कुदरत में प्रतिदिन अंधेरे व उजाले का अहसास होता रहता है। कभी अंधेरा होता है तो कभी उजाले के पल नसीब होते हैं, लेकिन ये दोनों ही पल प्रतिदिन प्राप्त होते रहते हैं। इसी प्रकार से मनुष्य के जीवन में भी अंधेरे व उजाले दोनों के ही पल आते और जाते रहते हैं, लेकिन जीवन के अंधेरे व उजाले के पल कुछ भिन्न होते हैं। इनमें कभी लंबे समय तक अंधेरा रहता है तो कभी उजाला। उजाला तो उल्लास व उमंग के साथ व्यतीत होता रहता है, किंतु अंधेरे के पलों का सामना करना ही पड़ता है, जिसके लिए माध्यम तलाशना पड़ता है। रोशनी के समान माध्यम मिलने पर यह दूर होता रहता है, अन्यथा जीवन कष्टकारी हो जाता है। ऐसी स्थिति में धैर्य की आवश्यकता होती है। धैर्य न होने पर जीवन का अंधेरा गहरा होने लगता है और यही दशा लोगों को ग्रह खराब होने का अहसास कराती है, जबकि यह तो ईश्वरी व्यवस्था है जिसमें अंधेरे व उजाले दोनों का ही अहसास होता रहता है। जीवन में अंधेरे के पलों का दूर न हो पाना वास्तव में धैर्य की परीक्षा है।

धैर्य की परीक्षा में जो पास हो जाता है, उन्हें उजाला आने पर इतना आनंद प्राप्त होता है जिससे वह अंधेरे के पलों के कष्टों को भूल जाता है, लेकिन जो धैर्य की परीक्षा में फेल हो जाता है उनके जीवन का अंधेरा प्रबल होने लगता है जिससे सकारात्मक ऊर्जा की मात्रा कम होने लगती है और नकारात्मक ऊर्जा का स्तर बढ़ने लगता है। नकारात्मक ऊर्जा का बढ़ा हुआ स्तर धैर्य की परीक्षा को आगे भी पास नहीं होने देता है। इस कारण नकारात्मक ऊर्जा का स्तर और भी बढ़ जाता है जो धैर्य की परीक्षा को कभी भी पास नहीं होने देता जिससे अंधेरे के पल बढ़ते ही जाते हैं। अंधेरे के पल बढ़ने से उजाले के पलों का कम होना स्वाभाविक है। मस्तिष्क में नकारात्मक ऊर्जा जैसे-जैसे बढ़ती है, वैसे-वैसे व्यक्ति की समझ का दायरा संकुचित होता जाता है और एक स्थिति ऐसी भी आती है जब व्यक्ति दूसरों के इशारे पर चलने लगता है। नकारात्मक ऊर्जा के स्तर को कम करने का मात्र एक ही उपाय है और वह उपाय आध्यात्मिक ऊर्जा की प्राप्ति है, जिससे जीवन में पहले की ही तरह उजाले व अंधेरे का प्राकृतिक अहसास स्वाभाविक रूप से होना प्रारंभ हो जाता है। इस ऊर्जा की प्राप्ति के लिए निरंतर प्रयास किए जाने चाहिए।

[ वीके जायसवाल ]