मोदी सरकार के द्वारा झूठे अध्ययनों के आधार पर गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) को लागू करने के पुरजोर प्रयास किए जा रहे हैं। 13वें वित्त आयोग ने जीएसटी का अध्ययन करने के लिए टास्क फोर्स गठित की थी। टास्क फोर्स में नेशनल इंस्टीट्यूट आफ फाइनेंस एंड पब्लिक पॉलिसी के प्रोफेसर तथा सरकारी अधिकारियों को शामिल किया गया था। टास्क फोर्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि जीएसटी के कारण तमाम उत्पादित माल के दाम घटेंगे। इससे आम आदमी को राहत मिलेगी। सही है कि माल के दाम में गिरावट आएगी। बिना रुकावट माल एक राज्य से दूसरे राज्य में ले जाया जा सकेगा। टैक्स के संबंध में विवाद कम होंगे। चुंगी से छुटकारा मिलेगा। अर्थव्यवस्था चलेगी, जैसे अच्छा मोबिल आयल डालने से गाड़ी अच्छी तरह चलती है। यह प्रभाव सर्वव्यापी होगा। अमीर की 5000 रुपये की डिजाइनर शर्ट तथा आम आदमी की सूरत की 250 रुपये की साड़ी, दोनों के दामों में गिरावट आएगी। परंतु दूसरे कारणों से आम आदमी द्वारा खपत की तमाम वस्तुओं के दाम में वृद्धि होगी।

वर्तमान में आम आदमी तथा अमीर द्वारा खपत की जाने वाली वस्तुओं पर अलग-अलग दर से टैक्स वसूला जा रहा है। जैसे किसी राज्य द्वारा आम आदमी के मोटे कपड़े, साइकिल के टायर तथा साधारण मोबाइल फोन पर टैक्स कम तथा रेडीमेड कपड़े, कार के टायर तथा स्मार्ट फोन पर टैक्स अधिक वसूला जा रहा है। जीएसटी के लागू होने के बाद इन सभी माल पर एक ही दर से टैक्स वसूला जाएगा। फलस्वरूप आम आदमी द्वारा खपत की जाने वाली वस्तुओं के दाम कई प्रतिशत बढ़ेंगे। आम आदमी पर कुल प्रभाव नकारात्मक पड़ेगा। टास्क फोर्स ने इस पहलू को नजरअंदाज किया है और बिना विचार किए कह दिया है कि जीएसटी से गरीब को राहत मिलेगी।

वर्तमान में छोटे उद्योगों को एक्साइज ड्यूटी में राहत मिलती है। व्यक्तिगत जानकारी के आधार पर मैं कह सकता हूं कि छोटे उद्योगों के लिए यह छूट अति महत्वपूर्ण है। 1.5 करोड़ तक के उत्पादन पर इन्हें टैक्स नहीं देना होता है। इस छूट के कारण छोटे उद्योग खड़े रह सके हैं। टास्क फोर्स ने कहा है कि इस छूट को समाप्त कर देना चाहिए। फलस्वरूप छोटे उद्योग पर टैक्स का भार बढ़ेगा। बड़े उद्योगों का वे सामना नहीं कर सकेंगे और बंद हो जाएंगे। इन्हीं उद्योगों द्वारा अधिकतर रोजगार उपलब्ध कराए जा रहे हैं। इनके बंद होने से लाखों श्रमिक बेरोजगार हो जाएंगे। लेकिन टास्क फोर्स ने माना है कि अर्थव्यवस्था में एक भी व्यक्ति बेरोजगार नहीं है।

ऐसे झूठे मानकों पर यह अध्ययन किया गया है जैसे बच्चे को खाना न दिया जाए और यह मान लिया जाए कि वह खाना खा चुका है। तथापि स्वीकार करना होगा कि बड़े उद्योगों के द्वारा बाजार में सस्ता माल उपलब्ध कराया जाएगा। इस प्रकार आम आदमी पर दो विपरीत प्रभाव पड़ेंगे। छोटे उद्योगों को मिल रही छूट के समाप्त होने के कारण उन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, जबकि जीएसटी के कारण उत्पादित माल के मूल्य में मामूली गिरावट आएगी और उन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। टास्क फोर्स ने एक्साइज ड्यूटी की छूट को समाप्त किए जाने से आम आदमी पर पडऩे वाले नकारात्मक प्रभाव को अनदेखा किया है।

टास्क फोर्स ने कहा है कि जीएसटी के लागू होने के कारण व्यापार करना सरल हो जाएगा। श्रमिक की उत्पादकता बढ़ेगी। जैसे वर्तमान में श्रमिक द्वारा बनाए गए माल पर एक्साइज ड्यूटी, सेल्स टैक्स तथा चुंगी अलग-अलग वसूल की जाती है। इन झंझट में माल की लागत अनायास ही बढ़ जाती है। जैसे बाजार में एक टीशर्ट 100 रुपये की बिक रही है। मान लीजिए इस पर इन टैक्सों का बोझ तथा इनसे निपटने में लगे समय एवं घूस इत्यादि का भार 15 रुपये पड़ता है। श्रमिक द्वारा उत्पादित माल की कीमत 85 रुपये रह जाती है। जीएसटी लागू होने के बाद टैक्सों का यह बोझ घटकर 14 रुपये रह जाएगा। तदानुसार श्रमिक द्वारा उत्पादित माल की कीमत बढ़कर 86 रुपये रह जाएगी।

इस आधार पर टास्क फोर्स ने निष्कर्ष निकाला है कि जीएसटी के लागू होने से श्रमिकों के वेतन में एक प्रतिशत की वृद्धि होगी। यह निष्कर्ष पूरी तरह गलत है। श्रमिक के वेतन उसके द्वारा उत्पादित माल के मूल्य से नहीं, बल्कि श्रम बाजार में श्रमिकों की उपलब्धता से निर्धारित होता है। टैक्सी मालिक द्वारा इंडिका को बेचकर इनोवा खरीद ली जाए तो ड्राइवर के वेतन में वृद्धि नहीं होती है, क्योंकि इनोवा चलाने को बाजार में पर्याप्त संख्या में ड्राइवर उपलब्ध हैं। जीएसटी से केवल कंपनी के मालिक का लाभ बढ़ेगा जैसे इनोवा के मालिक का लाभ अधिक होता है। टास्क फोर्स ने बिना किसी आधार के मान लिया है कि इनोवा के ड्राइवर के वेतन इंडिका के ड्राइवर से ज्यादा होते हैं। इसी प्रकार नेशनल काउंसिल फॉर अपलाइड इकोनामिक रिसर्च द्वारा एक अध्ययन किया गया है। इन फर्जी अध्ययनों के आधार पर मोदी सरकार कह रही है कि जीएसटी प्रणाली आम आदमी केलिए लाभप्रद होगी, जबकि वस्तुस्थिति बिल्कुल विपरीत है।

जीएसटी के इन नकारात्मक पहलुओं के बावजूद इसमें गुण है कि खपत पर टैक्स बढ़ेगा। देश की आर्थिक उन्नति के लिए जरूरी है कि हम निवेश अधिक मात्रा में करें। इसके लिए खपत कम करनी होगी। जीएसटी के माध्यम कुल टैक्स ज्यादा वसूला जाएगा जोकि खपत पर टैक्स होगा। परंतु आम आदमी और अमीर द्वारा की जाने वाली खपत में भेद करना जरूरी है। सही पालिसी है कि अमीर द्वारा खपत किए जाने वाले माल जैसे कार, फ्लैट स्क्रीन टीवी एवं स्मार्ट फोन पर टैक्स बढ़ाया जाए और आम आदमी द्वारा खपत किए जाने वाले माल जैसे साइकिल टायर, सूरत की साड़ी, माचिस इत्यादि पर टैक्स घटाया जाए। लेकिन जीएसटी का सिद्धांत है कि सभी माल पर एक ही दर से टैक्स लगाया जाएगा, जिससे व्यवस्था सरल और विवाद रहित हो। इसलिए जीएसटी से आम आदमी द्वारा खपत की तमाम वस्तुओं के दाम में वृद्धि होगी।

मोदी सरकार को जीएसटी के विकल्पों पर विचार कराना चाहिए। ऐसी टैक्स व्यवस्था बनानी चाहिए जो कि सरल हो और साथ-साथ अमीर पर टैक्स का भार अधिक पड़े। बताते चलें कि विश्व के 160 देशों ने जीएसटी लागू किया है। इससे विचलित नहीं होना चाहिए, क्योंकि इन देशों के आम आदमी की हालत अच्छी नहीं है। मोदी जैसे कर्मठ शासक के लिए यह संभव है कि वह भेड़ चाल से हटकर ऐसी टैक्स व्यवस्था बनाएं जो आर्थिक कुशलता के साथ-साथ सामाजिक मानदंड पर भी सही उतरे।

[लेखक डॉ. भरत झुनझुनवाला, आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ है]