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    नौकरी की कर रहे तलाश तो जरूर पढ़ें- ऐसे होता है 'सपनों' का कत्ल

    By pradeep Kumar TiwariEdited By:
    Updated: Sat, 16 May 2015 10:29 AM (IST)

    फुटपाथों पर 'सपने' बिकते हैं। नौकरियों के सपने... छात्रवृत्ति के सपने... बेरोजगार युवा दो रुपये में इन 'सपनों' का फॉर्म खरीदते हैं, मगर धीरे-धीरे ऐसे ...और पढ़ें

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    पटना [प्रशांत कुमार]। फुटपाथों पर 'सपने' बिकते हैं। नौकरियों के सपने... छात्रवृत्ति के सपने... बेरोजगार युवा दो रुपये में इन 'सपनों' का फॉर्म खरीदते हैं, मगर धीरे-धीरे ऐसे फंसते हैं कि हजारों-लाखों की चपत लग जाती है। छात्रों को अधिकतर मामलों में हासिल कुछ नहीं होता मगर फॉर्म बेचकर शातिर करोड़ो रुपये कमा लेते हैं।

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    युवाओं के सपने बस सपने ही रह जाते हैं। पिछले दिनों मर्चेंट नेवी के नाम पर ठगी का मामला कुछ ऐसा ही था। रिजल्ट के मौसम में ऐसे फर्जी आवेदनों की संख्या और बढ़ जाती है। ऐसे में जरूरी है कि सपनों के फॉर्म खरीदने से पहले उसकी जमीनी हकीकत समझने की।

    शहर के किसी भी चौक-चौराहे पर खड़े जाइए। मर्चेंट नेवी, छात्रवृति योजना, विभिन्न संगठनों में नियुक्ति, गार्ड, सुपरवाइजर की बहाली जैसे फॉर्म बड़ी संख्या में मिल जाएंगे। इसमें असली फॉर्मों के साथ फर्जी फॉर्म भी शामिल होते हैं। फॉर्म इस खूबी से छापा जाता है कि पढ़े-लिखे बेरोजगार भी असली और नकली का फर्क नहीं पकड़ पाते।

    फॉर्म भरकर भेजते हैं और मोटी रकम गवां देते हैं। जब तक सच्चाई सामने आती है, तब तक संस्था के कार्यालय में ताला लटक चुका होता है। लाखों रुपये डकार चुके संचालक का नामो-निशान तक नहीं मिलता। ज्यादातर मामलों में ठगी के शिकार हुए लोग एफआइआर तक कराने में दिलचस्पी नहीं लेते। लिखित शिकायत नहीं होने के कारण पुलिस भी गोरखधंधा चलाने वालों को पकडऩे के लिए हाथ-पांव नहीं मारती। नतीजतन, पता-ठिकाना बदलकर ठग अपना कारोबार जारी रखते हैं।

    ऐसे बनता है फर्जी संगठन

    ठग फर्जी पहचान-पत्र और आवास प्रमाण-पत्र देकर सरकारी संगठनों से मिलते-जुलते नाम पर लेबर कोर्ट अथवा किसी सरकारी संगठन से निबंधन करवा लेते हैं। इसके बाद शहर के पॉश इलाके के किसी चर्चित इमारत में दो-तीन कमरे के फ्लैट में पूरे ताम-झाम के साथ दफ्तर खोल देते हैं। फर्जी पहचान-पत्र पर मोबाइल कंपनियों से सिम कार्ड खरीदते हैं। संस्थान के नाम से आकर्षक वेबसाइट बनवाते हैं। आकर्षण के लिए दफ्तर में एक महिला रिसेप्शनिस्ट और एसी जरूर लगवाते हैं।

    50 पैसे में छपता है एक फॉर्म

    दफ्तर खोलने के बाद ठग फॉर्म की छपाई करने वाले एजेंटों से संपर्क करते हैं। एजेंट ऐसा हो जो फॉर्म छाप कर सभी जिलों में उपलब्ध करा दे। शहर में दो-तीन नामी फॉर्म की छपाई कर बिक्री करने वाले एजेंट हैं। अक्सर वो 50 पैसे प्रति फॉर्म की छपाई और 50 पैसे प्रति फॉर्म वितरण के दर से संस्थाओं के संचालक से वसूल करते हैं।

    फॉर्म के साथ मंगवाते हैं डिमांड ड्राफ्ट

    फॉर्म के साथ आवेदकों से 100 से लेकर 500 रुपये तक का डिमांड ड्राफ्ट मंगवाया जाता है। इसके अलावा दो लिफाफे जिस पर 5-5 रुपये के स्टांप लगे हो। कुछ शातिर लोग संस्था के कार्यालय में फॉर्म मंगवाने के बजाए फर्जी तरीके से पोस्ट ऑफिस में बॉक्स ले लेते हैं और फॉर्म उसी में मंगवाते हैं।

    कम पढ़े-लिखे लोग होते हैं टारगेट

    ठगों के टारगेट पर अक्सर कम पढ़े-लिखे और गांव के लोग होते हैं। वे एजेंटों से आग्रह करते हैं कि उनका फॉर्म शहर के सभी स्टॉलों पर मिले न मिले, लेकिन सुदूर इलाकों और गांवों तक जरूर उपलब्ध हो ताकि वहां रहने वाले जब उनके कार्यालय की चमक-धमक देखे तो कोई सवाल न करें।

    ट्रेनिंग के नाम पर वसूलते हैं पैसे

    संचालक फॉर्म जाम लेने के बाद आवेदकों को परीक्षा भी लेते हैं। निजी स्कूलों को परीक्षा केंद्र बनाया जाता है। इसके बाद संस्था की वेबसाइट पर रिजल्ट प्रकाशित किया जाता है। अक्सर सभी आवेदकों को पास कर दिया जाता है। फिर उन्हें साक्षात्कार के लिए किसी होटल में बुलाते हैं। वहां उनसे ट्रेनिंग के नाम पर हजारों रुपये फीस मांगी जाती है। अधिकांश बेरोजगार पैसे देने के लिए तैयार हो जाते हैं। मोटी रकम वसूलने के बाद संचालक उन्हें टहलाना शुरू कर देता है। जब आवेदक पैसे लौटाने का दबाव बनाने लगते हैं तो संस्था के दफ्तर पर ताला जड़ा मिलता है।

    पहले भी आए हैं ऐसे मामले

    राजधानी में इस तरह के मामले पहले भी कई थानों में दर्ज हुए हैं। गांधी मैदान थाने में तो इस तरह के दो दर्जन मामले दर्ज हैं। हाल में पुलिस ने आशियाना टावर और आशियाना गलैक्सी में स्थित मर्चेंट नेवी और कृषि आधारित फर्जी योजना के दफ्तर में छापेमारी की थी। लेकिन मौके से संचालक और उसके गुर्गे भागने में सफल रहे। एक-दो कांडों में ही आरोपियों की गिरफ्तारी हो पाई है, बाकी फाइलों में दबकर रह गई। पुलिस की मानें तो ठग अपने शिकार के पास ऐसा कोई सुराग नहीं छोड़ते, जिससे वे कानून की गिरफ्त में आ सकें।

    रिझाने के लिए फॉर्म में करते हैं इसका जिक्र

    - बड़े अक्षरों में संस्था का नाम

    - संस्था के नाम के नीचे राज्य अथवा केंद्र सरकार से मान्यता प्राप्त लिखना

    - किसी अखबार के क्लासिफाइड कॉलम में दिए गए विज्ञापन की संख्या

    - वेबसाइट का पता और फोन नंबर

    - आवेदन देने की अंतिम तिथि के सामने परीक्षा की तिथि

    एसएसपी ने कहा-

    एसएसपी जितेंद्र राणा ने कहा कि युवा शॉर्टकट के बजाय अपनी मेहनत से नौकरी पाने की ख्वाहिश रखें। अगर उनसे कोई नौकरी दिलाने अथवा ट्रेनिंग कराने के नाम पर अवैध रूप से पैसे मांगता हो तो इसकी शिकायत तत्काल थाने में करें। इसके बाद विधि-सम्मत कार्रवाई की जाएगी।