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    क्या कटऑफ मानदंडों का पालन कर रहे हैं कॉलेज?

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    Updated: Fri, 10 Jul 2015 08:47 PM (IST)

    जागरण संवददाता, नई दिल्ली : हाई कोर्ट ने दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के नए दाखिला नियमों को चुनौती द ...और पढ़ें

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    जागरण संवददाता, नई दिल्ली : हाई कोर्ट ने दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के नए दाखिला नियमों को चुनौती देने संबंधी मामले में डीयू से पूछा है कि क्या कटऑफ मानदंडों का पालन सभी कॉलेज समान रूप से कर रहे हैं। न्यायमूर्ति आरएस एंडलॉ की खंडपीठ के समक्ष डीयू के वकील ने बताया कि कोई भी कॉलेज अतिरिक्त मानदंड व नियमों को लागू नहीं कर सकता है। पूरी दाखिला प्रक्रिया केंद्रीयकृत है। इसके तहत छात्रों को केवल फॉर्म भरना होता है और उसे डीयू में जमा कराना होता है।

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    अदालत ने कहा कि दाखिला मानदंडों को लेकर डीयू की अधिसूचना कहती है कि कॉलेज दाखिला प्रकिया का पालन करते हैं। क्या इसका मतलब यह है कि कॉलेजों के पास अधिकार हैं? अदालत ने डीयू के वकील से कहा कि वह स्पष्ट करें कि क्या ऐसे नियम हैं कि कॉलेज डीयू मानदंडों को मानने के लिए बाध्य हैं? अदालत ने डीयू से जवाब दाखिल कर यह बताने के लिए भी कहा कि आखिर दाखिला केवल थ्योरी के अंकों के आधार पर क्यों नहीं हो सकता। मामले की अगली सुनवाई 13 जुलाई को होगी। इससे पहले 3 जुलाई को अदालत ने मामले में केंद्र सरकार, केरल सरकार, ¨हदू कॉलेज व हंसराज कॉलेज को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।

    यह है मामला

    अदालत उस याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें केरल, हरियाणा पंजाब व राजस्थान के करीब 12 छात्रों ने अलग-अलग याचिका दायर कर कहा है कि डीयू के सभी कॉलेजों में दाखिले की अलग-अलग प्रक्रिया है। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) की मूल्यांकन प्रणाली के अंतर्गत अध्ययन न किए होने पर डीयू में दस अंक काटे जा रहें हैं, जोकि गलत है। डीयू नए नियमों के अनुसार सीबीएसई के अलावा अन्य किसी बोर्ड से पढ़ाई करने पर (प्रैक्टिकल व थ्योरी अध्ययन के आधार पर) दस नंबर काटे जा रहे हैं। जिन छात्रों ने ऐसे बोर्ड से पढ़ाई की है, जहां प्रैक्टिकल व थ्योरी का 70:30 का अनुपात नहीं है, उसके 10 नंबर काटे जाएंगे। डीयू ने अदालत को बताया था कि सभी राज्य शिक्षा बोर्डो को नियमित करना संभव नहीं है। चौथा कटऑफ आने के बाद याचिका दायर की गई है। ऐसे में उन छात्रों को दाखिला लेने में परेशानी आएगी, जिनका कटऑफ में नंबर आया है। उसका कहना था कि हम यह नहीं सोच सकते कि दाखिला मानदंड अच्छे या बुरे हैं। यह नीतिगत निर्णय है।