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    नालंदा विवि में बोले उपराष्ट्रपति, फतह हासिल करने को बनें आशावादी

    By Amit AlokEdited By:
    Updated: Thu, 08 Sep 2016 08:10 PM (IST)

    उपराष्ट्रपति डॉ. हामिद अंसारी ने गुरुवार को नालंदा अंतरराष्ट्रीय विवि के विद्यार्थियों से संवाद किया। उन्होंने वहां विद्याार्थियों के सवालों के जवाब दिए।

    नालंदा विवि में बोले उपराष्ट्रपति, फतह हासिल करने को बनें आशावादी

    नालंदा [मुकेश/ जनमेजय]। भारत के उपराष्ट्रपति डॉ. हामिद अंसारी ने नालंदा अंतरराष्ट्रीय विवि के विद्यार्थियों से कहा कि हमारे कदम बढ़ चले हैं उस डगर की ओर जिसे हमने आठ सौ साल पीछे छोड़ रखा था। हमारी सफलता की गूंज पूरे जगत में सुनाई पड़ रही है। नालंदा अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय को साकार करने का हमारा सपना साकार हो चुका है।

    डॉ. हामिद अंसारी किला मैदान से सीधे नालंदा विवि के नए बैच के विद्यार्थियों से मुखातिब होने दोपहर बाद अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन हॉल पहुंचे। उनके साथ राज्यपाल रामनाथ कोविंद व शिक्षा मंत्री अशोक चौधरी भी थे। अंतरराष्ट्रीय विवि की उपकुलपति डॉ. गोपा सभरवाल ने उनका स्वागत किया।
    अपने संक्षिप्त संबोधन के बाद उपराष्ट्रपति ने छात्र-छात्राओं से सीधी बात की। उन्होंने कहा कि हमने आठ सौ साल बाद नालंदा विवि को पुनर्जीवित कर खुद को फिर श्रेष्ठ साबित किया है। यह देश के लिए गौरव की बात है। मैं छात्रों के मुख से सुनने आया हूं कि प्रगति के संदर्भ में उनका विजन क्या है, क्योंकि आने वाला समय उनका है।
    विद्यार्थियों के प्रश्नों के दिए जवाब
    अपने लघु संवाद के तुरंत बाद उन्होंने विद्यार्थियों के पूछे गए प्रश्नों का उत्तर देकर उनका ज्ञानवर्धन किया।
    - स्कूल ऑफ इकोलोजी एंड इन्वायरमेंट के छात्र गौरव ने जब उपराष्ट्रपति से पूछा कि तेजी से हो रहे ग्लोबलाइजेशन का पूरी दुनिया पर क्या असर पड़ेगा तो यह सुनकर वे मुस्कुरा उठे। कहा, प्रगति मानव के लिए आवश्यक है, लेकिन पर्यावरण के मूल्यों पर प्रगति मानव के लिए घातक है।
    - छात्र कृष्णकांत के प्रश्न का उत्तर देते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, स्वास्थ्य, पर्यावरण व शिक्षा में बेहतरी से ही हम 2022 के विकसित भारत के स्वप्न को साकार कर पाएंगे।
    - नाइजीरिया के छात्र सिमरामन का प्रश्न वस्तुत: उनके देश से जुड़ा था। साथ ही उन्होंने ग्लोबल गर्वनेंस से जुड़े प्रश्न पूछे तो उपराष्ट्रपति के चेहरे पर पुन: मुस्कान आ गई।
    - अंत में इकोलोजी की छात्रा सोनिया के प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि हम आशावादी नहीं हैं तो हमारा जीवन अर्थहीन है। आशावादी बनकर ही हम दुनिया को जीत सकते हैं।

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