सरोगेसी का हब बन रही राजधानी

जागरण संवाददाता, दक्षिणी दिल्ली : राजधानी सरोगेसी का हब बनती जा रही है। बिहार, मुंबई, झारखंड, इंदौर समेत कई राज्यों में गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रही महिलाओं को सेरोगेट मां बनाने के लिए तैयार किया जा रहा है।
सेंटर फार सोशल रिसर्च द्वारा गुजरात व दिल्ली में हुए एक अध्ययन में यह खुलासा हुआ है कि राजधानी में एक-दो नहीं, बल्कि 50 ऐसे सेंटर चल रहे हैं, जो सरोगेसी करा रहे हैं। इन सेंटरों से प्रतिवर्ष 250 बच्चे पैदा कराए जा रहे हैं। वहीं अन्य राज्यों से दिल्ली लाई जा रही सेरोगेट मां को ना केवल गोपनीय जगहों पर कमरा लेकर रखा जाता है, बल्कि बच्चा होने तक उन्हें उनके परिवार से मिलने तक नहीं दिया जाता है।
सेंटर फॉर सोशल रिसर्च की निदेशक रंजना कुमारी कहती हैं कि प्रतिवर्ष भारत में 45 हजार बच्चे सरोगेसी प्रक्रिया के जरिए पैदा किए जा रहे हैं। वर्तमान में यह करोड़ों रुपये का कारोबार बन चुका है। बावजूद इसके अब तक कोई ठोस नियम नहीं बनाए गए हैं।
अन्य शहरों में भी हो रहा कारोबार
रंजना कुमारी कहती हैं कि झारखंड, उड़ीसा, बिहार व मुंबई की झुग्गी-झोपड़ियों से गरीब तबके की महिलाओं को सरोगेसी के लिए चुना जाता है। इन महिलाओं की मासिक आय महज 1 से 2 हजार रुपये होती है। कम आमदनी के कारण घर का खर्चा चलाना मुश्किल होता है। संस्था द्वारा रिसर्च में पता चला कि दिल्ली, बेंगलूर, मुंबई, इंदौर में धड़ल्ले से सरोगेसी को अंजाम दिया जा रहा है।
सरोगेट मां को कम मिलते हैं पैसे
संस्था की रिसर्च हेड मानसी मिश्रा कहती हैं कि राजधानी समेत गुजरात में किराए के कोख का सबसे ज्यादा कारोबार होता है। यहां सरोगेसी के जरिए बच्चा चाहने वाले शख्स को एजेंट को 2 से 5 लाख रुपये देना पड़ता है, जबकि शोध में खुलासा हुआ कि एजेंट सरोगेट मां को महज 75 हजार से 1 लाख रुपये ही देते हैं। इस दौरान यदि मां की मौत हो जाए तो मुआवजे की उम्मीद बेमानी है।
नहीं पहनाया जाता है कानूनी जामा
रंजना कुमारी ने बताया कि एक सरोगेसी प्रक्रिया के तहत 5 से 10 लाख रुपये का खर्च आता है। इसमें वकील, डॉक्टर की फीस समेत महिला के स्वास्थ्य, खानपान भी शामिल है। इस प्रक्रिया को कानूनी जामा भी नहीं पहनाया जाता है। इसका परिणाम निकलता है कि यदि कोई महिला दो या तीन बच्चों को एक साथ जन्म दे भी देती है तो उसे पेमेंट महज एक बच्चे की मिलती है।
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