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    अब स्वी विधि से होगी गेहूं की बेहतर उपज

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    Updated: Mon, 14 Nov 2011 06:09 PM (IST)

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    सुपौल, जाप्र : कृषि को उन्नत बनाने के लिए नित नए प्रयोग जारी हैं। किसान श्री (एसआरआई) विधि से धान की खेती का मजा ले चुके हैं। अब बारी है स्वी विधि की। स्वी (सिस्टम ऑफ ह्वीट इंटेसीफिकेशन या गेहूं का सघनीकरण) प्रणाली भी श्री विधि जैसा ही है। इसलिए इसे बोलचाल में श्री विधि भी कहा जाता है, लेकिन कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो वास्तव में यह स्वी विधि ही है। जिससे किसान 40 फीसदी अधिक उपज प्राप्त कर सकते हैं। यही कारण है कि जिले में चार हजार 76 एकड़ में प्रायोगिक तौर पर स्वी विधि से गेहूं की खेती करने की योजना है।

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    कम बीज की जरूरत

    किसानों के लिए फायदे की बात यह है कि स्वी विधि में परंपरागत खेती की तुलना में काफी कम बीज की जरूरत होती है। परंपरागत रूप से जहां गेहूं की खेती में प्रति एकड़ 40-50 किलो बीज की खपत होती है, वहीं इस विधि में दस किलो बीज ही पर्याप्त है। इस विधि में बीज रोपण के दौरान यह सावधानी रखनी चाहिए कि कतार से कतार व पौधा से पौधा की दूरी आठ इंच होनी चाहिए। इससे पौधे को पोषण, नमी व प्रकाश पर्याप्त मात्रा में मिलता है। खास बात यह कि इसमें एक स्थान पर दो बीज लगाए जाते हैं।

    कैसे करें बीजोपचार

    एक एकड़ के लिए दस किलो बीज में से किसानों को सबसे पहले गंदे एवं खराब बीज को छांट लेना चाहिए। इसके बाद 20 लीटर गर्म पानी में इसे डालकर पांच किलो वर्मी कंपोस्ट, तीन किलो मीठा गुड़ व चार लीटर गोमूत्र मिलाकर आठ घंटे के लिए छोड़ देना चाहिए। इसके बाद बीज को कपड़े से छानकर फफूंदी नाशक वेस्टीन 20 मिलीग्राम तक मिलाकर गीले बोरे में बांध कर छोड़ दिया जाता है। लगभग 12 घंटे के बाद बीज अंकुरित होने लगता है। इस विधि में पहली सिंचाई बुआई के 15 दिन बाद होती है। इसके बाद यूरिया और वर्मी कंपोस्ट मिलाकर छिड़काव किया जाता है। दूसरी सिंचाई की जरूरत एक माह के बाद ही होती है।

    क्या कहते हैं अधिकारी

    जिला कृषि पदाधिकारी राम प्रबोध ठाकुर ने कहा कि गेहूं की स्वी विधि से खेती क्रांतिकारी साबित होगी। रबी महोत्सव के दौरान किसानों को अनुदानित मूल्य पर बीज भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं। इस विधि का मूलमंत्र है कम लागत में अधिक उत्पादन।

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