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    45 साल तक बर्फ में दबा रहा जवान का शव, अब तक नहीं मिला शहीद का दर्जा

    By Amit MishraEdited By:
    Updated: Sat, 24 Jun 2017 09:08 PM (IST)

    7 फरवरी 1968 को चंडीगढ़ से एन-12 विमान ने लद्दाख जाने के लिए सेना के 98 जवान को लेकर उड़ान भरी थी। चंद्रप्रभा पर्वत में फंसकर विमान क्रेश हो गया था।

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    45 साल तक बर्फ में दबा रहा जवान का शव, अब तक नहीं मिला शहीद का दर्जा

    रेवाड़ी [अमित सैनी]। 4 सितंबर 2013 को गांव मीरपुर में हजारो लोगों की भीड़ उमड़ी थी। चंडीगढ़ से सेना की ईएमई रेजीमेंट के जवान जब गांव में पहुंचे तो उनके कंधे पर उस जवान का पार्थिव शरीर था, जो करीब 45 साल पहले अपनी ड्यूटी के दौरान शहीद हो गया था।

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    यह जवान थे, मीरपुर गांव के रहने वाले जगमाल। 45 साल तक जगमाल का पार्थिव शरीर लाहौल स्पीति के चंद्रभागा क्षेत्र में बर्फ में दबा हुआ था। उस दिन जगमाल अमर रहे के खूब नारे भी लगे थे। हर किसी ने जगमाल को शहीद का दर्जा देने की पैरवी की थी।

    ग्राम पंचायत ने तो एक कदम आगे बढ़कर जगमाल के नाम पर गांव की तीन एकड़ जमीन देने तथा उसपर उनकी प्रतिमा लगाने व हर्बल पार्क बनाने की घोषणा तक कर डाली थी। हैरानी इस बात पर होती है कि देश के लिए जान गंवाने वाले इस सैनिक को आज तक न तो सरकार ने शहीद का दर्जा दिया और न ही ग्राम पंचायत ने अपने गांव के इस लाल की अंतिम मिट्टी से किया वायदा निभाया।

    सामान से हुई थी जगमाल की पहचान

    7 फरवरी 1968 की सुबह चंडीगढ़ से एन-12 विमान ने लद्दाख जाने के लिए सेना के 98 जवान को लेकर उड़ान भरी थी। विमान के चालक फ्लाइट ले. एचके सिंह ने मौसम खराब होने के चलते विमान को मोड़ा भी लेकिन चंद्रप्रभा पर्वत श्रृंखला में फंसकर विमान क्रेश हो गया था। विमान का कंट्रोल स्टेशन से संपर्क टूट चुका था, इसलिए सेना के लिए भी विमान का गायब होना पहेली बन गई। 98 जवान गायब थे।

    16 अगस्त 2013 को मीरपुर निवासी हवलदार जगमाल सिंह का शव लाहौल स्पीति के चंद्रभागा क्षेत्र में बर्फ में दबा हुआ मिला था। जगमाल के दाएं हाथ पर बंधी सिल्वर डिश पर उनका आर्मी नंबर था, जिससे उनकी पहचान हो सकी थी।

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    4 सितंबर 2013 को मीरपुर गांव में 45 साल बाद जगमाल का पार्थिव शरीर लाया गया था, तक उनका अंतिम संस्कार हुआ था। जगमाल के बेटे रामचंद्र ने अपने पिता को शहीद का दर्जा देने के लिए केंद्र सरकार को कई बार पत्र लिखे लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई।

    पंचायत ने नहीं निभाया वायदा 

    सरकार तो दूर की बात उनके गांव की पंचायत ही अपने किए वायदे से मुकर गई। जगमाल के अंतिम संस्कार के समय ग्राम पंचायत ने तीन एकड़ जमीन पर अपने इस लाल के नाम पर हर्बल पार्क बनाने व प्रतिमा लगवाने की घोषणा की थी। चार साल बीत चुके हैं, लेकिन ग्राम पंचायत ने आज तक भी अपना किया वायदा नहीं निभाया है।

    स्वर्गीय जगमाल के पोते उमेश का कहना है कि न तो सरकार ने उनकी सुनी और न ही ग्राम पंचायत ने कोई सम्मान दिया। वहीं हिंदुस्तान जन जागृति संस्थान संगठन से जुड़े अंकित व विकास खोला ने तो इस सैनिक के सम्मान के लिए सीएम विंडो पर पत्र तक भेजा है।

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