पटना [अमित आलोक]। तारीख : छह जून 1981, स्थान : बिहार के खगडि़या जिले का धमारा घाट। पुल पर एक पैसेंजर ट्रेन और बाहर तेज बारिश। ट्रेन के भीतर यात्री अपने में मस्त, सभी को घर पहुंचने की जल्दी। अचानक ड्राइवर ने ब्रेक लगाई और ट्रेन की नौ में से सात बोगियां फिसलकर पुल तोड़ते हुए लबालब नदी में विलीन हो गईं। आंकड़ों के हिसाब से दुर्घटना में करीब 800 लोगों की मौत हुई। हालांकि, बाद में मौत की संख्या कई गुना अधिक बताई गई।
यह भारत की अब तक की सबसे बड़ी और विश्व की दूसरी सबसे बड़ी ट्रेन दुर्घटना थी। विश्व की सबसे बड़ी ट्रेन दुर्घटना श्रीलंका में 2004 में हुई थी। तब 'सुनामी' की तेज लहरों में 'ओसियन क्वीन एक्सप्रेस' विलीन हो गई थी। उसमें 1,700 से अधिक लोगों की मौत हुई थी।
बिहार की दर्जनों ट्रेन दुर्घटनाओं में जा चुकीं हजारों जानें, डालते हैं नजर...
याद हो गई ताजा
आज की दुर्घटना ने देश की उस सबसे बड़ी ट्रेन दुर्घटना की याद ताजा कर दी है। जो बच गए, वे आज भी उस मंजर को याद कर सिहर पड़ते हैं।
दरअसल, 1981 ट्रेन दुर्घटनाओं का साल था। जनवरी से सितंबर तक आठ महीनों में ही 526 ट्रेन दुर्घटनाओं के कारण तत्कालीन रेल मंत्री केदारनाथ पांडे की कुर्सी खतरे में थी। इसी बीच भीड़ भरी 416 डाउन ट्रेन 6 जून को नदी में समा गई।
मानवता पर लगा ये दाग
बोगियों के नदी में गिरने के बाद, जाहिर सी बात है कि चीख-पुकार मच गयी। कुछ चोट लगने या डूब जाने से जल्द मर गए, कुछ जो तैरना जानते थे, उन्होंने किसी तरह गेट और खिड़की से अपने और अपने प्रियजनों को निकाला। पर इसके बाद जो हादसा हुआ, वह मानवता के दामन पर बदनुमा दाग बन गया।
घटना स्थल की ओर तैरकर बाहर आने वालों से कुछ स्थानीय लोगों ने लूटपाट शुरू कर दी। यहां तक कि प्रतिरोध करने वालों को कुछ लोगों ने फिर से डुबोना शुरू कर दिया। कुछ यात्रियों का तो यहां तक आरोप है कि जान बचाकर किनारे तक पहुंची महिलाओं की आबरू से भी खेला गया।
मंजर याद कर सिहर उठता दिल
बाद में जब पुलिस ने बंगलिया, हरदिया और बल्कुंडा गांवों में छापेमारी की तो कई घरों से टोकरियों में सूटकेस, गहने व लूट के अन्य सामान मिले थे। इससे यात्रियों के आरोपों की पुष्टि हुई। मोतिहारी में शिक्षक ठाकुर शशि शेखर बताते हैं कि दुर्घटना के दौरान उनके माता-पिता उसी ट्रेन में थे। मां बुरी तरह घायह हुई थीं। उन्होंने लूटपाट का वो मंजर अपनी आंखों से देखा था।
तीन हजार तक हुई मौतें
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक करीब 500 लोग ही ट्रेन में थे। लेकिन, बाद में रेलवे के दो अधिकारियों ने मीडिया से बातचीत में मृतकों की संख्या 1000 से 3000 के बीच बताई थी। गौरतलब बात यह है कि यह पैसेंजर ट्रेन थी, जिसमें कितने लोग थे, निश्चित अंदाजा लगा पाना मुश्किल था।
दुर्घटना के बाद स्थानीय व रेल प्रशासन ने राहत व बचाव अभियान चलाया। गोताखोर लगाए गए। भारतीय नौसेना ने तो पानी के अंदर विस्फोटकों का इस्तेमाल कर 500 लाशें निकालने की योजना बनाई , हालांकि ऐसा नहीं हो सका।
दुर्घटना की वजह अज्ञात
आखिर वह दुर्घटना कैसे हुई थी? वजह का आज तक पता नहीं चल सका है। हालांकि, दो कारण बताए गए हैं। पहला यह कि ट्रैक पर अचानक एक भैंस आ गई, जिसे बचाने के क्रम में ड्राइवर ने ब्रेक मारी। ट्रैक पर फिसलन के कारण ट्रेन फिसलकर नदी में जा गिरी। दूसरा कारण यह बताया जाता है कि उस वक्त तूफानी हवाओं के साथ बारिश हो रही थी। इस कारण यात्रियों ने खिड़कियां बंद कर लीं। अस कारण ट्रेन से तूफानी हवाओं के क्रॉस करने के सारे रास्ते बंद हो गए और भारी दबाव के चलते ट्रेन पलट गई।
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