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    हाशिमपुरा नरसंहार: चिदंबरम की भूमिका की जांच की मांग पर HC में सुनवाई

    By JP YadavEdited By:
    Updated: Thu, 19 May 2016 03:15 PM (IST)

    भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने आरोप लगाया कि चिदंबरम 1987 में मेरठ के हाशिमपुरा में मौके पर गए थे। उन्होंने मामले की जांच को प्रभावित किया था।

    नई दिल्ली। भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने दिल्ली हाई कोर्ट से आग्रह किया है कि हाशिमपुरा नरसंहार मामले में उत्तर प्रदेश सरकार को पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदंबरम की कथित संदिग्ध भूमिका की जांच करने का निर्देश दिया जाए। इस पर आज सुनवाई होगी।

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    चिदंबरम पर जांच को प्रभावित करने का आरोप

    न्यायमूर्ति जीएस सिस्तानी व न्यायमूर्ति संगीता ढींगरा सहगल की खंडपीठ के समक्ष स्वामी ने आरोप लगाया कि चिदंबरम 1987 में मेरठ के हाशिमपुरा में मौके पर गए थे। उन्होंने मामले की जांच को प्रभावित किया था। ऐसे में उन्हें भी मामले में आरोपी बनाया जाए और मामले की फिर से जांच करवाई जाए।

    सभी पहलुओं से जांच करे यूपी पुलिस

    स्वामी ने कहा कि उत्तर प्रदेश पुलिस को इस मामले में सभी पहलुओं की जांच करनी चाहिए। यह नरसंहार का मामला है। उन्होंने कहा कि समाचार पत्रों की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश सरकार ने इस मामले से संबंधित दस्तावेजों को नष्ट करना शुरू कर दिया है। स्वामी ने हाई कोर्ट में निचली अदालत के आठ मार्च, 2013 को दिए उस फैसले को चुनौती दी है जिसमें चिदंबरम की भूमिका की जांच करवाने वाली याचिका को खारिज कर दिया गया था।

    कोर्ट की निगरानी में सीबीआइ जांच की मांग

    सुनवाई के दौरान स्वामी ने यह भी कहा कि इस मामले में अदालत की निगरानी में सीबीआई जांच होनी चाहिए। अदालत ने उनके तर्क पर असहमति जताते हुए कहा कि इस प्रकार से यदि अतिरिक्त आवेदन आते रहे तो सुनवाई में अनावश्यक रूप से देरी होगी। खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार को इस मामले से संबंधित दस्तावेज पेश करने व राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) द्वारा उठाए गए मुद्दों पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। मामले की अगली सुनवाई 19 मई को होगी।

    खंडपीठ मामले में आरोपी बनाए गए पीएसी के 16 जवानों को निचली अदालत द्वारा गत वर्ष 21 मार्च को बरी करने के खिलाफ दायर अपील पर भी सुनवाई कर रही है। निचली अदालत के फैसले को एनएचआरसी, उत्तर प्रदेश सरकार के साथ ही पीड़ितों के बच्चों ने भी चुनौती दी है।

    गौरतलब है कि एनएचआरसी ने जवानों को बरी करने के फैसले को खारिज कर पूरे मामले की न्यायिक जांच करवाने का आग्रह किया है। वहीं, उत्तर प्रदेश सरकार के अनुसार निचली अदालत का फैसला कानूनी खामियों से पूर्ण है और अदालत ने मामले में कई अहम साक्ष्यों को नजरअंदाज किया है।

    उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दायर अपील में कहा गया है कि यह पूरा मामला हिरासत में हिसा का है, लेकिन निचली अदालत ने अपना फैसला देते हुए इस महत्वपूर्ण तथ्य को दरकिनार किया। हत्याकांड में जो लोग बच गए थे उनके बयानों में किसी प्रकार का विरोधाभास नहीं है। मामले में तत्कालीन डीएम व एसपी के बयानों से स्पष्ट है कि घटनास्थल पर पीएसी के जिस बटालियन की ड्यूटी थी आरोपी उसी में शामिल थे।

    यह है पूरा मामला

    मेरठ स्थित हाशिमपुरा में 22 मई, 1987 को काफी संख्या में पीएसी के जवान पहुंचे थे। पीएसी के जवानों ने वहां मस्जिद के सामने चल रही धार्मिक सभा में से मुस्लिम समुदाय के करीब 50 लोगों को हिरासत में लिया था। बाद में इनमें से 42 लोगों की गोली मारकर हत्या करने के बाद शव नहर में फेंक दिए गए थे। उत्तर प्रदेश पुलिस ने वर्ष 1996 में गाजियाबाद, मुख्य न्यायिक न्यायाधीश की अदालत में आरोपपत्र दायर किया था।

    इसमें 19 लोगों को हत्या, हत्या का प्रयास, साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ और साजिश रचने की धाराओं में आरोपी बनाया गया था। वर्ष 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया था। वर्तमान में मामले में आरोपी बनाए गए 16 लोग जीवित हैं, जबकि तीन लोगों की मौत हो चुकी है। मामले में उत्तर प्रदेश की सीबीसीआइडी ने 161 लोगो को गवाह बनाया था।