पूरा हुआ नोटबंदी का मकसद
भारतीय अर्थव्यवस्था के इतिहास में 8 नवंबर, 2016 का दिन बेहद निर्णायक माना जाएगा। यह दिन इस सरकार द्वारा काले धन पर प्रहार की याद दिलाता है।
अरुण जेटली
भारतीय अर्थव्यवस्था के इतिहास में 8 नवंबर, 2016 का दिन बेहद निर्णायक माना जाएगा। यह दिन इस सरकार द्वारा काले धन पर प्रहार की याद दिलाता है। भारतीय जनता भ्रष्टाचार और काले धन को लेकर ‘चलता है’ वाले रवैये को झेलने पर मजबूर थी और इसकी सबसे ज्यादा मार मध्यम वर्ग और समाज के निचले तबके को झेलनी पड़ती थी। यह देश की जनता की लंबे अरसे से छिपी हुई आकांक्षा थी कि भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ जंग छेड़ी जाए। 2014 के जनादेश पर जनता के इस भाव की छाप भी बखूबी नजर आई। हमारी सरकार ने भी इन भावनाओं को समझते हुए कमान संभालते हुए सबसे पहले काले धन पर विशेष जांच दल यानी एसआइटी के गठन को मंजूरी दी। यह किसी से छिपा नहीं रहा कि पिछली सरकार सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद सालों तक इस फैसले को लटकाए रही। बेनामी संपत्ति अधिनियम को लागू होने में 28 वर्षों की हीलाहवाली भी काले धन के खिलाफ मुहिम छेड़ने में दृढ़ इच्छाशक्ति के अभाव को ही दर्शाती है। इस सरकार ने तीन साल के दौरान तमाम फैसलों के जरिये काले धन के खिलाफ मुहिम छेड़ी है। एसआइटी गठन हो या विदेशी संपत्तियों के लिए जरूरी कानून, नोटबंदी हो या जीएसटी, सरकार ने फैसले लेने में हिचक नहीं दिखाई।
जब आज देश ‘काला धन विरोधी दिवस’ मना रहा है तो एक बहस भी शुरू हुई है कि क्या नोटबंदी की कवायद से अपेक्षित नतीजे हासिल भी हुए हैं? देश में नकदी के चलन को घटाना भी नोटबंदी का एक प्रमुख मकसद था ताकि तंत्र में काले धन के प्रवाह को कम किया जाए। ऐसे में तंत्र में मौजूद कुल मुद्रा में आई कमी से यह मकसद भी पूरा हुआ। इस साल सितंबर तक के आंकड़े दर्शाते हैं कि तंत्र में नकदी के पैमाने पर 3.89 लाख करोड़ रुपये की कमी आई है। हमें वित्तीय तंत्र से अतिरिक्त नकदी क्यों हटानी चाहिए? नकद लेनदेन क्यों घटाने चाहिए? नकदी का एक तरह से कोई सुराग नहीं होता। नकदी के मालिकों की पहचान करना भी नोटबंदी की एक मंशा थी। चूंकि 15.28 लाख करोड़ रुपये अधिकृत बैंकिंग तंत्र में आ गए हैं तो अब नकदी का एक सिरा भी मिल गया है। इसमें 1.6 से 1.7 लाख करोड़ का लेनदेन संदिग्ध है।
अब कर प्रशासन और प्रवर्तन एजेंसियां इन आंकड़ों के जरिये संदिग्धों की धरपकड़ कर सकती हैैं। इस दिशा में कदम उठा भी लिए गए हैं। आयकर विभाग ने छापेमारी के जरिये 2015-16 की तुलना में 2016-17 में दोगुनी नकदी जब्त की। साथ ही लोगों ने 15,497 करोड़ रुपये की अघोषित आमदनी स्वीकार की जो इससे पिछले साल की तुलना में 38 प्रतिशत अधिक रही। छापेमारी और स्वघोषणा को मिलाकर कुल 29,213 करोड़ रुपये मिले जो संदिग्ध लेनदेन के 18 प्रतिशत के बराबर हैं। 31 जनवरी, 2017 को शुरू किए गए ‘ऑपरेशन क्लीन मनी’ से यह अभियान और परवान चढ़ेगा। नकदी के तिलिस्म को तोड़ने का ही नतीजा है कि इस साल 5 अगस्त तक 56 लाख नए करदाताओं ने आयकर रिटर्न दाखिल किया जबकि पिछले साल यह आंकड़ा लगभग 22 लाख था। कर आधार में विस्तार और अघोषित आमदनी को वित्तीय तंत्र में वापस लाना, अग्र्रिम कर भुगतान के पैमाने पर भी इस साल अप्रैल से अगस्त के बीच 42 प्रतिशत की उछाल आई। नोटबंदी के दौरान मिले सुराग से 2.97 लाख मुखौटा कंपनियों की भी पहचान हुई। इन कंपनियों को नोटिस जारी करने के बाद कानूनी कार्रवाई के जरिये 2.24 लाख कंपनियों का पंजीकरण रद किया गया। इन कंपनियों के बैंक खातों में लेनदेन को रोकने के लिए आगे भी कार्रवाई की गई। बैंक खाते फ्रीज करने के साथ ही उनके निदेशकों की पहचान कर उनके किसी भी कंपनी में निदेशक बनने पर प्रतिबंध लगा दिया। इन 2.97 लाख कंपनियों में 28,088 कंपनियों के 49,910 बैंक खातों में 9 नवंबर से पंजीकरण रद होने तक करीब 10,200 करोड़ रुपये की राशि का लेनदेन हुआ। इनमें से तमाम कंपनियों के सौ से भी अधिक बैंक खाते और एक कंपनी के तो 2,134 खाते निकले। साथ ही आयकर विभाग ने 1,150 से अधिक मुखौटा कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई की जो 22,000 संदिग्ध लाभार्थियों के मार्फत 13,000 करोड़ रुपये से अधिक की धांधली में लिप्त थीं।
नोटबंदी के बाद सेबी ने भी स्टॉक एक्सचेंजों में एहतियाती कदम उठाए। करीब 800 से अधिक प्रतिभूतियों पर इन्हें लागू किया गया। निष्क्रिय कंपनियां अक्सर खुराफाती लोगों के हाथ का खिलौना बन जाती हैं। यह सुनिश्चित करने के लिए कि कहीं ये कंपनियां शेयर बाजार में काले धन की शरणगाह न बन जाएं, लगभग 450 संदिग्ध कंपनियों की सूचीबद्धता समाप्त की गई और उनके प्रवर्तकों के डीमैट खातों पर रोक लगाने के साथ किसी भी कंपनी में बतौर निदेशक उनकी नियुक्ति पर भी प्रतिबंध लगा दिया। पुराने क्षेत्रीय एक्सचेंजों पर सूचीबद्ध ऐसी 800 कंपनियों को भी गुमशुदा कंपनी करार दिया गया जिनका कोई ओर-छोर नहीं मिल रहा था।
बचत को वित्तीय बाजार की ओर मोड़ने में भी नोटबंदी ने अहम भूमिका निभाई। साथ ही साथ जीएसटी की ओर कदम बढ़ाने से भी अर्थव्यवस्था का स्वरूप और औपचारिक होता गया। तमाम आंकड़े इसकी पुरजोर पुष्टि करते हैं। कॉरपोरेट बांड बाजार से लेकर म्यूचुअल फंड बाजार में तेजी दर्शाती है कि लोग बचत के लिए परंपरागत माध्यमों के बजाय इन वित्तीय उत्पादों का रुख कर रहे हैं। केवल म्यूचुअल फंडों में वित्तीय प्रवाह की बात करें तो 2016-17 में ही पिछले साल की तुलना में 155 प्रतिशत की अप्रत्याशित वृद्धि दर्ज हुई और यह आंकड़ा बढ़कर 3.43 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया। वहीं बीमा कंपनियों द्वारा प्रीमियम संग्र्रह में भी नवंबर, 2016 में दोगुने की बढ़ोतरी हुई। नकदी पर कम निर्भरता के साथ ही भारत डिजिटल अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर उंची छलांग लगा चुका है। 2016-17 के दौरान क्रेडिट कार्ड के जरिये 3.3 लाख करोड़ रुपये के 110 करोड़ लेनदेन क्रेडिट कार्ड के जरिये तो डेबिड कार्ड के माध्यम से 3.3 लाख करोड़ रुपये के 240 करोड़ लेनदेन हुए। इससे पिछले साल में डेबिट कार्ड से 1.6 लाख करोड़ रुपये तो क्रेडिट कार्ड से 2.4 लाख करोड़ रुपये के लेनदेन हुए थे। इसी तरह नेटबैंकिंग में भी खासी तेजी आई।
अर्थव्यवस्था के संगठित होने से निर्धन वर्ग के लोगों को भी वे फायदे मिलने लगे हैं जिनसे वे अभी तक वंचित थे। बैंक खातों के खुलने और ईपीएफ से जहां उन्हें राहत मिली है तो भुगतान एवं मजदूरी अधिनियम में आवश्यक संशोधन उनके लिए सोने पर सुहागा साबित हुआ है। नोटबंदी के फायदे केवल आर्थिक एवं सामाजिक मोर्चे पर ही नहीं हुए, बल्कि जम्मू कश्मीर में विरोध-प्रदर्शन और पत्थरबाजी पर विराम लगने के साथ ही नक्सल गतिविधियां भी घटी हैं। जाली नोटों की बीमारी का भी इलाज हुआ। यह कहना गलत नहीं होगा कि नोटबंदी के बाद देश अधिक साफ-सुधरे, पारदर्शी और ईमानदार वित्तीय तंत्र की ओर बढ़ा है। भले ही कुछ लोगों को ये फायदे नहीं दिख रहे हों, लेकिन आने वाली पीढ़ियां जरूर इसका गुणगान करेंगी कि इसने उनके लिए पारदर्शी आर्थिक परिवेश की बुनियाद रखी।
[ केंद्रीय वित्तमंत्री की फेसबुक पोस्ट का संपादित अंश ]
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