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    अब पीएचडी में स्काइप से होगा वाइवा

    By Edited By:
    Updated: Wed, 22 Jul 2015 08:05 PM (IST)

    शैलेंद्र सिंह, नई दिल्ली दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) धीरे-धीरे अपने कोर्स को हाइटेक करने में लग ...और पढ़ें

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    शैलेंद्र सिंह, नई दिल्ली

    दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) धीरे-धीरे अपने कोर्स को हाइटेक करने में लगा हुआ है। अब पीएचडी के स्तर पर स्काइप से वाइवा होगा और सॉफ्टवेयर से नकल की धरपकड़ की जाएगी। छात्रों व परीक्षकों की सहूलियत और रिसर्च की मौलिकता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से डीयू ने तकनीक के इस्तेमाल का निर्णय किया है। हालांकि, अब कॉलेज स्तर पर शिक्षकों के लिए सुपरवाइजर की भूमिका पाना विभागीय शिक्षकों से मुश्किल हो गया है।

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    डीयू में डीन रिसर्च लाइफ साइंसेज प्रो.एमएम चतुर्वेदी ने बताया कि शिक्षा के क्षेत्र में तकनीक के बढ़ते इस्तेमाल और इससे हो रहे फायदे को देखते हुए हाल ही में विश्वविद्यालय की ओर से मंजूर नए पीएचडी नियमों में दो अहम पहलुओं को शामिल किया गया है।

    पहला, वाइवा के लिए न सिर्फ छात्र बल्कि परीक्षक को सात समंदर पार से डीयू आने की जरूरत नहीं है। वो स्काइप व वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए इस अनिवार्यता को पूरा कर सकता है। इसी तरह पीएचडी की मौलिकता को बरकरार रखने और इसमें कट, कॉपी, पेस्ट के बढ़ते चलन को रोकने के लिए विशेष जांच का भी प्रावधान किया गया है। प्रो. चतुर्वेदी ने बताया कि हम ऐसे सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल पीएचडी रिसर्च की जांच में करने जा रहे हैं, जिससे मिनटों में पता लग जाएगा कि कौन सी सामग्री कहां से ली गई है।

    सुपरवाइजर बनने की प्रक्रिया हुई मुश्किल

    पीएचडी के स्तर पर तकनीक के इस्तेमाल को लेकर कार्यकारी परिषद् की सदस्य आभादेव हबीब का कहना है कि स्काइप से वाइवा और सॉफ्टवेयर से रिसर्च की मौलिकता परखने का कदम अच्छा है, लेकिन जिस तरह से नए नियमों में कॉलेज शिक्षकों के सुपरवाइजर बनने की प्रक्रिया मुश्किल की गई है, वो अनुचित है। आभा ने बताया कि अब कोई भी शिक्षक तभी सुपरवाइजर बन सकता है, जब वो खुद पीएचडी डिग्री प्राप्त हो और उसने कोई मेजर प्रोजेक्ट किया होगा। इतना ही नहीं, कॉलेज शिक्षक को सुपरवाइजर की भूमिका देने से पहले बोर्ड ऑफ रिसर्च स्टडीज की टीम इस बात की भी पड़ताल करेगी कि कॉलेज में रिसर्च की सुविधाएं उपलब्ध भी है या नहीं।

    किसे होगा सीधा फायदा

    स्काइप व वीडियो कांफ्रेसिंग की सुविधा से उन छात्रों को फायदा होगा, जो रिसर्च जमा कराने के बाद विदेश में उपलब्ध बेहतर विकल्पों को पाकर देश से बाहर चले जाते हैं। पहले इन छात्रों को कामकाज बीच में छोड़कर विश्वविद्यालय आना पड़ता था, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। इसी तरह वाइवा की प्रक्रिया में विश्वविद्यालय प्रशासन अब विदेश में बसे विशेषज्ञों को भी परीक्षक की भूमिका दे सकता है। कई बार ऐसा भी होता है कि देश के ही विशेषज्ञ अपनी व्यस्तताओं व कार्यक्रमों के चलते वाइवा के लिए व्यक्तिगत तौर पर उपलब्ध नहीं है, ऐसे में इस तकनीक से उनकी मौजूदगी भी सुनिश्चित हो सकेगी।