संजय गुप्ता 

पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में अभूतपूर्व जीत हासिल करने के साथ-साथ भाजपा गोवा एवं मणिपुर में भी सरकार बनाने में सफल हुई। पांच में से चार राज्यों की सत्ता की बागडोर थामकर भाजपा ने विपक्ष और विशेषकर कांग्रेस को एक तरह से चारों खाने चित्त कर दिया। पंजाब में कांग्रेस ने अवश्य अकाली दल-भाजपा गठबंधन को सत्ता से बाहर कर खुद सरकार बना ली, लेकिन इसे अमरिंदर सिंह की जीत माना जा रहा है, न कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की। चार राज्यों में भाजपा की जीत का विशेष राजनीतिक महत्व इसलिए भी है, क्योंकि अब राज्यसभा में भी समीकरण बदलेंगे और बड़े नीतिगत फैसले लेने में जो अड़चनें कभी मोदी सरकार की राह रोकती थीं वे जल्द ही दूर हो सकती हैं। माना जा रहा है कि अगले साल के मध्य तक राज्यसभा में भाजपा के नेतृत्व वाली राजग सरकार को बहुमत हासिल हो जाएगा। फिलहाल कांग्रेस को राज्यसभा में भाजपा के मुकाबले बढ़त हासिल है, लेकिन वह राजनीतिक रूप से इतनी कमजोर हो चुकी है कि इसके आसार बहुत कम हैं कि वह उच्च सदन में भाजपा को घेरने के लिए अन्य विपक्षी दलों को अपने साथ ला सकेगी। मोदी सरकार के अब तक के लगभग तीन साल के कार्यकाल में कांग्रेस ने राज्यसभा में अपने संख्या बल का दुरुपयोग ही अधिक किया है। उसने थोड़ी-बहुत सार्थक बहस केवल जीएसटी को लेकर की और वह भी तमाम अडं़गेबाजी के बाद। यह याद करना कठिन है कि कांग्रेस ने किसी और विधेयक अथवा अन्य किसी मसले पर कोई सार्थक बहस की हो। कुछ यही स्थिति कई अन्य विपक्षी दलों की भी रही।
कांग्रेस जिस तरह दिन-प्रतिदिन गंभीर संकट से घिरती जा रही उससे यह सवाल भी उभरा है कि क्या वह एक राष्ट्रीय दल के रूप में भारतीय राजनीति में कोई महत्वपूर्ण योगदान देने में सक्षम रह गई है या नहीं? एक के बाद एक राज्यों से कांग्रेस के पैर उखड़ रहे हैं और भाजपा देश को कांग्रेस मुक्त बनाने के अपने दावे को पूरा करती नजर आ रही है। अब तो यह सवाल भी उठने लगा है कि क्या कांग्रेस विपक्षी एकता का नेतृत्व करने की स्थिति में है? एक स्वस्थ लोकतंत्र को मजबूत और साथ ही सकारात्मक सोच वाले विपक्ष की भी जरूरत होती है, लेकिन कांग्रेस की आज जैसी स्थिति है उसे देखते हुए यह नहीं प्रतीत होता कि वह इस आवश्यकता की पूर्ति कर सकेगी। यह भी ध्यान रहे कि यदि लोकतंत्र में एक पार्टी का ही वर्चस्व हो जाए तो उसमें सत्ता का कुछ न कुछ अभिमान आ जाता है। आजादी के बाद लंबे समय तक देश में लगभग एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस इसका उदाहरण है। हालांकि अभी तक भाजपा नेता सत्ता के अहंकार का प्रदर्शन करने से बचे हैं, लेकिन उन्हें आगे भी सतर्क रहना होगा। अच्छी बात यह है कि प्रधानमंत्री इसके प्रति सावधान दिख रहे हैं। हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा सांसदों की एक बैठक में उत्तर प्रदेश चुनाव के दौरान अपने बड़बोले नेताओं के चुप रहने पर उन्हें जिस तरह धन्यवाद दिया वह एक तरह से उनको दी जाने वाली नसीहत ही है। इसके पहले उन्होंने भाजपा कार्यालय में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए जिस तरह यह कहा कि यह वक्त जश्न मनाने का नहीं, बल्कि आगे की चुनौतियों की तैयारी करने का है उससे यह अपने आप स्पष्ट हो जाता है कि वह अपने काम और लक्ष्यों के प्रति समर्पित हैं। अपने लक्ष्य के संदर्भ में उन्होंने 2022 तक नए भारत के निर्माण की बात की। स्पष्ट है कि वह यह मानकर चल रहे हैं कि भाजपा के लिए अगला लोकसभा चुनाव आसान होने वाला है। फिलहाल यह कहना कठिन है कि 2019 में लोकसभा चुनावों के वक्त देश का राजनीतिक परिदृश्य क्या होगा, लेकिन यह उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री ने भाजपा कार्यकर्ताओं को विनम्र रहने को कहा और यह भी स्पष्ट किया कि सरकार भले ही बहुमत से बनती हो, लेकिन वह चलती सर्वमत से है।
पिछले दिनों प्रधानमंत्री मोदी की कार्यशैली और उनके विचारों की तारीफ राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी की। राष्ट्रपति ने नरेंद्र मोदी की तेजी से सीखने की क्षमता का लोहा माना और साथ ही उन्हें अर्थव्यवस्था और विदेश नीति के मोर्चे पर भी प्रभावी बताया। ऐसा कम ही होता है जब कोई राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की इतनी खुलकर तारीफ करे। राष्ट्रपति ने मोदी के काम करने के तरीके की भी प्रशंसा की। अब इसमें किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि मोदी की एक मजबूत और कठोर फैसले लेने वाले नेता की जो छवि बनी है उसके बलबूते ही उन्हें एक के बाद एक राज्यों में जनता का समर्थन मिल रहा है। उत्तर प्रदेश में भाजपा की जीत विकास के प्रति मोदी के संकल्प पर जनता के भरोसे का प्रमाण है, लेकिन इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि उत्तर प्रदेश विकास की दिशा में अपेक्षित ढंग से आगे नहीं बढ़ पा रहा है। सच्चाई तो यह है कि उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों के पिछड़ेपन के कारण पूरा देश उस रफ्तार से प्रगति नहीं कर पा रहा जितना कि आवश्यक है। इन राज्यों के पिछड़ेपन का एक बड़ा कारण जाति-पांत और धर्म की राजनीति है। इस राजनीति का अंत किया जाना आवश्यक है। भाजपा ने लोगों को यह भरोसा दिलाया है कि वह उत्तर प्रदेश को बदहाली से उबारकर सही मायने में उत्तम प्रदेश बनाने का सपना साकार करेगी। भाजपा की जीत के बाद प्रधानमंत्री ने लोगों को यह भरोसा भी दिलाया कि नई सरकार सभी वर्गों को साथ लेकर चलेगी। उन्होंने स्पष्ट किया कि भाजपा की सरकारें उनकी भी हैं जिन्होंने उसे वोट नहीं दिया। उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान बार-बार यह भी उल्लेख किया कि पिछले वर्षों में किस तरह राज्य के विकास की अनदेखी की गई है।
उत्तर प्रदेश में भाजपा ने योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाने के साथ जिस तरह केशव प्रसाद मौर्य और दिनेश शर्मा के रूप में दो उप मुख्यमंत्री भी बनाने का फैसला किया उससे यह स्पष्ट है कि जातिगत संतुलन कायम करने की कोशिश की गई है। इसकी उम्मीद इसलिए की जा रही थी, क्योंकि भाजपा के उभार में तमाम नए वर्गों का योगदान रहा, लेकिन इस क्रम में क्षेत्रीय संतुलन पीछे छूट गया दिखता है। इसे लेकर कुछ सवाल भी उठ सकते हैं। यह भी तय है कि सवाल मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्रियों के चयन पर भी उठ सकते हैं। इन सब सवालों का जवाब विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता देकर ही दिया जा सकता है और ऐसा ही किया भी जाना चाहिए। उत्तर प्रदेश में न तो प्रतिभा की कमी है और न ही संसाधनों की। अगर उत्तर प्रदेश की नई सरकार संकल्प के साथ सबका साथ सबका विकास नारे को सार्थक करते हुए आगे बढ़ेगी तो स्थितियां बदलने में देर नहीं लगेगी। भाजपा की नई सरकारों और खासकर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की सरकारों को यह भी ध्यान रखना होगा कि भारी बहुमत अनगिनत अपेक्षाएं लेकर आता है। वस्तुत: इन अपेक्षाओं की पूर्ति ही भाजपा के 2019 के लक्ष्य को आसान बना सकती है।

[ लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं ]