Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    राष्ट्रपति शासन में ही मनमर्जी कर सकते हैं एलजी : सरकार

    By Edited By:
    Updated: Tue, 06 Oct 2015 06:28 PM (IST)

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : उपराज्यपाल केवल राष्ट्रपति शासन में ही मनमर्जी कर सकते हैं। उपराज्यपाल

    Hero Image

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : उपराज्यपाल केवल राष्ट्रपति शासन में ही मनमर्जी कर सकते हैं। उपराज्यपाल केंद्र सरकार के कर्मचारी नहीं हैं। वह राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए गए हैं और उन्हें संविधान के अनुसार ही काम करना होगा। दिल्ली सरकार ने मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी व न्यायमूर्ति जयंत नाथ की खंडपीठ के समक्ष मंगलवार को यह दलील दी। अदालत सीएनजी फिटनेस घोटाले की जांच के लिए गठित न्यायिक आयोग को चुनौती देने, उपराज्यपाल द्वारा दानिक्स अधिकारियों को दिल्ली सरकार का आदेश न मानने, एसीबी के अधिकार को लेकर जारी केंद्र सरकार की अधिसूचना व डिस्कॉम में निदेशकों की नियुक्ति को चुनौती समेत अन्य मामलों में सुनवाई कर रही है। मामले की अगली सुनवाई 7 अक्टूबर को होगी।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    दिल्ली सरकार की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता दयान कृष्णानन ने कहा कि संविधान में मुख्यमंत्री पर विश्वास जताया गया है कि वह राज्य की बेहतरी के लिए काम करेंगे। संविधान के अनुच्छेद 239एए के तहत दिल्ली सरकार के पास अपना राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र अधिनियम 1991 है। इसके तहत उसे काम करने के विभिन्न अधिकार प्राप्त हैं। विधानसभा के पास कानून बनाने का अधिकार है। उन्हें उपराज्यपाल बदल नहीं सकते। दिल्ली में एक मुख्यमंत्री व एक उपराज्यपाल होता है। मुख्यमंत्री चुना हुआ पद है और उपराज्यपाल को राष्ट्रपति चुनते हैं। ऐसे में यहां सत्ता के दो केंद्र हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उपराज्यपाल केंद्र सरकार के इशारे पर काम करें और उसकी कठपुतली बन जाएं।

    इससे पूर्व दिल्ली सरकार ने अदालत में कहा था कि दिल्ली सरकार द्वारा लिए फैसले उपराज्यपाल रद नहीं कर सकते हैं। अगर उपराज्यपाल को मंत्रिमंडल द्वारा लिए फैसले पर कोई आपत्ति है तो उस पर पुनर्विचार की पूरी प्रक्रिया है, लेकिन उपराज्यपाल इसका पालन नहीं कर रहे है। उपराज्यपाल दिल्ली पुलिस, उम्रकैद व फांसी में प्रार्थना याचिका व जमीन संबंधी मामलों में फैसले ले सकते हैं। उन्हें सरकारी कर्मचारी के ट्रांसफर व नियुक्ति का अधिकार नहीं है।

    गौरतलब है कि 23 सिंतबर को अदालत ने इन याचिकाओं की रोजाना सुनवाई का फैसला किया था। खंडपीठ ने किसी भी आदेश पर रोक लगाने से इन्कार करते हुए स्पष्ट किया था कि फिलहाल सभी पक्ष यथास्थित बनाए रखेंगे और कोई भी एक-दूसरे के खिलाफ किसी तरह की दंडात्मक कार्रवाई नहीं करेगा। वह पहले यह तय कर ले कि संविधान की धारा 239एए का क्या अर्थ निकाला जा रहा है। इसके बाद बारी-बारी से सभी मामलों को सुलझा लिया जाएगा। अदालत ने कहा था कि वह मामले में मात्र कानूनी पहलुओं पर ही विचार करेगी।