महाशक्ति

1962 में भारत-चीन के बीच हुए युद्ध के बाद पिछले पांच दशकों में दोनों देशों ने सभी क्षेत्रों में सफलता की इबारत गढ़ी। दोनों के रिश्तों में जहां उतार-चढ़ाव दिखा, वहीं अंतरराष्ट्रीय मंच पर इनका किरदार भी बदला। दोनों देश अंतरराष्ट्रीय क्षितिज पर एशियाई महाशक्ति के तौर पर उभरे हैं। दक्षिण एशिया की बदलती राजनीतिक, कूटनीतिक, आर्थिक एवं सामरिक परिस्थितियों ने इन दोनों को कहीं न कहीं एक दूसरे के बरक्स खड़ा भी किया है।

मसला

एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ ने प्रतिस्पर्धा को तो बढ़ाया ही, इनमें संघर्ष के नए बिंदु भी उभारे। परमाणु ताकत से लैस दोनों देशों के आपसी संबंध तमाम प्रयासों के बावजूद च्च्छे नहीं हो सके हैं। बार-बार चीन के कृत्यों ने उसकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े किए हैं। लिहाजा आम भारतीय जनमानस उसे पाकिस्तान से बड़ा खतरा मानने पर विवश हुआ है। चालाक चीन की हालिया हरकत भी भारत को उकसाने वाली है। चीन ने लद्दाख के दौलत बेग ओल्डी सेक्टर में 19 किमी अंदर भारतीय क्षेत्र में घुसकर सेना के टेंट लगा लिए हैं।

मर्म

इस तरीके की चीन की यह हरकत न तो पहली है और न ही अंतिम। इससे पहले भी उसकी ऐसी घुसपैठ का खामियाजा हम भुगत चुके हैं। लिहाजा हमारे नेतृत्व द्वारा इस समस्या को स्थानीय मसला बताना समझ से परे है। बार-बार घाव खाकर भी हम चीन की चालाकी को समझ नहीं पा रहे हैं या फिर समझना नहीं चाह रहे हैं। हमारी मानसिकता युद्ध में हारे हुए किसी सिपाही की तरह दिखती है। कुछ विश्लेषक और चिंतक भले ही इसे 1962 में मिली हार का परिणाम बताते हों लेकिन यह भी सच है कि तब से अब तक हम बहुत बदल चुके हैं। हमारी क्षमताएं किसी भी देश को टक्कर देने वाली हैं। जरूरत है केवल मानसिकता में बदलाव लाने की। हमें ड्रैगन की जहरीली फुफकार का शेर की दहाड़ से जवाब देना होगा। युद्ध ही किसी मसले का अंतिम हल नहीं माना जाना चाहिए जब तक कि शांतिपूर्वक किसी मसले का हल निकलता दिखता हो। लेकिन अगर पड़ोसी शांति की भाषा समझना ही न चाह रहा हो तो इससे पहले कि हमारे ऊपर कायर का ठप्पा लगे, हमें खुद को बदल लेना चाहिए। ऐसे में देश के व्यापक राष्ट्रीय हित को देखते हुए चीन के संदर्भ में हमारी नीतियों में बदलाव लाना आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।

जनमत

क्या भारत के प्रति चीन के रवैये में अभी भी ऊपर से मित्रता और भीतर से धूर्तता बरकरार है?

हां 99 फीसद

नहीं 1 फीसद

क्या भारत अपने इलाके से चीनी कैंपों को हटाने के लिए दबाव बनाने में कामयाब होगा?

हां 48 फीसद

नहीं 52 फीसद

आपकी आवाज

बिल्कुल, चीन फिर से अपनी वही गंदी चालें चल रहा है जिससे उसने भारत

का कुछ हिस्सा छीन लिया था। अब भारत को सचेत रहना चाहिए और ईट का जवाब पत्थर से देने के लिए तैयार रहना चाहिए। -शिखर कांत मिश्र जीमेल.कॉम

चीन को अपने आप पर जो घमंड है उसे दूर करने के लिए उसे मुंहतोड़ जवाब देना होगा। केवल मीटिंग करने से कुछ नहीं होगा। -समीर समीर 91 जीमेल.कॉम

भारत को समझना होगा कि चीन उसका दोस्त नहीं दुश्मन है। -डी वर्मा 543 जीमेल.कॉम

भारत को चीन से बहुत ही ज्यादा सावधान रहने की जरूरत है। क्योंकि एक बार वह अपनी कुटिल चालों से हमें नुकसान पहुंचा चुका है। -एस 91988351 जीमेल.कॉम

जिस राष्ट्र की अटूट आस्था बंदूक की नली में शांति तलाशने की हो वह भारत जैसे अहिंसक देश का कभी मित्र नहीं हो सकता। -धर्मेद्र कुमार दूबे 438जीमेल.कॉम

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