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    JNU विवाद: जेएनयू में छात्रसंघ के पूर्व नेताओं के बीच छिड़ी बहस

    By Amit MishraEdited By:
    Updated: Tue, 08 Mar 2016 11:06 AM (IST)

    जेएनयू में नौ फरवरी की घटना और उसके बाद छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार सहित अन्य छात्रों पर दर्ज हुए देशद्रोह के मामले को लेकर अब जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष आमने-सामने आ गए हैं।

    नई दिल्ली। जेएनयू में नौ फरवरी की घटना और उसके बाद छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार सहित अन्य छात्रों पर दर्ज हुए देशद्रोह के मामले को लेकर अब जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष आमने-सामने आ गए हैं।

    वामपंथी छात्र संगठनों से जुड़े छात्रसंघ के कई अध्यक्षों का कहना है कि विश्वविद्यालय की राष्ट्रविरोधी छवि पेश करने की कोशिश की जा रही है, जो स्वीकार्य नहीं है। जबकि दूसरी ओर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की तरफ से चुनाव लड़ छात्रसंघ अध्यक्ष रह चुके संदीप महापात्र का कहना है कि जेएनयू में सक्रिय राष्ट्रविरोधी छात्र व शिक्षक बेनकाब हो रहे हैं। यही वजह है कि अब ये जेएनयू की साख को मुखौटा बना खुद को बचाने की कोशिश कर रहे हैं।

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    वर्ष 2012 में जेएनयू छात्रसंघ की अध्यक्ष रहीं सुचेता डे ने कहा, यह जेएनयू की संस्कृति में है। मैं और कन्हैया अलग-अलग छात्र संगठन से हैं, लेकिन यह आंदोलन छात्रों और उनकी बोलने की आजादी पर हमले के खिलाफ है। उन्होंने कहा, मेरा विरोध विश्वविद्यालय को राष्ट्रविरोधी के तौर पर पेश करने के खिलाफ है।

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    2002-2004 में दो बार जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे रोहित का कहना है कि वह उन लोगों में शामिल हैं जिन पर 15 फरवरी को पटियाला हाउस अदालत परिसर में तब हमला किया गया था जब वह कन्हैया के खिलाफ देशद्रोह के मामले की सुनवाई में शामिल होने के लिए वहां पहुंचे थे। उन्होंने कहा विश्वविद्यालय को बदनाम करने की कोशिश बंद होनी चाहिए। रोहित अब सेंटर फॉर इकोनॉमी स्टडीज और प्लानिंग में पढ़ाते हैं।

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    2013 में जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे वी लेनिन कुमार ने कहा कि इस बार सरकार ने गलत विश्वविद्यालय को चुन लिया है। उन्होंने कहा, मैं छात्र नेता के तौर पर कुछ मुद्दों पर पार्टी लाइन से अलग हटकर लड़ा हूं चाहे लिंगदोह समिति की सिफारिशें हों या अनुबंध पर काम करने वाले कर्मचारियों का भुगतान। कन्हैया की गिरफ्तारी उनमें से एक है।

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    मोना दास (2004), संदीप सिंह (2007) धनंजय त्रिपाठी (2006) उन पूर्व अध्यक्षों में शामिल हैं जो परिसर में मौजूद हैं और छात्रों के इस आंदोलन में शामिल हो रहे हैं। इससे इतर वर्ष 1999-2000 में संयुक्त सचिव और 2000-2001 में जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे एबीवीपी के संदीप महापात्र ने कहा कि वो पूर्व अध्यक्षों की राय से सहमत ही नहीं हैं। उन्होंने कहा जब दादरी में घटी घटना की निंदा देशभर में हो सकती है तो फिर जेएनयू में देशविरोधी गतिविधि की निंदा से वामपंथियों को परेशानी क्यों हो रही है। जिस तरह से सभी वामपंथी छात्र संगठन और उनके नए पुराने पदाधिकारी एकजुट हुए हैं और जेएनयू जैसे प्रतिष्ठित संस्थान को अपनी ढाल बना रहे हैं उससे साफ हो जाता है कि उनकी पोल खुल गई है। उन्होंने कहा ये पहली बार नहीं है कि कैम्पस में देशविरोधी गतिविधियां हुईं, बस इस बार कार्रवाई हो रही है और उससे बचने के लिए संस्थान को ढाल बनाया जा रहा है।

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