Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    राहुल की रैली : जवाब देने को चंपारण की जमीन वाजिब थी...

    रणनीति बिल्कुल साफ है। जहां-जहां से कांग्रेस पर आरोप लगाए गए, जवाब वहीं से दिया जाएगा। वैसे भी चंपारण हमेशा से कांग्रेस के लिए साख और संभावना की जमीन रही है।

    By Pradeep Kumar TiwariEdited By: Updated: Sun, 20 Sep 2015 12:47 PM (IST)

    पश्चिम चंपारण [सुनील राज]। रणनीति बिल्कुल साफ है। जहां-जहां से कांग्रेस पर आरोप लगाए गए, जवाब वहीं से दिया जाएगा। वैसे भी चंपारण हमेशा से कांग्रेस के लिए साख और संभावना की जमीन रही है।

    पिछले साल मई में रामनगर के हजारी मैदान से लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने किसानों के बहाने कांग्रेस पर हमला बोला था। कोशिश थी चंपारण की जो जमीन हमेशा से गांधी और कांग्रेस के संदर्भ में याद की जाती रही है, उसी जमीन पर खड़े होकर कांग्रेस को ललकारा जाए।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    रामनगर की उस सभा को याद रखने वाले लोग बताते हैं कि मोदी जी ने किसानों से वादा किया था कि उन्हें सरकार बनने पर इतनी सब्सिडी दी जाएगी कि जितनी किसी सरकार ने आज तक नहीं दी। हमले में भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाने से मोदी उस वक्त नहीं चूके थे। अब जबकि विधानसभा चुनाव की अग्निपरीक्षा तमाम दलों के लिए आ चुकी है तो कांग्रेस को माकूल मौका मिल गया।

    चंपारण में शनिवार को कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने मोदी के उन तमाम आरोपों का जी भर कर जवाब दिया। मुद््दा चाहे भ्रष्टाचार का रहा हो या फिर किसानों की सुविधाओं का। राहुल ने शायद इसीलिए अंदाज भी बदला था और उसी जनता से सवाल उठाए थे जिसके सामने मोदी ने वादे किए थे।

    जनता ने जवाब भी दिया, कुछ-कुछ इंटलेक्चुअल अंदाज में । राहुल ने जनता के उन शब्दों को दोहराया भी। फिर मोदी वाले अंदाज में ही जवाब मांगा, नौकरी मिली... बैंक एकाउंट में 15 लाख आए? जैसी उम्मीद थी जवाब भी मिले। चंपारण में ललकार का जवाब शायद यहां की जनता भी चाहती थी।

    इस मुद्दे के अलावा एक मसला यह भी था कि कांग्रेस महागठबंधन के तमाम दलों को भी यह मैसेज दे देना चाहती थी कि वे कांग्रेस को कमतर आंकने की गलती न करें। मंच पर भीड़ जुटाने वाले लालू और विकास की बातों से रौ बांधने वाले नीतीश कुमार की गैरमौजूदगी से कांग्रेस हताश नहीं हुई थी।

    उसने मजबूरी को मौके में बदला था और इसी का परिणाम था कि जो भीड़ आई उसके हाथों में सिवाय कांग्रेस के झंडों के और कुछ नहीं था। न लालटेन और न ही तीर निशान। केसरिया रंग तो मौजूं था, पर हरे और सफेद रंग की पट््टी लिए। संदेश जो देने थे वे दिए जा चुके थे।

    कांग्रेसी भी चाहते हैं कि इसके निहितार्थ निकाले जाएं और निकाले भी जाएंगे। बहरहाल एक मसले पर कांग्रेस के लिए अच्छी-खासी भीड़ ये पैगाम लेकर आई कि पुराने कांग्रेसियों को कोई बदल नहीं सकता। न तो विकास के वादे और न ही किसी प्रकार की चमक। वे विचारधारा के साथ कल भी थे और शायद आज भी हैं तभी तो वे भाजपा पर किए जा रहे कटाक्ष में कांग्रेस के साथ खड़े दिखे, मानो अरसे बाद मन की मुराद पूरी हो गई हो।