जीडीपी मूल्याकंन के तरीके में बदलाव की जरूरत: जोशी
फोटो: 31 डेल 201 विमोचन - पूर्व केंद्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी ने कहा वर्तमान जीडीपी के आंक

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली
पूर्व केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री व सांसद डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़ों को देश के विकास का पूर्ण पैमाना न मानते हुए इसके मूल्यांकन के तरीके में बदलाव की जरूरत बताई है। उन्होंने इसमें पर्यावरण, शिक्षा, स्वास्थ्य के साथ ही आम नागरिकों के संतुष्टि के भाव को भी समाहित किए जाने पर जोर दिया है। वह कांस्टीट्यूशन क्लब में भाजपा के वरिष्ठ नेता व सांसद हुकुमदेव नारायण यादव के विभिन्न अखबारों में लिखे लेखों के संकलन चिंतन प्रवाह के लोकार्पण के अवसर पर लोगों को संबोधित कर रहे थे।
भाजपा के वरिष्ठ नेता जोशी ने कहा कि वर्तमान जीडीपी को आंकने का पैमाना केवल आर्थिक प्रगति है, जबकि विकास की आड़ में प्रकृति का दोहन और शोषण भी होता है। ऐसे में हम जीडीपी के आंकलन में इन दोनों तथ्यों का समावेश कर विश्व को एक नया प्रतिमान दे सकते हैं। उन्होंने जनसंघ के अध्यक्ष व चिंतक स्व. डॉ. दीनदयाल उपाध्याय का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने कहा था कि हम प्रकृति मां का दूध तो पी सकते हैं, लेकिन उसका खून नहीं। देश में प्रकृति का दोहन रहित विकास की जरूरत है।
इस मौके पर लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने हुकुमदेव नारायण को गरीब, किसान और शोषितों की सजग आवाज बताते हुए कहा कि इनके भाषणों और लेखों में चलताऊ टिप्पणियां नहीं होती, बल्कि ठोस तथ्य आधारित होते हैं। इस कारण जब वह लोकसभा में बोलते हैं तो हर कोई उन्हें गंभीरता से सुनता है। हुकुमदेव नारायण ने कहा कि उनकी सोच और दर्शन में डा. राममनोहर लोहिया, महात्मा गांधी और दीनदयाल उपाध्याय के विचारों का गहरा प्रभाव है।

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