प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा साल 2014 में पहली बार स्मार्ट सिटी का जिक्र करने के बाद से ही देश में इसको लेकर उत्साह रहा है। उन्होंने तब इसे देश के कायाकल्प का जरिया बताया था। इसके जरिए वह हर वर्ग के लोगों के जीवन में गुणात्मक सुधार लाकर देश के शहरों और कस्बों को आर्थिक गतिविधियों का केंद्र बनाना चाहते हैं। स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित शहर दूसरे शहरों के लिए भी एक रोल मॉडल बनेगा। स्मार्ट सिटी मिशन के तहत पहले बीस शहरों की सूची जारी होना देश में शहरी विकास की दिशा में मील का पत्थर है। दरअसल देश और शायद दुनिया में पहली बार विभिन्न स्तरों पर कड़ी प्रतियोगिता के आधार पर विकास और निवेश के लिए शहरों का चुनाव हुआ है। इसके तहत विभिन्न राज्यों द्वारा नामित शहरों के बीच खुली प्रतियोगिता का आयोजन हुआ था। इसमें पूरी पारदर्शिता बरती गई है। इसके तहत शहरों ने स्वयं को स्मार्ट सिटी बनाने की योजना तैयार की। राज्यों ने स्मार्ट सिटी बनाने के लिए जिन शहरों का चुनाव किया है उनका भी चुनाव प्रतियोगिता के आधार पर किया गया है। 97 शहरों में से बीस शहरों के चुनाव में न तो कोई राजनीतिक हस्तक्षेप था और न ही केंद्र सरकार की कोई भूमिका थी। अब जो शहर पहली सूची में जगह नहीं बना पाए हैं उन्हें निराश होने की जरूरत नहीं है। वे स्मार्ट सिटी की सूची में मौजूद हैं। अब वे दूसरे दौर की प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए अपनी योजना में जरूरी सुधार कर सकते हैं।

कैबिनेट के फैसले के अनुसार पहले चरण में बीस शहरों को चुना जाना था, चालीस शहरों को दूसरे और शेष चालीस शहरों को तीसरे चरण में चुना जाएगा। पहले चरण में विजेता रहे बीस शहरों को इस वित्त वर्ष में दौ सौ करोड़ रुपये मिलेंगे और अगले तीन साल तक उन्हें हर वर्ष सौ करोड़ रुपये दिए जाएंगे। इस प्रकार उन्हें कुल पांच सौ करोड़ रुपये प्राप्त होंगे। पहले चरण में जिन 97 शहरों ने प्रतियोगिता में भाग लिया था उनमें से सबको केंद्र सरकार ने योजना बनाने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से जरूरी मदद लेने के लिए दो करोड़ रुपये दिए थे। भारतीय जनता पार्टी शासित छत्तीसगढ़, झारखंड और गोवा पहली सूची में जगह नहीं बना सके। इससे साफ होता है कि शहरों के चुनाव में पूरी पारदर्शिता बरती गई है और इसमें कोई पक्षपात या हेराफेरी नहीं हुई है। यही बात उत्तर प्रदेश, बिहार और तेलंगाना के बारे में भी सच है। यहां तक नेल्लौर जो कि मेरा संसदीय क्षेत्र है, वह भी इसमें स्थान नहीं पा सका। स्मार्ट सिटी प्रतियोगिता में भाग लेने वाले शहरों से कहा गया था कि वे एक व्यापक योजना और प्रस्ताव के साथ आएं जिसमें उस शहर के बारे में विस्तृत विश्लेषण हो, योजना तथा समन्वय का खाका पेश किया गया हो, साथ ही अप्रत्याशित परिस्थितियों का जिक्र किया गया हो।

दरअसल इस स्मार्ट सिटी योजना के कार्यान्वयन का मुख्य उद्देश्य यह जानना है कि किस तरह उस क्षेत्र में विकास कार्य और तकनीक का विस्तार किया जाए कि लोगों के जीवन में गुणात्मक सुधार हो, आर्थिक उत्पादन बढ़े, अवसर और नौकरी उपलब्ध हों और वांछित शहरी विकास किया जा सके। स्मार्ट सिटी के सामने आने वाली चुनौतियों का सामना करने और इच्छित सफलता हासिल करने के लिए जरूरी था कि वैसे शहरों का चुनाव किया जाए जो इस पर खरे उतरते हों। यही वजह है कि अच्छे शहरों का चुनाव करने लिए प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इस मिशन की सबसे बड़ी खूबी यह रही कि इसमें राज्यों और नगर निकायों को अपनी योजना तैयार करने में पूरी आजादी और स्वायत्तता दी गई थी, जबकि पूर्व में इसमें केंद्र सरकारों का हस्तक्षेप होता था। देश में शहरी विकास के मिशन को सफल बनाने के लिए पहली बार जनता के विचार, सुझाव और फीडबैक को इस योजना में शामिल करना अनिवार्य बनाया गया है, जबकि पूर्व में यह शासकों द्वारा थोपा जाता रहा है। जब शहरों के प्रस्ताव का अध्ययन किया जा रहा था तब जनता की राय को 16 फीसद महत्व दिया गया। जाहिर है, इस प्रक्रिया को नागरिक केंद्रित बनाया गया है। विभिन्न स्तरों पर स्मार्ट सिटी योजना तैयार करने में 1.52 करोड़ लोगों की भागीदारी रही है। यह संख्या 97 शहरों में रहने वाली कुल आबादी की 12 फीसदी है। माइगोवडॉटइन पर भी 25 लाख लोगों ने अपने विचार और सुझाव रखे। वहीं 1.70 करोड़ लोगों ने अलग-अलग माध्यमों के जरिए इसमें भागीदारी दर्ज की।

अब आगे स्मार्ट सिटी के लिए चुने गए शहरों में इनफॉर्मेशन एंड कम्युनिकेशन तकनीक का प्रयोग कर संपर्क किया जाएगा ताकि उनकी वास्तविक स्थानीय जरूरतों और समस्याओं को जाना जा सके। इस प्रकार शहरी विकास के सामने आने वाली चुनौतियों से न सिर्फ आसानी से पार पाया जा सकेगा, बल्कि जनता स्वयं की स्मार्ट सिटी को अपने ढंग से आकार दे सकेगी। पांच वर्षों के दौरान इन बीस शहरों में 50802 करोड़ रुपये निवेश का प्रस्ताव है। इस दौरान यहां कुछ मामलों में पुराने ढांचे को सुधार कर उसे नया रूप दिया जाएगा और जरूरत के अनुसार नए ढांचे भी खड़े किए जाएंगे। ग्यारह राज्यों के शहरों और केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली को पहली सूची में स्थान मिला है। स्मार्ट सिटी योजना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा संसाधान जुटाना है। चुने हुए शहरों ने इस संबंध में विस्तृत योजना दी है कि कहां से उन्हें निवेश मिल सकता है। धन के स्नोतों में केंद्र सरकार और राज्य सरकारों द्वारा पांच साल तक मिलने वाले 500 करोड़ रुपये, विभिन्न केंद्रीय और राज्य स्तरीय योजनाएं, भूमि मोनेटाइजेशन, उधार, क्षेत्र के विकास पर टैक्स आदि हैं। स्मार्ट सिटी योजना का मकसद चुने हुए बीस शहरों को सिर्फ तकनीकी रूप से स्मार्ट बनाना नहीं है, बल्कि लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है। इसके साथ ही सूचना तकनीक का प्रयोग कर शहरी सुविधाओं को सुधारना, पानी और बिजली की लागत और खपत को कम करना भी इसका लक्ष्य है।

यातायात में सुधार, पानी, ऊर्जा, कूड़े के प्रबंधन, ई-गवर्नेंस, समय पर सूचना प्रवाह के स्मार्ट तरीके, स्मार्ट ग्रिड, स्मार्ट स्वास्थ्य और शिक्षा सेवा, परिवहन के लिए स्मार्ट कार्ड, स्ट्रीट लाइटिंग, सेंट्रल कमांड एंड कंट्रोल सेंटर, वाहन ट्रैकिंग, डेटा एनालिसिस सेंटर, सीसीटीवी से निगरानी, जीपीएस युक्त रिक्शा आदि भी इन स्मार्ट शहरों की विशेषता होंगे। मेरी सोच है कि स्मार्ट सिटी लोगों के लिए हैपी सिटी हो। अन्य खूबियों के साथ-साथ स्मार्ट सिटी में नियमित पानी और बिजली की आपूर्ति, सुविधाजनक सार्वजनिक परिवहन, साइकिल और पैदल यात्रियों के लिए अलग से टै्रक, बारिश के पानी का संग्रहण, पानी की रीसाइक्लिंग, एलईडी तथा सोलर जैसी नवीन ऊर्जा का उपयोग, पानी तथा बिजली के लिए मीटर, प्रत्येक घर में शौचालय, दिव्यांगों के लिए सहूलियतें, निर्धन वर्ग के कल्याण के कार्यक्रम, उद्योग आदि होने चाहिए। प्रत्येक घर में वृक्षारोपण होना चाहिए। हर गली में पेड़ होने चाहिए। हर घर, दूकान, कांप्लेक्स के पास कूड़ेदान होने चाहिए। सार्वजनिक जगहों पर थूकने को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। सभी के लिए आवास भी स्मार्ट सिटी मिशन का हिस्सा होना चाहिए। आशा है कि हमारे शहर इन सभी खूबियों से लैस होंगे। हमारा ध्येय भारतीय शहरों में विश्वस्तरीय ढांचा खड़ा करना है।

[लेखक वेंकैय्या नायडू, केंद्रीय शहरी विकास मंत्री हैं]