देश की आइटी राजधानी बेंगलुरु में तंजानिया की एक छात्रा और उसके साथियों के साथ बदसलूकी के मामले ने फिर साबित किया कि हमारे यहां अश्वेतों को दोयम दर्जे का नागरिक मानने वाली मानसिकता की जड़ें गहरी हैं। दुर्भाग्य से यह कोई पहली बार नहीं हो रहा जब अफ्रीकी नागरिक के साथ जंगलियों वाला व्यवहार किया गया हो। यह कोई बहुत पुरानी बात नहीं है जब राजधानी में तीन अफ्रीकी छात्रों के साथ राजीव चौक मेट्रो स्टेशन पर मारपीट हुई। उस घटना के बाद संबंधित देशों के राजदूतों ने भारतीय विदेश मंत्रालय को एक पत्र लिखा था। पत्र में उन्होंने सरकार से मांग की थी कि अफ्रीकियों पर हमले बंद हों। गौर कीजिए कि ये सब उस गांधी के देश में हो रहा है, जिन्होंने दक्षिण अफ्रीका में 100 वर्ष पहले अश्वेतों के वाजिब हकों को लेकर संघर्ष किया था। अब उसी गांधी के भारत में हाल के दौर में अफ्रीकियों के साथ जिस तरह का भेदभावपूर्ण व्यवहार किया जा रहा है वह वास्तव में शर्मनाक है। गोवा, पुणे, पंजाब और दिल्ली वगैरह में अफ्रीकी नागरिकों को दोयम दर्जे का इंसान माना जा रहा है। कुछ समय पहले गोवा जाने का मौका मिला। वहां पर अफ्रीकी नागरिकों को लेकर बेहद कटु राय लोग पेश कर रहे हैं। उन्हें गोवा से निकालने की वकालत हो रही है। दरअसल गोवा में एक नाइजीरियाई नागरिक की हत्या के बाद अश्वेतों ने उत्पात मचाया था। उन्होंने गोवा में राजमार्गों को बाधित किया। पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए 52 नाइजीरियाई नागरिकों को बाद में रिहा कर दिया गया। तब गोवा सरकार ने कहा था कि नाइजीरियाई नागरिकों को जेल भेज दिया जाएगा। इसके चलते दोनों देशों के संबंध खासे कटु हो गए थे। इसी तरह राजधानी दिल्ली में आम आदमी पार्टी की पहली सरकार के दौर में उनके एक मंत्री सोमनाथ भारती ने यूगांडा की महिलाओं के साथ दुव्र्यवहार किया था। सोमनाथ भारती ने अफ्रीकी नागरिकों के घरों में घुसकर तलाशी लेने की कोशिश की थी। महत्वपूर्ण है कि अफ्रीकी नागरिकों के साथ हो रहे उत्पीडऩ का असर भारत-अफ्रीकी देशों के बीच होने वाले व्यापार पर पड़ सकता है।

भारत के तमाम अफ्रीकी देशों से व्यापारिक संबंध हैं। भारत की चोटी की कंपनियों जैसे टाटा, भारती, महिंद्रा, अशोक लीलैंड वगैरह का अफ्रीका में भारी निवेश है। अफ्रीका में हर कहीं टाटा दिखता है। भारती एयरटेल ने अफ्रीका के करीब 17 देशों में दूरसंचार क्षेत्र में 13 अरब डॉलर का निवेश किया है। भारतीय कंपनियों ने कोयला, लोहा और मैगनीज खदानों के अधिग्रहण में भी अपनी गहरी रुचि जताई है। इसी तरह भारतीय कंपनियां दक्षिण अफ्रीकी कंपनियों से यूरेनियम और परमाणु प्रौद्योगिकी प्राप्त करने की राह देख रही हैं, दूसरी ओर अफ्रीकी कंपनियां एग्रो प्रोसेसिंग व कोल्ड चेन, पर्यटन, होटल और रिटेल क्षेत्र में भारतीय कंपनियों के साथ सहयोग कर रही हैं। अफ्रीकी बैंक, बीमा और वित्तीय सेवा कंपनियां भी भारत में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं।

अफ्रीका भारत को बड़े पैमाने पर तेल की आपूर्ति करता है। पेट्रोलियम मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2013-14 में अफ्रीका से भारत को 3.1 करोड़ टन कच्चे तेल की आपूर्ति हुई, जबकि केवल नाइजीरिया से ही 1.23 करोड़ टन तेल का आयात किया गया। नाइजीरिया में भारत की मौजूदगी खासी है। हैरानी इसलिए और होती है कि एक तरफ नई दिल्ली में भारत-अफ्रीका समिट होती है तो दूसरी तरफ हमारे यहां का एक वर्ग अफ्रीकी नागरिकों को दोयम दर्जे का इंसान मानते हैं। भारत समूचे अफ्रीका में निवेश करना चाहता है। साथ ही अफ्रीकी देशों से अपनी ऊर्जा की निरंतर बढ़ रही जरूरतों को पूरा करने के लिए खास सहयोग की अपेक्षा भी रखता है। अफ्रीका को लेकर हमारे मीडिया का रुख भी ठंडा ही रहा है। भारत-अफ्रीका समिट को मीडिया ने खास तवज्जो नहीं दी। जिस सम्मेलन में 50 से ज्यादा अफ्रीकी देशों के प्रतिनिधि भाग ले रहे हों जिनमें कई राष्ट्राध्यक्ष शामिल थे, उसको लेकर मीडिया का रवैया कतई सही नहीं माना जा सकता। भारत और अफ्रीका के कई देश इस्लामिक आतंकवाद से प्रभावित हो रहे हैं। बोको हरम नाइजीरिया में लगातार कत्लेआम कर रहा है तो केन्या में अल शबाब। नाइजीरिया और केन्या, दोनों भारत के लिहाज से बेहद खास हैं। पूर्वी अफ्रीकी देश केन्या में लंबे समय से भारतवंशी बसे हुए हैं। इन्होंने बेहद विषम परिस्थितियों में केन्या समेत समूचे पूर्वी अफ्रीका में रेल नेटवर्क बिछाया था।

एक बात साफ है कि अगर भारत में अफ्रीकियों के साथ भेदभाव होता रहा तो मानकर चलिए कि भारत को व्यापारिक स्तर पर अफ्रीकी देशों में पैर जमाने में कठिनाई होगी। हमारे यहां अफ्रीकी नागरिकों को रंगभेद का शिकार होना पड़ता है। उन्हें किराए पर घर तक मिलना मुश्किल होता है। एसोसिएशन ऑफ अफ्रीकन स्टूडेंट्स इन इंडिया के अध्यक्ष ओकितो क्रिसकोफे ने कहा कि दिल्ली, पंजाब और बेंगलुरु में अफ्रीकी मूल के लोगों के खिलाफ हो रहे हमले की प्रमुख वजह मीडिया का पूर्वाग्रह, पुलिस की अक्षमता और भारतीयों का नजरिया है। इस पूर्वाग्रह की एक वजह अफ्रीकी नागरिकों की गिरफ्तारी और समाज के साथ उनकी संवादहीनता की स्थिति है। दिल्ली तिहाड़ जेल के आंकड़ों के मुताबिक 366 विदेशी कैदियों में अधिकांश नाइजीरिया के हैं। पिछले कुछ वर्षों के दौरान नाइजीरियाई कैदियों की संख्या में इजाफा हुआ है। आरोप है कि ये लोग वैध आवागमन दस्तावेजों के साथ भारत आते हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश वीजा की अवधि समाप्त होने के बाद भी यहीं रह जाते हैं। भारत को समझना होगा कि समूचा अफ्रीका गांधीजी के कारण भारत का आदर करता है। नेल्सन मंडेला लंबी जेल यात्रा से रिहा होने के बाद सबसे पहले भारत आए थे। अब भारत के लिए अफ्रीका निवेश के लिहाज से बेहद खास जगह है। इसलिए हमें इस तरह का कोई कदम नहीं उठाना चाहिए, जिसके चलते भारत और अफ्रीका में दूरियां बढ़ें।

[लेखक विवेक शुक्ला, संयुक्त अरब अमीरात दूतावास में मीडिया सलाहकार हैं]