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    15 साल से अनशन पर बैठीं शर्मिला खुदकुशी की कोशिश के आरोप से बरी

    By JP YadavEdited By:
    Updated: Thu, 31 Mar 2016 07:23 AM (IST)

    सेना के विशेषाधिकार कानून के खिलाफ 15 साल से अनशन पर बैठीं इरोम शर्मिला को दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने आत्महत्या की कोशिश के आरोप से बरी कर दिया है। इरोम शर्मिला सशस्त्र सैन्य विशेषाधिकार कानून 1958 (एएफएसपीए) के खिलाफ आमरण अनशन कर अभियान चला रही हैं।

    नई दिल्ली। सेना के विशेषाधिकार कानून के खिलाफ 15 साल से अनशन पर बैठीं इरोम शर्मिला को दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने आत्महत्या की कोशिश के आरोप से बरी कर दिया है। इरोम शर्मिला सशस्त्र सैन्य विशेषाधिकार कानून 1958 (एएफएसपीए) के खिलाफ आमरण अनशन कर अभियान चला रही हैं।

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    यहां पर 2006 में पुलिस ने इरोम के खिलाफ दिल्ली के जंतर-मंतर पर आमरण अनशन के दौरान ये केस दर्ज किया था, हालांकि आरोप तय होने के बाद इरोम ने कहा है कि उन्हें जिंदगी से प्यार है और अनशन की तुलना खुदकुशी की कोशिश से कतई नहीं की जा सकती।

    गौरतलब है कि सैन्य बल विशेषाधिकार अधिनियम को हटाने समेत तमाम मानवाधिकार से जुड़े मुद्दों को लेकर 15 साल से इंफाल में अनशन कर रहीं इरोम ने दुनिया भर का ध्यान खींचा है। इस सिलसिले में 4 अक्टूबर 2006 को उन्होंने दिल्ली के जंतर-मंतर पर भी अनशन किया था। पुलिस ने उनके खिलाफ आत्महत्या की कोशिश का मामला दर्ज किया था, लेकिन इरोम ने अदालत में इस आरोप को सिरे से नकार दिया था।

    वर्ष 2013 में सेना के विशेषाधिकार कानून के खिलाफ 12 साल से अनशन पर बैठीं इरोम शर्मिला पर दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने इरोम शर्मिला पर आत्महत्या की कोशिश के आरोप तय कर दिए थे। इसके बाद लगातार सुनवाई चल रही थी।

    उस दौरान उन्होंन कहा कि मैं जिंदगी से प्यार करती हूं। मैं आत्महत्या नहीं करना चाहती, लेकिन मैं न्याय और शांति चाहती हूं। इरोम ने अदालत में कहा कि वे मणिपुर के लोगों की तकलीफ को सामने लाने के लिए अनशन पर हैं।

    इरोम शर्मिला साल 2000 से ही अनशन पर हैं। इंफाल में अनशन की शुरुआत में ही उन्हें खुदकुशी की कोशिश का आरोप लगाकर गिरफ्तार कर लिया गया था। तभी से पोरोम्पेट स्थित सरकारी अस्पताल में एक वार्ड को जेल में तब्दील कर उन्हें रखा गया है।

    इरोम को नाक के रास्ते जबरदस्ती खाना खिलाया जा रहा है। पांच नवंबर 2000 को शर्मिला ने अनशन शुरू किया। उस दिन के बाद से ही शर्मिला की इस कानून को लेकर सरकार से लड़ाई जारी है। शर्मिला भी आम लोगों की तरह ही जीना चाहती है, लेकिन सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून को रद्द करने की मांग पूरी होने के बाद।

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