रसताल में रसूख
संसद यानी लोकतंत्र की सबसे बड़ी पंचायत के गठन के पीछे हमारे महापुरुषों की यही मंशा रही होगी कि यहां से समदर्शी नीतियों, योजनाओं और कानूनों का सूत्रपात होगा। देश हित, जनहित में किसी भी मसले का यहां समाधान मिल बैठकर निकाला जा सकेगा। इसका दायित्व जितना सत्ता पक्ष का
संसद यानी लोकतंत्र की सबसे बड़ी पंचायत के गठन के पीछे हमारे महापुरुषों की यही मंशा रही होगी कि यहां से समदर्शी नीतियों, योजनाओं और कानूनों का सूत्रपात होगा। देश हित, जनहित में किसी भी मसले का यहां समाधान मिल बैठकर निकाला जा सकेगा। इसका दायित्व जितना सत्ता पक्ष का होगा, उससे कहीं ज्यादा विपक्ष का भी होगा। गतिरोध जैसी कोई चीज शायद ही उस समय उनके जेहन में रही होगी। तभी तो उन लोगों ने अपने आचार-विचार और व्यवहार से इस दायित्व को प्रभावशाली रूप से पूरा करके ईंट, बजरी और रेत से बने इस संसद भवन में प्राण प्रतिष्ठा की। इसे लोकतंत्र के मंदिर के रूप में स्थापित किया।
साठ साल से अधिक हो चुके लोकतंत्र के इस मंदिर की चाल, चेहरा और चरित्र में क्रमश: क्षरण जारी है। आंकड़े बताते हैं कि संसद का अब ज्यादातर वक्त हंगामे में जाया जाता है। माननीयों की प्राथमिकताएं बदल रही हैं। जन कल्याण अब दोयम प्राथमिकता में है। जनता अपने कल्याण के लिए जिन प्रतिनिधियों को चुनकर भेजती है वे संसद के मर्म को ही तिलांजलि देते दिखते हैं। स्वार्थ साधने की राजनीति का केंद्र बनती जा रही है ये संसद। क्षुद्र राजनीति के चलते विकास कार्य संबंधी नीतियां हंगामे की भेंट चढ़ रही हैं। अब तो नेता खुल्लमखुल्ला कहते हैं कि फला सत्र में हिसाब बराबर करेंगे।
सत्ता पक्ष को चुनौती देते हुए विपक्ष मनमाफिक फैसले न करने पर सत्र को बाधित करने की खुलेआम धमकी देता दिखता है। मानसून सत्र जारी है। रोज हंगामा हो रहा है। सत्ता पक्ष द्वारा मसले पर बहस की गुजारिश विपक्ष मानने को तैयार नहीं है। उसके लिए तो यही मौका है। विपक्ष की यह प्रवृत्ति संसद के गठन को लेकर हमारे महापुरुषों की उस सोच का न केवल खुला उल्लंघन है बल्कि भारतीय जन मानस के साथ विश्वासघात भी है। संसद किसी भी मसले के सुलह और समाधान का सबसे बड़ा मंच है। अगर बहस द्वारा इस मंच पर सुलह-समाधान नहीं होगा तो फिर दूसरा मंच क्या है? हंगामा किसी समस्या का हल नहीं है। यह करोड़ो करदाताओं के पैसे की बर्बादी है। ऐसे में भारतीय राजनेताओं द्वारा संसद के सही अर्थों को फिर से कायम किए जाने की अपेक्षा आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।
मानसून सत्र का पहला सप्ताह
कुल बर्बाद समय
91%
एक घंटे की कार्यवाही की लागत
Rs. 1.5 - करोड़ लोकसभा
Rs. 1.1 - करोड़ राज्यसभा
पूरा सत्र हंगामे की भेंट चढ़ेगा तो
Rs. 260 करोड़
भू अधिग्रहण, रियल इस्टेट (रेगुलेशन एंड डेवलपमेंट) बिल, व्हिसिलब्लोअर प्रोटेक्शन (अमेंडमेंट) बिल जैसे अहम 11 लंबित बिल। 9 नए बिल पेश किए जाने प्रस्तावित
लंबित बिल
सच्चे लोकतंत्र के लिए व्यक्ति को केवल संविधान के उपबंधों अथवा विधानमण्डल में कार्य संचालन हेतु बनाये गये नियमों और विनियमों के अनुपालन तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए बल्कि विधानमण्डल के सदस्यों में लोकतंत्र की सच्ची भावना भी विकसित करनी चाहिए। यदि इस मौलिक तथ्य को ध्यान में रखा जाए तो स्पष्ट हो जायेगा कि यद्यपि मुद्दों पर निर्णय बहुमत के आधार पर लिया जायेगा, फिर भी यदि संसदीय सरकार का कार्य केवल उपस्थित सदस्यों की संख्या और उनके मतों की गिनती तक ही सीमित रखा गया तो इसका चल पाना संभव नहीं हो पायेगा। यदि हम केवल बहुमत के आधार पर कार्य करेंगे, तो हम फासिज्म, हिंसा और विद्रोह के बीज बोएंगे। यदि इसके विपरीत, हम सहनशीलता की भावना, स्वतंत्र रूप से चर्चा की भावना और समझदारी की भावना का विकास कर पाये तो हम लोकतंत्र की भावना को पोषित करेंगे।
जनमत
क्या भारतीय संसद समाधान-सळ्लह के बजाय गतिरोध का केंद्र बनती जा रही है?
हां 84%
नहीं 16%
क्या राजनीतिक पार्टियों के लिए आपसी प्रतिद्वंद्विता का प्रश्न संसद की प्रतिष्ठा व गरिमा से ज्यादा बड़ा हो गया है?
हां 70%
नहीं 30%
आपकी आवाज
लोकतंत्र में संसद सर्वोच्च है लेकिन गतिरोध के चलते संसद में महत्वपूर्ण बिलों पर बहस और उनका पास नहीं हो पाना देश के विकास में बाधक है। -सुधीर सिंह रघुवंशी
हर वर्ष ऐसा ही होता आया है। सत्र चाहे राज्यसभा का हो या लोकसभा का उसमें काम की बातें कम और सांसदों का हंगामा ज्यादा देखने को मिलता आ रहा है। -राजेश चौहान
संसद में विपक्ष की निराशा, हताशा और खीज का फूहड़ प्रदर्शन देखने को मिला है। निश्चित रूप में यह माहौल देश के विकास में अवरोधक है। -मनीषा श्रीवास्तव
संसद के सत्र समय बर्बादी के लिए नहीं होते हैं। सभी राजनीतिक दल एक ही जैसे हैं। सभी ने संसद को राजनीतिक अखाड़ा बना के रख दिया है।-सागर वेद सिंह
इस समय संसद में जो भी देखने को मिल रहा है वह झूठे आत्मसम्मान की भावना से ग्रस्त सांसदों के जमावड़े का फूहड़ प्रदर्शन है। -अंजनी कुमार श्रीवास्तव
सुर्खियां बटोरने के लिए जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि उन्हीं की आवाज को नहीं उठा रहे हैं। सोचते हैं कि सामने वाली पार्टी अच्छा काम न करे, क्योंकि वह अच्छा काम करेगी तो हमारा क्या होगा।-श्रवण सेमवाल
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