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    जान लें 'विक्की डोनर' का सच

    By Edited By:
    Updated: Mon, 30 Apr 2012 01:05 AM (IST)

    राहुल आनंद, नई दिल्ली

    फिल्म 'विक्की डोनर' की तरह अगर आप भी स्पर्म डोनेट कर अपनी पॉकेट मनी बनाना चाहते हैं, तो एक बार फिर से सोच लें। क्योंकि दिल्ली पर फिल्माई गई यह फिल्म हकीकत से बिल्कुल जुदा है। जी हां, राजधानी में स्पर्म डोनेट करने के लिए बने स्पर्म बैंकों में स्पर्म डोनेशन के बदले महज दो से तीन सौ रुपये दिए जाते हैं। इस महंगाई में इतनी रकम से न तो आपका पॉकेट खर्च निकल सकता है और न ही बेरोजगारी की समस्या का हल।

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    नेचर आइवीएफ क्लीनिक की डॉक्टर अर्चना धवन बजाज भी इस बात से इत्तेफाक रखती हैं। दैनिक जागरण से बातचीत में उन्होंने बताया कि फिल्म 'विक्की डोनर' वास्तविकता से परे की कहानी है। इस फिल्म में जिस प्रकार आसानी से स्पर्म डोनेट कर पैसा कमाते दिखाया गया है, उसे देख दिल्ली के किशोर एवं युवाओं में विक्की डोनर बनने की होड़ सी लग गई है। डोनेशन के लिए पहले तीन से चार फोन कॉल हमारे सेंटर में आते थे, लेकिन इस फिल्म के रिलीज होने के बाद औसतन हर दिन 45 से 50 कॉल आ रहे हैं।

    90 फीसदी कॉल किशोरों के

    डॉक्टर बजाज के अनुसार स्पर्म डोनेट करने के इच्छुक किशोरों को यह नहीं पता है कि स्पर्म डोनेट इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आइवीएफ) सेंटर में नहीं बल्कि स्पर्म बैंक में किया जाता है। 90 फीसद कॉल किशोरों के होते हैं। दिल्ली में क्रायोबैंक, व‌र्द्धमान सहित गिनती के तीन-चार स्पर्म बैंक हैं।

    पैसे को लेकर भ्रम न पाले

    डॉक्टर बजाज का कहना है कि जब स्पर्म बैंक हमारे क्लीनिक को 800 से 900 रुपये में स्पर्म मुहैया करता है तो भला किसी डोनर को इसके बदले 10 से 15 हजार रुपये कैसे दे सकता है। इस बारे में क्रायोबैंक स्पर्म बैंक के प्रमुख डॉ. आरके मुतरेजा ने कहा कि दस हजार तो बहुत दूर की बात है। आइसीएमआर (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च) की गाइडलाइन के तहत स्पर्म डोनेट करने पर किसी तरह का भुगतान तय नहीं है। हालांकि डोनेट करने वाले को सेंटर आने-जाने के खर्च के रूप में मात्र दो से तीन सौ रुपये दिए जाते हैं।

    सीमित है यह व्यवसाय

    डॉक्टर मुतरेजा ने कहा कि स्पर्म बैंक में आमतौर पर कॉलेज में पढ़ने वाले युवा आते हैं। उन्हें डोनेशन के बारे में जानकारी नहीं होती है और भ्रम पाल बैठते हैं। स्पर्म डोनेट कर कोई पॉकेट मनी नहीं बना सकता। यह एक सीमित व्यवसाय है और फिल्म सच्चाई से अलग है।

    क्या है आइसीएमआर की गाइड लाइन

    - स्वस्थ्य और संक्रमण रहित लोग ही स्पर्म डोनेट कर सकते हैं।

    - उनकी उम्र 21 से 45 वर्ष के बीच होनी चाहिए।

    - तीन महीने के अंतराल पर दोबारा स्पर्म डोनेट कर सकते हैं

    - कुल 10 बार से ज्यादा डोनेट नहीं किया जा सकता।

    - डोनर का नाम और पहचान नहीं बताई जाती।

    डोनेट से पहले

    - इच्छुक डोनर की पहले प्रोफाइल जांच की जाती है, जिसमें पारिवारिक और सामाजिक पृष्ठभूमि, धर्म, रंग, लंबाई, वजन और पेशा शामिल होता है

    - इसके बाद डोनर की स्वास्थ्य जांच होती है, जिसमें एचआइवी, थैलीसीमिया, हेपेटाइटिस, संक्रमण के साथ-साथ हार्ट और कैंसर की बीमारी के बारे में भी जांच होती है

    - इसके बाद स्पर्म डोनेशन लिया जाता है

    - डोनेशन के बाद स्पर्म को सेंटर में बने फ्रिज में रखा जाता है

    - छह महीने बाद डोनर की फिर से सभी जांच होती है, क्योंकि अगर बीमारी विंडो पीरियड में हो तो फिर से जांच में इसका पता चल सके

    - इसके बाद ही इच्छुक सेंटर को स्पर्म मुहैया कराया जाता है।

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