में टांगते रहेंगे, जब तक पहियों पर अनियंत्रित गति का जुनून सवार रहेगा, तब हादसों को कौन रोक सकता है। हिमाचल प्रदेश में मालवाहकों में प्रदेश के बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं को कितने जख्म और कितना कष्ट दिया है, क्या वह किसी से छिपा है? होना यह चाहिए कि यातायात पुलिस तो यातायात नियमों को उल्लंघन करने वालों के साथ सख्ती से पेश आए ही, वाहन चालक भी समङों कि नियमों का पालन अपनी सुरक्षा के लिए भी किया जाता है। जिस तरह कांगड़ा जिले में यातायात नियमों की अनदेखी करने वालों पर सख्ती बरती जी रही है उसी तर्ज पर अन्य जिलों में भी यह अभियान चलना चाहिए। हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्य में तो नागरिकों को अधिक जिम्मेदारी से पेश आना चाहिए। आखिर मामला बेशकीमती जनधन की हानि का है, घरों में हादसों के कारण पसरते अंधेरे का है। हादसों के खिलाफ चेतना और सतर्कता अनिवार्य है। जब हर पक्ष सतर्क होगा तभी हादसे रुक सकेंगे।
(स्थानीय संपादकीय हिमाचल प्रदेश)
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