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    क्या डीयू में बहस के साथ शुरू होगी नई परंपरा?

    By Edited By:
    Updated: Wed, 12 Aug 2015 08:31 PM (IST)

    अभिनव उपाध्याय, नई दिल्ली दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के छात्र संघ चुनाव में इस बार ज्यादातर छात्र ...और पढ़ें

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    अभिनव उपाध्याय, नई दिल्ली

    दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के छात्र संघ चुनाव में इस बार ज्यादातर छात्र संगठन चाहते हैं कि यहां भी जेएनयू की तरह प्रेसिडेंशियल डिबेट हो। हालांकि, छात्र संगठन विश्वविद्यालय की मंशा पर सवाल भी खड़े कर रहे हैं। ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि डिबेट से यहां भी नई परंपरागत की शुरुआत होगी या नहीं? उधर, चुनाव में पहली बार अपनी किस्मत आजमा रही आम आदमी पार्टी की छात्र इकाई सीवाईएसएस डिबेट को अपने प्रमुख मुद्दों में से एक मानकर इसे छात्रों के बीच लेकर जा रही है।

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    शोर नहीं, डिबेट होनी चाहिए: सीवाईएसएस

    सीवाईएसएस के दिल्ली अध्यक्ष अनुपम कहते हैं कि हम डिबेट के मुद्दे को प्रमुखता से छात्रों के बीच लेकर जाएंगे। आखिर छात्र जिस पद के लिए प्रत्याशी चुन रहा है, उसकी बौद्धिक क्षमता और योग्यता की भी उसे परख करनी चाहिए। उसके वास्तविक मुद्दे सामने दिखाई देने चाहिए। डीयू में डिबेट के बजाय बस शोर होता है। अब बदलाव होना चाहिए।

    प्रशासन नहीं चाहता बहस हो: आइसा

    ऑल इंडिया स्टूडेंट्््स एसोसिएशन (आइसा) के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष अनमोल रतन कहते हैं हम चाहते हैं डीयू में भी जेएनयू की तरह बहस हो। हम छात्र चुनाव में सुधार के लिए मुख्य चुनाव अधिकारी से मिले थे, लेकिन डीयू प्रशासन ही नहीं चाहता कि ऐसा कोई बदलाव हो। वह चार दिन में छात्र संघ चुनाव समाप्त करना चाहता है। वह चुनाव के दौरान धनबल व बाहुबल के पक्ष में है।

    बहस हो, मगर सार्थक: एबीवीपी

    एबीवीपी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य रोहित चहल ने कहा कि हमने कभी इस तरह की बहस से इन्कार नहीं किया है। आज देश के अधिकांश विश्वविद्यालयों में हमारे अध्यक्ष हैं, जहां हम चर्चा चाहते हैं। हम बहस चाहते हैं, लेकिन बहस सार्थक हो और उसका परिणाम निकले। डीयू में यदि यह परंपरा शुरू होती है तो हम इसका स्वागत करेंगे।

    हम पहल का स्वागत करते हैं: एनएसयूआइ

    एनएसयूआइ के राष्ट्रीय अध्यक्ष रोजी एम जॉन कहते हैं कि बहस एक सार्थक पहल है। हम बहुत पहले से ऐसा चाहते थे। लेकिन, इसकी प्रक्रिया को लेकर सवाल खड़ा हो सकता है। दरअसल, डीयू की स्थिति जेएनयू से भिन्न है। यहां प्रचार के लिए कम समय मिलता है। यहां लगभग एक लाख छात्रों को एक मंच पर लाना काफी मुश्किल है। फिर भी यह एक बेहतरीन लोकतांत्रिक प्रक्रिया है। हम दूसरे संगठनों से निवेदन करेंगे कि वह इस प्रक्रिया में हमारा साथ दें।

    धन और जाति रखती है मायने

    बताया जाता है कि डीयू छात्र संघ चुनाव में अब तक धनबल और बाहुबल के साथ ही ग्लैमर को ही अहम माना जाता रहा है। चाहे एबीवीपी हो या फिर एनएसयूआइ सभी अपना उम्मीदवार तय करते वक्त प्रत्याशी की शैक्षणिक योग्यता और बौद्धिक क्षमता को पीछे रखकर उसकी जाति, आर्थिक स्थिति और उसकी राजनीतिक पृष्ठभूमि देखते हैं।