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    एफवाईयूपी लागू करना मेरा निर्णय नहीं

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    Updated: Thu, 08 Oct 2015 07:39 PM (IST)

    फोटो फाइल 8 डीइएल 311-12 दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) कुलपति का कार्यकाल समाप्त होने को है, मगर इस ...और पढ़ें

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    फोटो फाइल 8 डीइएल 311-12

    दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) कुलपति का कार्यकाल समाप्त होने को है, मगर इस बीच नए कुलपति के चयन को लेकर बनी सर्च कमेटी सवालों के घेरे में आ गई है। 90 साल से अधिक वसंत देख चुके डीयू को नए कुलपति का इंतजार है। इस हलचल के बीच वर्तमान कुलपति प्रो. दिनेश सिंह से उनके कार्यकाल, मानव संसाधन विकास मंत्रालय के दबाव और कार्यकाल समाप्ति के बाद की कार्ययोजना सहित कई विषयों पर वरिष्ठ संवाददता अभिनव उपाध्याय ने बात की। प्रस्तुत है विशेष बातचीत:-

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    डीयू में आपका कार्यकाल बतौर कुलपति पूरा होने वाला है? इस कार्यकाल को आप कैसे देखते हैं?

    व्यक्तिगत तौर पर मुझे बहुत कुछ सीखने का अवसर मिला। मैं यह नहीं कहना चाहता हूं कि मैं कोई सिद्ध पुरुष हूं, परंतु मेरा व्यक्तिगत सुधार हुआ है। मैं अपने को एक नागरिक के तौर पर थोड़ा बेहतर समझता हूं। सोच सुधरी है, विस्तृत हुई है। अच्छे अनुभव रहे। यहां पर राष्ट्र के हर कोने से छात्र आते हैं और मुझे गर्व है कि ये छात्र बडे़ निष्ठावान छात्र हैं। इनके अंदर राष्ट्र के प्रति अच्छे विचार हैं और यह अपने को ऊपर उठाना चाहते हैं। इस चुनौती को मैंने देखा, समझा और उसके समाधान का मार्ग तय करने लगा। मेरे लिए यह लाभकारी और हितकारी अनुभव था।

    क्या आप चाहते हैं कि दूसरा कार्यकाल भी आपको मिले?

    यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि मेरे जीवन में जहां-जहां पड़ाव आए और जब उनकी अवधि समाप्त हुई तो पीछे मुड़कर मैंने नहीं देखा। परन्तु एक बात और मैं कहना चाहता हूं कि मैं चाहूं, न चाहूं, मगर मेरी धर्मपत्‍‌नी को यह पता चलेगा कि एक क्षण भी मैं कार्यकाल के अतिरिक्त रहा तो वह मुझे छोड़ देंगी (हंसते हुए)। वैसे भी आप जानते हैं कि एक विवाहित पुरुष के जीवन की बागडोर कहां रहती है। (फिर हंसते हुए)।

    कहा जा रहा है कि के. कस्तूरीरंगन के नाम पर मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने सवाल उठाया है। सर्च कमेटी के सदस्य के लिए दूसरा नाम डीयू से मांगा है। ऐसे में नए कुलपति के चयन तक आपके कार्यकाल के विस्तार की चर्चा पर आप क्या कहेंगे?

    नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं है। यदि आप विश्वविद्यालय का इतिहास देखें तो भी नहीं है और कानूनन भी नहीं है। कुलपति का कार्यकाल समाप्त होने तक नया कुलपति नहीं आता है तो उप कुलपति को यह जिम्मेदारी दी जाती है। इसमें कोई संदेह नहीं है। लेकिन यदि मंत्रालय को लगता है कि आवश्यक है तो कार्यकाल समाप्ति के बाद भी कुलपति को राष्ट्रपति से अनुमति के बाद मंत्रालय आदेश दे सकता है। तब यह संभव है।

    बतौर कुलपति आपके मन में क्या कसक रह गई जो आप नहीं कर पाए?

    ऐसी तो बहुत सी बातें रह जाती हैं, लेकिन उसकी मुझे कोई टीस नहीं है। फिर भी मैं यह चाहता था कि जो हमारे छात्र यहां आते हैं और वह फिर समाज में जाते हैं तो उनको दिशा देने में हम सहायता करें। हमारे यहां हर साल 50-60 हजार छात्र उत्तीर्ण होते हैं। जब हमने कार्यकाल संभाला उससे पहले कुछ नहीं होता था, लेकिन हमने काम किया। फिर भी पूरी तरह से मैं भी नहीं कर पाया। यदि छात्रों को यहां से उत्तीर्ण होने के बाद रोजगार मिले तो यह काफी बेहतर होगा। अभी बहुत कुछ करना बाकी है।

    चार वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम (एफवाईयूपी) लागू करने का कोई अफसोस है आपको? क्योंकि, इसके बाद आपका विरोध और मुखर हो गया था।

    (गंभीर होते हुए) पहले तो आप ऐसा मत कहिए कि एफवाईयूपी लागू करने का मेरा कोई निर्णय था। यह एक संस्था की ओर से प्रयास किया गया था और उसके संदर्भ में जो कर सकते थे, किया। जो नहीं कर सकते थे, नहीं हुआ। उसको लेकर अब आगे की ओर देखते हैं, पीछे मुड़कर नहीं। और भी चीजें कर रहे हैं। और अच्छी चीजें हो रही हैं। देखिए, इस विश्वविद्यालय का इतिहास 90 साल से अधिक का है। इस बीच तमाम चीजें आईं-गई, लेकिन विश्वविद्यालय हर काल में मजबूत होता गया। मेरी आस्था इस संस्था में है। यह अपने से चलती है, चाहे हम ये लगाएं, न लगाएं, उसका कुछ विशेष महत्व नहीं है।

    सबसे विवादित आपका कार्यकाल गिना जा रहा है, इस विरोध का कारण क्या मानते हैं?

    इसका विश्लेषण करने का तो मुझे समय ही नहीं मिला। दूसरा, वाकई इतना विरोध है क्या, जैसा कि आप कह रहे हैं। मैं जाता रहता हूं तमाम जगह। अध्यापक और बच्चों से मिलता रहता हूं। लेकिन, यदि किसी वर्ग की ओर से विरोध हुआ है तो देखिए, कोई बदलाव लाने का आप यदि प्रयास करेंगे तो थोड़ा बहुत तो हलचल होती ही है, और इसे बुरा भी नहीं मानना चाहिए। क्योंकि, बिना विरोध के यदि सब बदलाव होने लगे तो खतरे की बात है। लोकतंत्र में यह आवश्यक है। मैं इसे बुरा नहीं मानता।

    विगत वर्ष एफवाईयूपी वापस करने का आप पर लगातार दबाव था तो आपने इस्तीफे की घोषणा कर दी थी। इसके बाद आप के ही लोगों ने उसका खंडन भी किया। आपको क्या लगता है कि उस वक्त आपका निर्णय सही था?

    पता नहीं कहां से यह भ्रम उत्पन्न हुआ। यह बात कहां से आई, गई जबकि मैंने न लिखा, न मेल किया। हो जाता है कभी-कभी।

    आरोप है कि आप वाइस रीगल लॉज से बाहर शिक्षकों से कम मिलते हैं और कुछ खास लोगों के घेरे में रहते हैं और उन्हीं की सुनते भी हैं?

    (हंसते हुए) ये पता नहीं कहां से चल पड़ा। जितना मैं घूम-घूम कर छात्रों से मिला हूं उतना तो पिछले 10 कुलपति मिलाकर भी नहीं मिले होंगे। यह झूठा प्रचार भी कहां से आ गया। यह लोग किस मुंह से कहते हैं, मैं नहीं जानता। मैं गांधी भवन में सप्ताह में एक दिन जमीन पर अपने सहयोगियों के साथ खूब बैठा हूं, जो चाहे आकर मिल ले। इसके अलावा मैं बिना किसी सूचना के स्टाफ रूप में जाकर मिला हूं। चाय पी है। शायद ही किसी कुलपति ने ऐसा किया होगा। पिछले एक साल में 22 बार मैं आर्ट फैकल्टी गया हूं। शिक्षक छात्र के अलावा मैं कर्मचारियों से मिला हूं। लेकिन जब मैं मिल रहा था तब मेरी निंदा हो रही थी कि ये जरूरत से ज्यादा मिल रहे हैं। कुलपति बनने के बाद मैं सुबह सभी से मिलना शुरू करता था और ऑफिस पहुंचते-पहुंचते तीसरा पहर हो जाता था।

    आपका कार्यकाल 28 अक्टूबर को समाप्त हो रहा है। इसके बाद क्या योजना है?

    (लंबी सांस लेते हुए), इसके बाद मैं अवकाश की तरफ चल रहा हूं मानसिक तौर से। धर्मपत्‍‌नी को वादा किया है कि हम लोग थोड़ा भ्रमण करेंगे। उनके साथ पांच साल में समय बिता ही नहीं पाया। बिना छुट्टी लिए काम किया। मैं भ्रमण करूंगा, और एक किताब लिखूंगा। उम्मीद रखता हूं आने वाले दिनों में पूरी हो जाएगी।

    कार्यकाल के दौरान इतने उतार-चढ़ाव रहे तो संस्मरण या जीवनी लिखने के बारे में आपने नहीं सोचा?

    नहीं। नहीं। वो सब कुछ नहीं (हंसते हुए)। उस लायक मैं नहीं हूं। उच्च शिक्षा पर लिखूंगा।

    आप अपने कार्यकाल की क्या उपलब्धि मानते हैं?

    मेरे कार्यभार संभालने के बाद से डीयू की गणना देश में नंबर एक पर आ गई। चार वर्ष निरंतर वहीं पर रही। इससे यह संकेत मिलता है कि विश्वविद्यालय में बुरा नहीं हो रहा है। मुझे जो दूसरी उपलब्धि दिखती है, वह छात्रों के बीच बढ़ती गतिविधि है। कैसे छात्र समाज और राष्ट्र की गतिविधियों से वाकिफ हो रहा है आगे बढ़ रहा है। ज्ञानोदय ने पांच यात्राएं की, अंत‌र्ध्वनि हमने किया, क्लस्टर इनोवेशन सेंटर बेहतर कर रहा है। मानसिक तौर से विश्वविद्यालय की सोच में विस्तार हुआ है। बदलाव आया है। इसे मैं अच्छी उपलब्धि मानता हूं। इनोवेशन प्रोजेक्ट का काफी फायदा हुआ है।

    आपके कार्यकाल में विश्वविद्यालय देश में सर्वोच्च स्थान पर पहुंचा फिर भी मानव संसाधन विकास मंत्रालय से आपका सीधा टकराव। इसकी वजह आप क्या मानते हैं?

    देखिए। मेरे ओर से तो कोई टकराव नहीं है और हम उनके अधीन हैं। जो उनके आदेश होते हैं, उनका पालन करते हैं। मुझे तो कोई टकराव नहीं दिखता। मुझे कुछ नहीं लगता।

    सरकार द्वारा उच्च शिक्षा के संस्थानों में नियुक्त प्रमुखों की योग्यता को लेकर बुद्धिजीवियों के बीच एक बहस छिड़ी है। आप इसे किस तरह से देखते हैं?

    देखिए। मैं किसी और की योग्यता पर टिप्पणी करूं उससे पहले मैं अपने को तो देख लूं कि मैं पहले उस योग्य हूं कि किसी की योग्यता पर टिप्पणी करूं। (हंसते हुए) मेरी धर्मपत्नी से बात करेंगे तो क्षण भर में समझ जाएंगे कि मुझमें क्या गुण हैं और क्या अवगुण हैं।