नई दिल्ली, [ज्ञानेंद्र रावत]। बीते दिनों इंडोनेशिया में खूबसरती के लिए विख्यात और पर्यटकों की पसंद वाले बाली में कूड़े के कारण स्थानीय प्रशासन को आपात स्थिति की घोषणा करनी पड़ी। इंडोनेशिया में ताड़ के पेड़ों से घिरा रहने वाला बाली का समुद्री तट समुद्र में सर्फिग और तट पर धूप सेंकने के शौकीन पर्यटकों के लिए लंबे समय से आकर्षण का केंद्र रहा है। इंडोनेशिया संयुक्त राष्ट्र संघ के पर्यावरण की ‘क्लीन सी मुहिम’ में शामिल 40 देशों के संगठन में शामिल है। इस मुहिम का एकमात्र लक्ष्य समुद्र को दूषित करने वाले प्लास्टिक के कचरे से मुक्ति दिलाना है। बाली द्वीपों के लिए मशहूर दुनिया के पर्यटकों की पहली पंसद के रूप में जाना जाता है। 17 हजार से अधिक द्वीपों का यह द्वीपसमूह समुद्री कचरा पैदा करने वाले देशों में चीन के बाद दूसरे स्थान पर है।

कारण यहां पर सालाना 12.9 लाख टन कचरा पैदा होता है। इससे बीते दिनों यहां यह समस्या इतनी विकराल हो गई कि बाली में जिमबारन, कुटा और सेमियांक जैसे लोकप्रिय समुद्र तटों सहित तकरीब छह किलोमीटर लंबे समुद्र तट पर फैले कचरे के कारण प्रशासन को आपात स्थिति की घोषणा करने को बाध्य होना पड़ा। अधिकारियों को रोजाना तकरीबन 100 टन कचरे को पास के लैंडफिल तक ले जाने के लिए 700 सफाईकर्मियों और 35 ट्रकों को तैनात करना पड़ा। बाली की घटना से साफ जाहिर है कि कचरे की समस्या व्यवस्था से जुड़ी है। जरूरी है इसके प्रति सरकार की संवेदनशीलता और इसके निपटारे के लिए प्रबल इच्छाशक्ति की। यह किसी भी समस्या के निदान की दिशा में बेहद जरूरी है। यह काम कर दिखाया इंडोनेशियाई सरकार ने। इसके लिए उसकी कितनी भी प्रशंसा की जाए वह कम है।

वहीं भारत सरकार दावे तो बहुत करती है, लेकिन किसी दूसरे से कुछ सीखना नहीं चाहती। बीते साल की घटना दिल्ली के गाजीपुर की ही है जहां कूड़े के पहाड़ गिरने से एक बड़ा हादसा हुआ जिसमें दो लोगों की मौत हो गई। बाद में कहा गया कि अब कूड़े-कचरे की समस्या राजधानी में विकराल हो चुकी है। इसलिए अब इसका निस्तारण करना ही होगा। कुछ समय के लिए गाजीपुर लैंडफिल साइट पर कूड़ा डालने पर रोक लगा दी गई। कूड़े को अन्यत्र डालने पर काफी दिनों तक माथापच्ची की गई। नेशनल ग्रीन टिब्यूनल (एनजीटी) ने इस मामले में सरकार और निगमों की उनकी लापरवाही के लिए काफी खिंचाई की। दिल्ली हाईकोर्ट तक ने दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल से कूड़े के निस्तारण के लिए बनी नीति को तीन सप्ताह में लागू करने के निर्देश दिए। साथ ही हाईकोर्ट ने सुझाव दिया कि इस समस्या से निपटने के लिए एक ठोस कानून की जरूरत है ताकि कूड़ा फैलाने वालों से अधिक जुर्माना वसूलने के लिए कानून में भी संशोधन किया जा सके। विडंबना यह कि अभी तक दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच यह पेंच फंसा हुआ है कि कचरा प्रबंधन के मामले में ‘जुर्माना’ लगाना उचित है या नहीं। दिल्ली सरकार इस व्यवस्था पत्र द्वारा लिखित रूप से विरोध कर चुकी है।

बहरहाल दिल्ली नगर निगम ने फिलहाल कूड़े के पहाड़ को खत्म करने में अपनी असमर्थता जाहिर करते हुए कहा कि वह इस काम को दो साल में पूरा कर पाएगी। निगम का कहना है कि अब लैंडफिल साइट के कूड़े के निस्तारण का जिम्मा भारतीय राष्ट्रीय राज मार्ग प्राधिकरण का है, उसका नहीं। प्राधिकरण इस कूड़े का इस्तेमाल एनएच-24 के निर्माण में करेगा। एनएच-24 के निर्माण में 65 फीसद ठोस कूड़ा इस्तेमाल किया जाएगा। मगर फिलहाल तक कूड़े के निस्तारण और प्रबंधन के बारे में निश्चित कार्ययोजना का पूरी तरह अभाव है। यह पूरे देश के लिए एक गंभीर समस्या है।

(लेखक राष्ट्रीय पर्यावरण सुरक्षा समिति के अध्यक्ष हैं)

यह भी पढ़ें: होम लोन से लेकर टैक्स स्लैब में छूट चाहता है आम आदमी, कुछ ऐसी हैं बजट से उम्मीदें