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    आर्यो के आगमन का सिद्धांत आधारहीन : फ्राली

    By Edited By:
    Updated: Mon, 24 Nov 2014 08:48 PM (IST)

    राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : वैदिक साहित्य का सूक्ष्म अध्ययन करने पर पता चलता है कि भारत में आर्यो के आ

    राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : वैदिक साहित्य का सूक्ष्म अध्ययन करने पर पता चलता है कि भारत में आर्यो के आगमन का सिद्धांत निराधार है। अक्सर यह बातें की जाती हैं कि आर्य दूसरे देश से भारत आए थे, लेकिन शोध के बाद यह बात साबित नहीं होती है। यह दावा अमेरिकी वैदिक अध्ययन संस्थान के संस्थापक डेविड फ्राली ने किया है। दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग में व्याख्यान के दौरान उन्होंने कहा कि आर्यो के आगमन का सिद्धांत खंडित दृष्टिकोण पर आधारित होने के कारण दोषपूर्ण है।

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    डेविड फ्राली ने कहा कि सिंधु घाटी सभ्यता और वैदिक साहित्य को जोड़कर देखने से सारी समस्या का निदान हो जाता है। आर्यो के आगमन संबंधी सभी सिद्धांतों का वैदिक आधार पर खंडन करते हुए उन्होंने कहा कि युद्ध आर्य तथा अनार्य के बीच नहीं बल्कि आर्यो के ही विभिन्न समुदायों के बीच हुए थे। उन्होंने शिव के अनार्य देवता होने का खंडन भी ऋगवेद के प्रमाणों के आधार पर किया। शिव तथा इंद्र वस्तुत: आर्य तथा अनार्य देव नहीं थे। ऋगवेद में उनकी अभिन्नता के कई प्रमाण मिलते हैं। आर्यो तथा द्रविड़ों की भिन्नता से संबंधित बातें खंडित व्याख्यान हैं।

    संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. रमेश सी भारद्वाज ने बताया कि भारतीय साहित्य में कहीं भी आर्य शब्द का जाति विशेष के अर्थ में प्रयोग नहीं है। आर्य शब्द का अर्थ विशिष्ट तथा श्रेष्ठ गुण जन है। आर्यो के आक्रमण से संबंद्धित सिद्धांत औपनिवेशिक भारत के दुष्परिणामों में से एक है। ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा प्रायोजित विद्वानों ने बलपूर्वक आर्य शब्द के जातीय संदर्भ ढूंढ़कर द्रविड़ के सामने खड़ा किया। उत्तर-दक्षिण तथा निम्न उच्च आदि विवाद भारत की अखंडता के लिए खतरा हैं। विभाग समय-समय पर इतिहास और संस्कृत के जुड़ाव से संबंधित व्याख्यान आयोजित करेगा।