दिल्ली में विकट प्रदूषणः 24 घंटे में लागू न हुआ 'चीनी फॉर्मूला' तो होगी मुश्किल
अधिकारी का कहना है कि बीजिंग में प्रदूषण को लेकर आपातकाल की स्थिति और दिल्ली की मौजूदा स्थिति में कोई बहुत ज्यादा फर्क अब नहीं रह गया है।
नई दिल्ली (जेएनएन)। दिल्ली-एनसीआर में बढ़े प्रदूषण के चलते जहरीली हुई हवा को देखते हुए अब समय आ गया है कि दिल्ली में स्थायी समाधान से इतर आपातकाल की स्थिति घोषित की जाए। न सिर्फ स्थिति घोषित हो, बल्कि बीजिंग की तर्ज पर ही यहां प्रदूषण पर काबू पाने के लिए अगले 24 घंटे में उपाय शुरू किए जाएं अन्यथा हालात और ज्यादा खतरनाक हो जाएंगे। यह कहना है सेंटर फोर साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई) का।
सीएसई की कार्यकारी निदेशक अनुमिता राय चौधरी कहती है कि बीजिंग में प्रदूषण को लेकर आपातकाल की स्थिति और दिल्ली की मौजूदा स्थिति में कोई बहुत ज्यादा फर्क अब नहीं रह गया है।
दिल्ली में एक हफ्ते से जारी है प्रदूषण का कहर, बनी आपातकाल की स्थिति
उन्होंने कहा कि ऐसे में जरूरी है कि इस समस्या से निबटने के दूरगामी योजनाओं से इतर सरकार सबसे पहले त्वरित कार्रवाई की दिशा में बढ़े। अनुमिता कहती हैं कि बीजिंग में ऐसे हालातों में मुख्य तौर पर चार बड़े कदम उठाये जाते हैं।
वहां स्थिति काबू में आने तक सभी औद्योगिकी इकाईयां बंद कर दी जाती हैं। शहर के सभी पावर प्लांट तुरंत प्रभाव से बंद कर दिए जाते हैं। निजी वाहनों के इस्तेमाल को लेकर ऑड -इवेन योजना लागू कर दी जाती है और पुरानी गाड़ियां, जोकि सामान्य स्थिति में येलो कार्ड के साथ चलती हैं पूरी तरह से शहर में प्रतिबंधित कर दी जाती हैं।
इसके अलावा वहां प्रदूषण से बचाव के लिए शहर में सभी तरह की आग लगने से जुड़ी गतिविधियों पर सख्ती के साथ पाबंदी लगाई जाती है।
अनुमिता कहती हैं कि प्रदूषण के बढ़ने पर बीजिंग में यह प्रमुख तौर पर उठाये जाने वाले कदम हैं और अब जैसे हालात दिल्ली-एनसीआर में बने हुए है उसे देखते हुए यहां भी इसी दिशा में बढ़ने की जरूरत है।
उनका कहना है कि राजधानी में प्रदूषण की अहम वजह के तौर पर लगातार पडोसी राज्यों को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है जबकि यहां स्थानीय स्तर पर पैदा हो रहा प्रदूषण भी कम नहीं है।
अनुमिता राय चौधरी का कहना है कि दिल्ली में खुले में आग, पटाखों व गाड़ियों का ऐसा प्रदूषण दिवाली के बाद से वायुमंडल में जमा है कि वह शहर छोड़ने का नाम नहीं ले रहा है।
ऐसे हालात के लिए बाहरी राज्यों का योगदान बामुश्किल 30 फीसद है, जबकि शेष 70 फीसद स्थानीय है, इसलिए आपात स्थिति की घोषणा कर हालात पर काबू पाना होगा।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।