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आखिरी सांस तक गूंजता रहेगा सचिन, सचिन

'यकीन नहीं हो रहा कि पिछले 24 साल से 22 गज के दरमियान की मेरी जिंदगी खत्म हो गई है। सभी को धन्यवाद, जिन्होंने मुझे सहयोग किया। मैं पहली बार सूची लेकर आया हूं जिन्हें मुझे धन्यवाद देना है, क्योंकि कई बार मैं भूल जाता हूं। सबसे पहले मेरे पिता (रमेश तेंदुलकर) जिनका 1

By Edited By: Published: Sun, 17 Nov 2013 01:00 AM (IST)Updated: Sun, 17 Nov 2013 01:31 AM (IST)
आखिरी सांस तक गूंजता रहेगा सचिन, सचिन

सचिन तेंदुलकर। 'यकीन नहीं हो रहा कि पिछले 24 साल से 22 गज के दरमियान की मेरी जिंदगी खत्म हो गई है। सभी को धन्यवाद, जिन्होंने मुझे सहयोग किया। मैं पहली बार सूची लेकर आया हूं जिन्हें मुझे धन्यवाद देना है, क्योंकि कई बार मैं भूल जाता हूं।

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पढ़ें: आंखों को नम कर दिलों में बस गए सचिन

सबसे पहले मेरे पिता (रमेश तेंदुलकर) जिनका 1999 में निधन हो गया। उनके मार्गदर्शन के बिना मैं आपके सामने खड़ा नहीं होता। 11 साल की उम्र में उन्होंने मुझे यह आजादी दी कि मैं अपने सपने पूरे कर सकूं। उन्होंने मुझसे कहा कि हार नहीं मानो और कभी शॉर्टकट मत अपनाओ। मुझे आज उनकी कमी खल रही है। मेरी मां ने मेरे लिए बहुत बलिदान किए।

मुझे नहीं पता कि वह मेरे जैसे शरारती बच्चे से कैसे निपटती रही होंगी। जिस दिन से मैंने खेलना शुरू किया, वह सिर्फ मेरे लिए दुआएं करती आई हैं। मैं स्कूल के दिनों में चार साल अपने काका और काकी के साथ रहा, जिन्होंने मुझे अपने बेटे की तरह माना। मेरा सबसे बड़ा भाई नितिन बहुत बोलता नहीं है, लेकिन उसने कहा था कि तुम जो भी करोगे, मुझे पता है कि अपना शत प्रतिशत दोगे। मेरा पहला बल्ला मेरी बहन सविता ने दिया था।

अभी भी जब मैं बल्लेबाजी करता हूं, तो वह उपवास रखती है। अजित और मैंने यह सपना साथ देखा था। उसने मेरे लिए अपना करियर कुर्बान कर दिया। वह मुझे आचरेकर (रमाकांत) सर के पास लेकर गया। पिछली रात भी उसने मुझे फोन करके मेरे विकेट के बारे में बात की। जब मैं नहीं खेलता हूं तब भी हम तकनीक पर बात करते हैं। अंजलि से शादी मेरे जीवन का सबसे खूबसूरत पल था। मुझे पता था कि एक डॉक्टर होने के नाते उसके सामने सुनहरा करियर था। जब हमारा परिवार बढ़ रहा था तो उसने फैसला किया कि मैं खेलता रहूं और वह घर संभालेगी।

इतने सालों तक मेरी सारी बकवास सुनने के लिए शुक्रिया। मेरे जीवन की तुम सर्वश्रेष्ठ साझेदार हो। मेरी जिंदगी में दो हीरे हैं मेरे बच्चे। अर्जुन और सारा। वे बड़े हो रहे हैं, सारा 16 साल की है और अर्जुन 14 का। मैं हमेशा ही इनके साथ वक्त बिताना चाहता था, लेकिन ज्यादातर बाहर ही होता। लेकिन इन्होंने यह बात समझी। मैं दोनों बच्चों का इस समझदारी के लिए धन्यवाद करता हूं। आचरेकर सर ने मेरी क्रिकेट प्रैक्टिस के लिए मुझे 11 साल की उम्र से शिवाजी पार्क से लेकर आजाद मैदान तक पूरी मुंबई घुमाई। सर को बहुत धन्यवाद। सर ने मुझे कभी 'वेल प्लेड' नहीं कहा, क्योंकि उन्हें डर था कि मैं अच्छा खेलना न छोड़ दूं।

लाखों-करोड़ों प्रशंसकों का भी मुझ पर विश्वास बनाए रखने के लिए धन्यवाद। जब तक मैं जिंदा रहूंगा तब तक सचिन-सचिन मेरे कानों में गूंजता रहेगा। मेरे साथ खेल चुके सभी सीनियर क्रिकेटरों को धन्यवाद। राहुल (द्रविड़), वीवीएस (लक्ष्मण), सौरव (गांगुली) और अनिल (कुंबले) जो यहां नहीं हैं। जब एमएस (धौनी) ने मुझे 200वें टेस्ट की कैप सौंपी, तो मैंने टीम को एक संदेश दिया कि हम सभी देश का प्रतिनिधित्व करके गौरवान्वित हैं। मुझे पूरा यकीन है कि आप इसी तरह देश की सेवा करते रहेंगे।'

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